Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti

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Page 800
________________ एक अन्य छंदमें शिवाजीकी वीरताका वर्णन करते हुए उनका दिल्लीपतिको जवाब देने, समस्त दरबारियोंको आतंकित करने और बिना हाथमें हथियार या साथमें फौज लिये माथ न नवानेका उल्लेख इस प्रकार किया है-- "दीनी कुज्वाब दिलीस को यौं जु डर्यो सब गोसलखानो डरारी। नायौ न माहिं दच्छिन नाथ न साथ में सैन न हाथ हथ्यारौ।" (१६९) एक और छंदमें भूषण लिखते हैं कि औरंगजेबसे मिलते ही शिवाजी क्रुद्ध हो उठे, जिसपर उमराव आदि उन्हें मनाकर गुसलखानेके बीचसे ले चले "मिलत ही कुरुख चिकत्ता कौं निरखि कीनौ, सरजा साहस जो उचित बृजराज कौं। भूषन कै मिस गैर मिसल खरे किये कौं किये, म्लेच्छ .मुरछित करिकै गराज कौं । अरतें गुसुलखान बीच ऐसें उमराव, लै चले मनाय सिवराज महाराज कौं। लखि दावेदार को रिसानौ देखि दुलराय, जैसे गड़दार अड़दार गजराज कौं । (३३) छंद सं० १८६ में पुनः गुसलखाने में ही दुःख देनेका प्रसंग है-- "ह्याँ तें चल्यौ चकतै सुख देन, कौं गोसलखाने गए दुख दीनौ । जाय दिली-दरगाह सलाह कौं, साह कों बैर बिसाहि कै लीनौ ।''(१८६) २४२वें छंदमें भी गुसलखानेमें साहसके हथियारसे, औरंगकी साहिबी (प्रभुत्व) को हिला देनेका उल्लेख है-- "भूषन भ्वैसिला तें गुसुलखाने पातसाही, अवरंग साही बिनु हथ्थर हलाई है। ता कोऊ अचंभो महाराज सिवराज सदा, बीरन के हिम्मतै हथ्यार होत आई है । "(२४२) शिवाजीकी प्रशस्तिमें लिखे हुए एक प्रकीर्णक छंदमें तो भूषणने स्पष्ट उल्लेख कर दिया है कि आतंकित औरंगजेबने बड़ी तैयारी और सावधानीके साथ गुसलखाने में शिवाजीसे भेंट की थी "कैयक हजार किए गुर्ज-बरदार ठाढ़े, करिकै हस्यार नीति सिखई समाज की। राजा जसवन्त को बुलायकै निकट राखे, जिनकों सदाई रही लाज स्वामि-काजकी। भूषन तबहुँ ठिठकत ही गुसुलखाने, सिंह-सी झपट मनमानी महाराज की। हठ तें हथ्यार फेंट बाँधि उमराव राखे, लीन्ही तब नौरंग भेंट सिवराजकी।" (४४२) उपर्युक्त उद्धरणोंसे यह पूर्णतः स्पष्ट है कि भूषणने इस भेंटका जो वर्णन किया है, वह इतिहाससम्मत है और स्थानका निर्देश सही है। यह बात दूसरी है कि कविके वर्णनमें कुछ अतिशयोक्ति और चमत्कार आया हआ प्रतीत होता है। ऐसा हो जाना स्वाभाविक है, क्योंकि कविने शिवाजीकी वीरताके वर्णनोंको अलंकारोंके उदाहरणके रूप में उपस्थित किया है। शिवराजभूषणके कुछ सम्पादकोंने प्रसंगके आधारपर यद्यपि 'गुसलखाना' शब्दका अर्थ दरबार खास किया भी है, किन्तु यह अर्थ अभी तक अनुमानपर ही आधारित था। इस स्पष्टीकरणसे यह अनुमान अब वास्तविकतामें परिणत हो गया है। विविध : ३११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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