Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
भंवरलालजीकी काव्यचेतना प्रस्फुटित हुई और आपने श्रीगुरुके चरणोंमें निवेदनार्थ अपनी विवशता व्यक्त की, जो द्रष्टव्य है
"कृत्वानेक परिश्रमोऽपि गुरुवः
न स्वीकृता वीनती श्रीमन्नागपुरीयसंघविदिता
हृदयेन कृपणा महा गच्छोन्नति च शासनस्य शोभा
सम्मान संघस्य च श्रुत्वा न विमर्षिता कथंचित
कलयामि कथयामि किम"
श्री ताजमल बोथरा कलकत्तेके एक विशिष्ट समाजसेवी, धनी मानी व्यक्ति है। आपने एक दिन भंवरलालजीसे आग्रह किया कि बंगालमें सराक जाति लाखोंकी संख्यामें निवास करती है । ये जैन श्रावक जातिके वंशज हैं। उनके लिए बंगलामें श्रावककृत्यकी विशेष आवश्यकता है । यदि ऐसा ही कुछ हो जाय तो बड़ा उपकार होगा। भावुक श्री भंवरलालजीको यह बात मनको लग गई और बात ही बातमें इस कविमनीषीने बंगला भाषामें २७ एक पद्योंमें श्रावक कृत्य लिख डाला
श्रावक तुमि उठे पड़ो अत्यन्त सकाले दुइ दण्डो रात्रि थाकिते उषार अन्तराले अल्पो लाभे अल्पारम्भे हय जे व्यापार शोषण-दूषण रहित नीति श्रम आधार नदी-पुकुर वन ठीका हिंसामय व्यापार लोहारस बीच-अस्थि आदि परिहार जल-दुग्ध धृततेल छाकना दिया राखो प्रमार्जन आदिकाज्जे जीवयल देखो
"श्रावक-कृत्य"
X जैन भवनमें वैद्य जसवंतरायके अनुरोधपर श्री विजयबल्लभसूरिजी जयन्तीके अवसरपर जब कुछ कहनेके लिए कहा तो तत्काल आपने प्राकृतमें गाथायें बनाकर सुनायीं और सभी सम्भ्रान्त व्यक्तियोंको आश्चर्यमें डाल दिया। गाथायें इस प्रकार थीं
सिरीवल्लह सुगुरुणं तवगच्छगयण सूर चंदाणं वंदामि भत्ति-भावेण सग्गारोहण दिणो अज्ज १ आसोय कण्ह पक्खे इक्कारसी राइय तइय पहरे मुंबाणामा णयरी बहु सड्ढ समाकुले दीवे २ सावय जण उवयारो किच्चा संठाविओऽणेगे विज्जालयादि पवरा सव्वपिओ भूय कय अत्थो ३ पत्तो सुरालयम्मि इंदादि पडिबोहणा कज्जे भारहवासी भत्ताण पूरिज्जंतु सयलमण इच्छा ४
जीवन परिचय : ९९
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org