________________
१३ १४ १५ वात वात वन ० वन० त्रस त्रस
प्रयाणां संयोगभङ्गाः २०
एवं द्विकाय विराधनायां भङ्गाः १५ ।
११
१२ १३ १४
पृथ्वी पृथ्वी अप् अप् अप् अप् तेज तेज तेज वन० त्रस
वात
१२
१५
१३ १४ अप् अप् अप् तेज तेज तेज वात वात वात वन० वन० वन ० त्रस त्रस त्रस
यस
शतक
१
२
३ ४
पृथ्वी पृथ्वी पृथ्वी पृथ्वी अप् अप् अप तेज वात वन० त्रसे
अप
१५ १६ १७ १८ १६ २०
तेज
तेज वात एवं त्रिकाय विराधनायां भङ्गाः २० ।
वात
वन० वन०
तेज वात वात वन० वात वन० ग्रस त्रस वन ० त्रस त्रस २ ३ ४
यस
१
५
६
८
ह
१० งา
पृथ्वी पृथ्वी पृथ्वी पृथ्वी पृथ्वी पृथ्वी पृथ्वी पृथ्वी पृथ्वी पृथ्वी अप चतुःसंयोगभङ्गाः १५ अप् अप अप्
तेज
तेज तेज तेज
अप् अप् अप् वात वात वन० वन० स नस
तेज तेज वात तेज तेज वात वात वन० वन० वन० त्रस त्रस त्रस
वात वन० त्रस
पञ्चकायसंयोगजाता भङ्गाः ६.
Jain Education International
एवं चतुष्कायविराधनायां पचदश भङ्गाः १५
पृथ्वी तेज
वात
वात वात वन० ग्रस
२
३
४
५
पृथ्वी पृथ्वी पृथ्वी पृथ्वी पृथ्वी अप् अप् तेज तेज तेज
अप
वात
वात
वन ०
त्रस
अप तेज
वन ० त्रस
६
७
८
8
१०
पृथ्वी पृथ्वी पृथ्वी पृथ्वी पृथ्वी तेज तेज वात वात वन० वन ० त्रस वन० त्रस श्रस
वन ०
त्रस
१३५
६
अप
For Private & Personal Use Only
तेज
वात
वन०
त्रस
यदा पण्णां कायानां मध्ये कश्चित् प्रत्येकमेकैकं कार्यं विराधयति तदा षड् भेदाः ६ । यदा द्वयं द्वयं कार्य विराधयति, तदा भेदाः पञ्चदश १५ यदा त्रिकं त्रिकं कार्य विराधयति, तदा भेदाः विंशतिः २० । यदा कश्चित् कायचतुष्कं काय चतुष्कं विराधयति, तदा भेदाः पञ्चदश १५ । यदा कश्चित् कायपञ्चकं पञ्चकं विराधयति, तदा भेदाः पट् ६ । यदा कश्चित् युगपत् पकायान् विराधयति, तदा भेद एकः । एवं [ सर्वे ] भेदाः ६३ ।। १०२ ।।
वात
वन०
कायवधसम्बन्धी एकसंयोगी भंगों का गुणकार छह, द्विसंयोगी भंगों का गुणकार पन्द्रह, त्रिसंयोगी बीस, चतुःसंयोगी पन्द्रह, पंचसंयोगी छह और षट्संयोगी कायगुणकार एक जानना चाहिए ।। १०२ ।।
विशेषार्थं - गुणस्थानांमें बन्ध-प्रत्ययों के एक संयोगी, द्विसंयोगी आदि भंग कितने होते हैं, यह बतलाने के लिए ग्रन्थकारने देशामर्शकरूपसे प्रकृत गाथासूत्र कहा है। इन संयोगी भंगों के सिद्ध करनेका करणसूत्र यह है कि जिस विवक्षित राशिके भंग निकालने हों, उस विवक्षित राशि- प्रमाणसे लेकर एक-एक कम करते हुए एकके अन्त तक अंकोंको स्थापित करना चाहिए । तथा उसके नीचे दूसरी पंक्तिमें एक अंकसे लेकर विवक्षित राशिके प्रमाण तक अंक लिखना चाहिए। पहली पंक्तिके अंकोंको अंश या भाज्य और दूसरी पंक्तिके अंकोंको हार या भागहार कहते हैं । ये भंग भिन्नगणितके अनुसार निकाले जाते हैं, इसलिए यहाँ क्रमसे पहले भाज्यों के साथ अगले भाज्योंका और पहले भागद्दारोंके साथ अगले भागद्दारोंका गुणा करना
www.jainelibrary.org