Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti

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Page 802
________________ होलके पालक पिताका नाम सांगण निमागरा था। यह कच्छके किसी एक गाँव, जिसका नाम उपलब्ध नहीं हो रहा है, का निवासी या इसे होयल जंगलमें पड़ी मिली थी। रूपवती होने के कारण इसे सभी लोग सम्पन्न परिवारकी कम्या होना मानते थे। इसके सौन्दर्यके कारण लोग इसे इन्द्रकी अप्सरा भी कहते थे । तथा दैवी स्त्री मानते थे । वह देवांगनामें गिनी जाती थी । जब होयल वयस्क हो गई तब इसके साथ विवाह करने हेतु अनेक स्थानोंसे मांगणी की गई किन्तु स्वयं होथलने ही अपने पालक-पितासे अपने विवाह के सम्बन्धमें अनिच्छा व्यक्त कर दी थी । यह ( होथल) रायर तालुकाके साई गाँवके नैऋत्य में लगभग १ मीलकी दूरीपर होथलपुराके पहाड़ में खोदे गये एक भूमि गृह में कुछेक दिनों तक एकान्तमें रही । वहाँ इसने लूट-फाट करने की इच्छासे निकले हुए होथी निमागरा नाम धारण कर पलड़ाके सरदार बाँभणिया समाके ढोर समूहको घेर लेने हेतु निकली । उस समय इसका मार्ग में भाई द्वारा देश निकाला दिये हुए ओढा जाम और उसकी फौजसे मिलन हुआ। परिवर्तन कर पुरुष वेश में थी। इन दोनोंने मिलकर वांभणियाके ढोरसमूह लगभग आठ दिन साथ-साथ ही बिताये। इनका तबसे हो प्रेमालाप इस समय होयल अपने वैशमें ( पशुओं) को घेर लिया और प्रारम्भ हुआ । जब ये दोनों एक दूसरेसे पृथक् हुए, तब इन्हें दुःख एवं वेदनाका अनुभव हुआ । लगातार आठ दिन तक स्नान नहीं किया जानेके कारण होयल अपने वस्त्र उतार कर चकासरके सरोवर में स्नान करने लगी । ओढा अकेला ही रवाना हो गया । इसका घोड़ा कहीं दूर चला गया था । अतः उसकी खोज करने हेतु नजर दौड़ाने के लिये जब यह ऊँचाईके स्थान — तालाबकी पाल - पर चढ़ा तो उसने होथलके घोड़े को एक पेड़से बंधा हुआ देखा। इसके वस्त्र उसे पेड़ के नीचे पड़े हुए दिखाई दिये । साथ ही साथ तालाब में होपलको तैरते हुए भी देखा ओढा जाम वृक्षके नीचे आकर होयलके वस्त्रोंपर बैठ गया। उस समय होयलने उसे वस्त्र छोड़ कर जानेके लिए कहा । किन्तु ओढा जामने इसकी कोई परवाह नहीं की । तब इसने किंचित् क्रोधित होते हुए कहा, "तुम अभी यहाँ से दूर हट जाओ । पश्चात् हम परस्पर बात करेंगे ।” "यदि तुम मुझसे विवाह करनेका वचन दो तो मैं तुम्हें तुम्हारे ऐसा सुनकर ओढा जामने कहा, वस्त्र दे दूँ ।" उस समय होथलने एक पद्य कहा अर्थात् हे ओढा ! तू सरोवरकी पालको लाँघ कर दूर चला जा । तत्पश्चात् ही जो तुम्हारे मन में है, उसपर हम परस्पर विचार करेंगे। तात्पर्य यह है कि तुम्हारे साथ विवाह करूंगी। होयलने ओहाके सम्मुख निम्न शर्तें रखीं : “ऊठा अरगोथी से, लंगे सरवर पार । कंधासु सेज गाल, जिका तोजे मन में । " १. हमारे परस्पर विवाहित हो जानेके बाद मैं तुम्हारे घरपर नहीं आऊँगी और जहाँ-जहाँ मैं रहूँ वहाँ-वहाँ तुम्हें भी रहना होगा । २. मैं कौन हूँ, मेरा नाम क्या है, इस सम्बन्ध में किसी को कुछ भी नहीं बताया जाय । ३. इन शर्तोंके भंग होनेपर मैं तुरन्त ही तुम्हें त्याग दूँगी । ओढा जामने इन शर्तोंको स्वीकार कर लिया और इनका परस्पर विवाह हो गया । लगभग दस विविध: ३१३ ४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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