Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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यद्यपि उनमें अनुपम गुण गण, हैं अनन्त नहिं कोई पार । पा सकता है; किन्तु भक्तिवश, कहता हूँ मैं वही विचार || कविका मानस महावीर प्रभुकी सहनशीलताका स्मरण कर हठादिव मुखरित हो जाता हैअह अह समता थी कैसी, सहे कष्ट मरणान्त अनेक |
सं० १९८४के वसंतपंचमी के शुभदिन खरतरगच्छके आचार्य श्री जिनकृपाचन्द्रसूरिजी बीकानेर पधारे और २ वर्ष विराजे तभी आपने गुरु-गीत बनाये । श्रीनाहटजीके व्यक्तित्वपर श्री कृपाचन्द्रसूरिजी का बड़ा प्रभाव रहा है । जैनदर्शन-भक्ति और शोधश्रमकी प्रेरणा उन्हें उक्त सूरिजी से ही प्राप्त हुई थी । गुरु कृपाचन्द्रजी के प्रति आभारके इस भारको कविने स्वरचित अनेक प्रशस्ति स्तवनोंमें अभिव्यक्त किया है । यथा
श्री कृपा चन्द्रसूरिराज, देखी तोरी शान्त मुद्रा सुखकारी मेघराज के नंदन कहिये, अमरा मात उदार चोमू गाम में जन्म आपको, भविजन आनन्दकार । भक्तहृदय कवि गुरूपदेशवाणीपर मुग्ध प्रतीत होता है। वह उसे 'अमृतधारा' से उत्प्रेक्षित करता है : बीकानेर में आप पधारे, सौभाग्य अपरंपार । देशना अजब सुहावनी, मानो अमृत की धार ॥ भक्त मानसका कथन है कि श्री कृपाचन्द्रसूरि किसी पूर्वपुण्यके प्रतापसे बीकानेर पधारे हैं और श्रावकोंको कृतार्थ किया है । वह उन दर्शकोंके भाग्यको साधुवाद देता है जिन्होंने गुरुमहाराजके पावन दर्शन किये हैं । कविका मुमुक्षुहृदय अपने गुरुसे सहजभाव में मुक्तिका मार्ग भी पूछने लगता है : कविके ही शब्दों में :
बताओ मुक्तिकी राह गुरुज्ञानी भव जल को नहीं थाह गुरुजी - फिरतो फिरतो हार्यो । तुम बिन नहीं कोई मेरा सहारा, तुमरी शरण में आयो || इसी प्रकार -
कृपाचन्द्रसूरि राय रे, कोई पुण्य से आये,
शान्ति मूरति सोहणीरे, सहुने आवे दायरे ।
पंच महाव्रत है धारी, रक्षा करें छहुँ काय रे ॥
कवि अनेक पदोंमें उपदेशक के रूपमें भी उपस्थित हुआ है । वह जीवको आत्मज्ञान प्राप्त करने को कहता है । उसकी आस्था जिनवचनश्रवणमें है । निंदा, विकथा, आदिसे बचने की उसकी शिक्षा सर्वहितकारी है । यथा
चेतनजी करवो आत्म ध्यान
बुद्धितत्त्व विचारण फोरो, जिन वचन सुणन में कान । निंदा विकथा मिच्छर भाषा छोड़ मुखसे करो प्रभुगान ॥
अनेक पदोंमें कवि पर्यूषण पर्व मनाने की शिक्षा देता है । वह इसी प्रसंग में सुपात्रको दान देनेका आग्रह भी करता है । यथा
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भवि भावधरी, पर्व पजूसण आराधो आनंद सुं । ए पर्व भलो, छै सहु में सिरदार चिन्तामणि रत्न ज्यूं || अमारी पड़हो बजवाइजे, जिनराज पूजन विधि सुँ कीजै, वलिदान सुपात्र नदीजै ।
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जीवन परिचय : ५९
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