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शतक
त्रिभिर्द्वाभ्यां तथैकेन वेदेनास्य प्रताडना ।
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भङ्गानां दशभिर्योगैर्द्वाभ्यामेकेन च क्रमात् ||२५||
अस्यार्थः–चिरन्तनचतुश्चत्वारिंशच्छतादिलक्षणं राशि त्रिधा व्यवस्थाप्येकं त्रिभिर्वेदः, अन्यं द्वाभ्यां पुन्नपु ंसक वेदाभ्याम्, परं राशि एकेन पु'वेदेन गुणितं हास्यादियुगलेन २ गुणयित्वा योगैरेकं दशभिः, अन्यं द्वाभ्यां वैक्रियिकमिश्र-कार्मणाभ्यां परमेकेनौदारिकमिश्रेण गुणयेत् । तत एकीकरणे फलं भवति ॥१७६॥ असंयत गुणस्थान में औदारिक मिश्रकाययोगकी अपेक्षा एक पुरुषवेद ही होता । तथा faraमश्र और कार्मणकाययोगको अपेक्षा स्त्रीवेद नहीं होता है । ( किन्तु देवोंकी अपेक्षा पुरुष वेद और नारकियोंको अपेक्षा नपुंसक वेद होता है । ) क्योंकि, बद्धायुष्कको छोड़कर सम्यग्दृष्टि जीव नारकी, तिर्यञ्च, ज्योतिष्क, व्यन्तर, भवनवासी, स्त्री और नपुंसक जीवोंसे उत्पन्न नहीं होता है, ऐसा आगमका वचन है ।।१७८-१७६ ॥
विशेषार्थ - असंयत गुणस्थानवर्ती जीव यदि बद्धायुष्क नहीं है, तो उसके वैक्रियिकमिश्र और कार्मणका योग देवोंमें ही मिलेंगे । तथा उसके केवल पुरुषवेद ही संभव है । यदि असंयतसम्यग्दृष्टि जीव बद्धायुष्क है, तो वह नरकगति में भी जायगा और उसके वैक्रियिकमिश्रकाययोगके साथ नपुंसक वेद भी रहेगा । इसलिए असंयतगुणस्थानके भंगों को उत्पन्न करनेके लिए तीन वेदोंसे, दो वेदोंसे और एक वेदसे गुणा करना चाहिए। तथा पर्याप्तकाल में संभव दश योगों से और अपर्याप्तकाल में संभव दो योगोंसे और एक योगसे भी गुणा करना चाहिए। इस प्रकार वेद और योग-सम्बन्धी विशेषताकृत भेद तीसरे और चौथे गुणस्थानके भंगोंमें है; अन्य कोई भेद नहीं है । इसलिए ग्रन्थकारने नौ, दश आदि बन्ध-प्रत्ययों के भंगादिका गाथाओं द्वारा वर्णन न करके केवल अंकसंदृष्टियों से ही उनका वर्णन किया है ।
असंयतसम्यग्दृष्टि के नौ बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी भङ्गोंको निकालने के लिए बीजभूत कूटकी रचना इस प्रकार है
तेणेदे =
एए १४४।१।२।१ १४४।२।२।२
तेणेदे =
एए दसजोग-भंगा
तिष्णि वि मिलिए जहण्णभंगा भवंति
= १००८०
इन्द्रियमेकं १ कायमेकं १ कषायः ३ वेदः १ हास्यादियुग्मं २ योगः १ एते एकीकृताः प्रत्ययाः । एतेषां भंगाः ६।६।४ परस्परं गुणिताः १४४ । एते एकेन पुवेदेन १ गुणितास्त एव । हास्यादियुग्मेन गुणिताः २८८ । एकेनौदारिकमिश्रकायेन १ गुणितास्त एव २८८ ।
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२८८
११५२
८६४०
१४६
का० भ०
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०
|१|१|३|१।२।१ एकीकृताः ६ भंगाः ६|६|४| २।२।२ परस्परहताः १४४ । पुवेद-नपुंसकवेदाभ्यां २ हताः २८८ | हास्यादियुग्मेन रहिताः ५७६ । वैक्रियिकमिश्र - कार्मणाभ्यां २ हताः ११५२ ।
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६।६।४ गुणिताः १४४ | वेदत्रयेग ३ गुणिता: ४३२ । हास्यादियुग्मेन २ हताः ८६४ । एते दशभिर्योगैः १० हताः ८६४० । एते त्रयो राशयो मीलिताः जघन्यभंगाः १००८० भवन्ति ।
असंयतगुणस्थानमें नौ बन्ध-प्रत्ययोंके भङ्ग इस प्रकार उत्पन्न होते हैं
नपुंसक वेद और एक योगकी अपेक्षा ६×६x४ (= १४४ ) ×१×२४१ = २८८ दो वेद और दो योगों की अपेक्षा ६४६x४ (= १४४ ) ×२×२x२=११५२ तीनों वेद और दश योगों की अपेक्षा ६ x ६x४ (= १४४ ) X३X२×१०= ८६४० नौ बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी सर्व भङ्गोंका जोड़
१००८०
इस प्रकार नौ बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी सर्व भङ्गः ९००८० होते हैं ।
१. सं० पञ्चसं० ४,६१ । २. ४,१०२ तमे पृष्ठे शब्दशः समानोऽयं गद्यांशः ।
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