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शतक
१०१ एक देशविरतगुणस्थान होता है। असंयमी जीवोंके मिथ्यात्व आदि चार गुणस्थान होते हैं । परिहार विशुद्धिसंयमवालोंके प्रमत्तसंयत आदि दो गुणस्थान होते हैं। दर्शनमागेणाकी अपेक्षा चक्षुदर्शनी और अचक्षुदर्शनी जीवोंके मिथ्यात्व आदि बारह गुणस्थान होते हैं। अवधिदर्शनी जीवोंके असंयतसम्यग्दृष्टिको आदि लेकर क्षीणकषायतकके नौ गुणस्थान होते हैं। लेश्यामार्गणाकी अपेक्षा कृष्णादि तीन लेश्यावाले जीवोंके मिथ्यात्वादि चार गुणस्थान होते हैं । शुक्ललेश्यावालोंके मिथ्यात्वादि तेरह गुणस्थान होते हैं। तथा तेज और पद्मलेश्यावालोंके मिथ्यात्वको आदि लेकर अप्रमत्तसंयतान्त सात गुणस्थान होते हैं। भव्यमार्गणाकी अपेक्षा भव्यजीवोंके क्षीणकषायान्त बारह गुणस्थान होते हैं। अभव्य जीवोंके तो एकमात्र मिथ्यात्वगणस्थान होता है ।।६४-६७॥
अट्ठयारह चउरो अविरयाईणि होति ठाणाणि ।
उवसम-खय-मिस्सम्मि य मिच्छाइतियम्मि एय तण्णामं ॥६८॥ प्रथमोपशमसम्यक्त्वे असंयताद्यप्रमत्तान्तानि चत्वारि ४ । द्वितीयोपशमसम्यक्त्वे असंयतायुपशान्तकपायान्तानि गुणस्थानान्यष्टौ ८ । कुतः ? 'विदियउवलमसम्मत्तं अविरदसम्मादि-संतसोहो त्ति' । अप्रमत्ते द्वितीयोपशमसम्यक्त्वं समुत्पाद्योपर्युपशान्तकषायान्तं गत्वाऽधोऽवतरणेऽसंयतान्तमपि तत्सम्भवात् । क्षायिकसम्यक्त्वे असंयताद्ययोगान्तानि एकादश ११ । सिद्धषु तत्सम्भवति । क्षयोपशमे वेदकसम्यक्त्वे अविरताद्यप्रमत्तान्तानि चत्वारि ४। मिथ्यात्वादिनिके मिथ्यादृष्टौ सासादने मिश्रे च स्व-स्वनाम्ना स्व-स्वगुणस्थानं भवति ।।६८॥
सम्यक्त्वमार्गणाकी अपेक्षा उपशमसम्यक्त्वी जीवोंके अविरतसम्यक्त्व आदि आठ गुणस्थान होते हैं। क्षायिकसम्यक्त्वी जीवोंके अविरतसम्यक्त्व आदि ग्यारह गुणस्थान होते हैं । क्षयोपशमसम्यक्त्वी जीवोंके अविरतसम्यक्त्व आदि चार गुणस्थान होते हैं। मिथ्यात्वादित्रिकमें तत्तन्नामक एक एक ही गुणस्थान होता है अर्थात् मिथ्यादृष्टियोंके पहला मिथ्यात्वगुणस्थान, सासादनसम्यग्दृष्टियोंके सासादननामक दूसरा गुणस्थान और सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंके सम्यग्मिथ्यात्व नामक तीसरा गुणस्थान होता है ॥६८।।
मिच्छाई खीणंता सण्णिम्मि हवंति वार+ ठाणाणि ।
असण्णियम्मि जीवे दोण्णि य मिच्छाइ बोहव्वा ॥६६॥ संज्ञिजीवे संज्ञिमिथ्यादृष्ट्यादिक्षीणकषायान्तानि दश गुणस्थानानि भवन्ति १०। असंज्ञिजीवे मिथ्यात्व-सासादनगुणस्थानद्वयं ज्ञातव्यम् ॥६६॥
संज्ञिमागंणाकी अपेक्षा संज्ञी जीवोंके मिथ्यात्वादि क्षीणकषायान्त बारह गुणस्थान होते हैं । असंज्ञी जीवोंमें मिथ्यात्वादि दो गुणस्थान जानना चाहिए ॥६६॥
मिच्छाइ-सजोयंता आहारे होंति तह अणाहारे। मिच्छा साद अविरदा अजोइ* जोई य णायव्वा ॥७॥
एवं मग्गणासु गुणहाणा समत्ता आहारके मिथ्थारष्ट्यादिसयोगान्तानि त्रयोदश १३ भवन्ति । अनाहारके मिथ्यादृष्टि-सासादनात संयताऽयोग-सयोगगुणस्थानानि पञ्च भवन्ति बोधव्यानि ५। कुतः ? स अनाहारकः चतुर्गतिविग्रहकाले
१. गो० जी० ६६५। +द बारस ठाणं । * ब अजोअ ।
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