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शतक
प्रथम प्रकार
६।१।४।३।२।१२ इनका परस्पर गुणा करने पर १७२८ भङ्ग होते हैं।
६।१।४।२।२।१ इनका परस्पर गुणा करने पर ६६ भङ्ग होते हैं। द्वितीय प्रर
६।६।४।३।२।२।१२ इनका परस्पर गुणा करने पर २०७३६ भङ्ग होते हैं।
६।६।४।२।२।२।१ इनका परस्पर गुणा करने पर २१५२ भङ्ग होते हैं। तृतीय प्रकार
६।१५।४।३।२।१२ इनका परस्पर गुणा करने पर २५६२० भङ्ग होते हैं।
६।१५।४।२।२।१ इनका परस्पर गुणा करने पर १४४० भङ्ग होते हैं। इस प्रकार सासादनगुणस्थानमें पन्द्रह बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी भङ्गोंका जोड़ ५१०७२ होता है।
सासादनसम्यग्दृष्टिके आगे बतलाये जानेवाले सोलह __ का० अन० भ० बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी भङ्गोंको निकालनेके लिए बीजभूत कूटको ६ १ १ रचना इस प्रकार है
इंदिय छक्क य काया कोहाइचउक्क एयवेदो य । हस्साइदुयं एयं भयदुय एयं च सोलसं जोगो ॥१५६॥
१।६।४।१।२।१।१ एदे मिलिया १६ । १६।४।१२।११। एकीकृताः १६ प्रत्ययाः । एतेषां भंगा: ६। ३।२।१२ । वै० मि० ६।१। ४।२।२।२।१। एते अकाः परस्परगुणिताः ३४५६ । १६२॥१५६॥
अथवा सासादनगुणस्थानमें इन्द्रिय एक, काय छह, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भयद्विकमेंसे एक और योग एक; ये सोलह बन्ध-प्रत्यय होते हैं ।।१५६।। इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है--१+६+४+१+२+१+१=१६ ।
इंदिय पंच य काया कोहाइचउक्क एयवेदो य । हस्सादिजुयलमेयं भयजुयलं सोलसं जोगो ॥१५७॥
१५।४।१।२।२।१ एदे मिलिया १६ । १५।४।१।२।२।१ एकीकृताः १६ प्रत्ययाः। एतेषां भंगाः ६।६।४।३।२।१२। वै० मि. ६।६।४।२।२।१ । एते गुणिताः १०३६८ । ५७६ ॥१५७॥
अथवा इन्द्रिय एक, काय पाँच, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भययुगल और योग एक; ये सोलह बन्ध-प्रत्यय होते हैं ॥१५७।
इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है-१+५+४+१+२+२+१=१६ । एदेसिं च भंगा-६।१।४।३।२।२।१२ एए अण्णोण्णगुणिदा = ३४५६
६।१४।२।२२ एए अण्णोण्णगुणिदा% ११२ ६।६।४।३।२।१२ एए अण्णोण्णगुणिदा= १०३६८
६।६। २।१ एए अण्णोण्णगुणिदा =५७६ एए सब्वे मेलिए--
=१४५९२ एते सर्वे चत्वारो राशयो मीलिताः १४५९२ षोडशप्रस्थयानां सर्वे उत्तरप्रत्ययविकल्पा भवन्ति ।
सोलह बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी इन दोनों प्रकारोंके उक्त दोनों अपेक्षाओंसे भङ्ग इस प्रकार उत्पन्न होते हैं
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