Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti

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Page 805
________________ उवंशी-पुरुरवाके इस कथानक में तुलनात्मक निम्न मुद्दे ये हैं १. अमर्त्य - नारी, मानव के साथ विवाह करती है । २. लग्न हेतु देवांगना मानवको शर्ते स्वीकार करनेके लिए कहती हैं । ३. शर्त भंग हो जाती है और देवांगना मानवका त्याग कर देती है । ४. देवांगना, हंसकुमारीके रूपमें परिवर्तन करती है। ५. देवांगना एकान्त-वादन करती है। ६. व्यथित मानव के प्रति देवांगनामें अनुकम्पा उत्पन्न होती है और अन्तमें ७. इनका पुनः मिलन हो जाता है । होयल की लोक कथा के वस्तुतत्त्वमेसे महत्वके मुद्दे निम्न हैं, जो उर्वशी पुरुरवाकी पुराण कथासे मिलते-जुलते हैं १. देवांगना जैसी होथल-नारीका ओढा जामके साथ लग्न होना । २. लग्नके सम्बन्धमें होयलकी शर्तें । ३. शर्त भंग और ओढा जामका त्याग । ४. होथलका एकान्तवास । ५. पुनरागमन और ओढा जानके साथ होयल का स्थायी निवास । इस प्रकारसे ओढा जाम और होयलकी दन्त कथा ऋग्वेद और शतपथ ब्राह्मणकी उर्वशी पुरुरवाकी कथाके साथ अकल्पनीय खाम्यता सिद्ध करती है । , उर्वशी - पुरुरवाकी कथा पुराण कथा (Myth ) है, जब कि होथलको कथा मात्र स्थानीय दन्त-कथा (Local Legend ) वन गई है इस कथाको नवम शताब्दीकी होना बताया जाता है। इसी प्रकारसे उसके राजवंश-कुल, पिता- भ्राता के नाम, निवासस्थान, भ्रमण स्थल, युद्ध इत्यादिके नाम निश्चित रूपसे मिलते हैं । इस प्रकारसे भ्रमणशील और विसरित होकर Hoaling पुराण कथा दन्तकथा बनी हुई है । किन्तु मूलमें तो यह उर्वशी पुरुरवाकी कथा ही है। श्री पेन्सर लिखते हैं कि यह आधार-बीज हंसकुमारीका (Swan-maiden ) है और यह प्राचीन संस्कृत साहित्य में उपलब्ध होती है । इस पुराण कथानकने पूर्वरूपसे संस्कृत साहित्य में विकसित होकर कथाका रूप प्राप्त कर लिया है। तत्पश्चात् ही यह अन्य भारतीय भाषाओं एवं लोक वार्ता में जन साधारण योग्य बन पाई और ऐसा करनेके लिए ठीक-ठीक समय भी व्यतीत होता गया । उर्वशी - पुरुरवाकी पुराण कथा पूर्व एवं पाश्चात्य देशोंमें प्रसारित होकर फैल रही है । * ग्रीस में यह १. एजन, पृ० २४८ । २. The Occen of Story, vol. 8, p. 234. ३. ४. " Jain Education International 17 Appendix 1 p. 213-234. ३१६ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रन्थ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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