Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
और मोहनदास नामके दो पुत्र थे। ये दोनों राजा जसवंतसिंह प्रथम जोधपुरके शासनकाल १७२१ वि० तक विद्यमान थे। अतः द्वारिकादासको माधवदासका पुत्र प्रकट करना प्रमाणोंसे गलत ठहरता है। काल क्रमसे भी यह कथन तथ्य संगत नहीं सिद्ध होता है। राजस्थानी कवियोंके सम्बन्धमें इस प्रकारकी असंगतियाँ राजस्थानी और हिन्दी साहित्यके विद्वानोंमें बहुधा प्रचलित है ।
राजस्थानीके आदि महाकाव्य रामरासोकी छंद संख्याको लेकर भी विद्वान् एक मत नहीं हैं। रामरासोकी प्राप्त प्रतियोंमें छंद संख्या भिन्न-भिन्न मिलती है । इसका कारण रामरासोकी प्रतिलिपियोंका बाहुल्य ही रहा है। कई प्रतियोंमें क्षेपक पद भी हैं। कुछ पद ऐसे हैं जो रामरासो, पृथ्वीराज रासो और प्राकृतकी गाहा सतसई में न्यूनाधिक परिवर्तनके साथ उपलब्ध हैं। ऐसे उपलब्ध छंद गाहा सतसईके हैं जो विद्वान् लिपिकारोंकी रुचि और लिपिकौशलका परिणाम है। रामरासोको कतिपय प्रतियोंमें घटनाओं और प्रसंगोंके अनुसार शीर्षक और अध्याय भी अंकित मिलते हैं । जिन प्रतियों में अध्यायोंका क्रम है उनमें अलग-अलग अध्यायोंकी अलग-अलग छंद संख्या पाई जाती हैं और जिस प्रतिमें यह क्रम नहीं है वहाँ सम्पूर्ण पद्योंकी क्रमश : छंद संख्या ही दी हुई मिलती है।
महाकवि माधवदासके काव्य गुरुके सम्बन्धमें श्री लालस प्रभृति विद्वानोंने लिखा है कि माधवदासने अपने पितासे ही अध्ययन किया था। यह कथन भी कल्पना प्रसूत ही लगता है। माधवदासने रामरासोके प्रारम्भमें ही अपने गुरुके लिए स्पष्ट संकेत किया है।
""श्रवण सुमित्र सबदं, जास पसाय पाय पद हरिजस ।
""मुनिवर करमाणंदं, निय गुरदेव तुभ्यो नमः ॥२॥ मुनिवर कर्मानन्द ही माधवदासके काव्य गुरु थे। 'निय गुर देव तुभ्यो नमः' मंगलाचरणकी ये पंक्तियाँ ही प्रमाण हैं । रामरासोकी रचना तिथि सभी प्राप्त प्रतियोंमें १६७५ वि० अंकित मिलती है। यद्यपि रामरासोके सर्जनके पश्चात् माधवदास बहत कम वर्ष ही जीवित रहे, पर रामकथा तथा भक्ति वर्णनके प्रतापसे रामरासोका राजस्थानके शिक्षित परिवारोंमें अत्यधिक प्रचार रहा। और रामरासोके अनेक छंद 'पिंगल शिरोमणि' जैसे छंद शास्त्र ग्रन्थोंमें मिले हुए मिलते हैं। रामरासोके छंदोंका पिंगल शिरोमणिमें पाया जाना पिंगल शिरोमणिके कर्ताओं रावल हरराज भाटी(?) अथवा कुशललाभ(?) दोनों ही के लिए सन्देह उत्पन्न कर देते हैं। रामरासोका रचनाकाल १६७५ है और पिंगल शिरोमणिका सर्जनकाल संवत् १६१८ वि० से पूर्व माना जाता है। दोनोंके रचनाकालमें भारी अन्तर है। इस प्रकार पिंगल शिरोमणिका रचनाकाल भी एक प्रश्न रूपमें अध्येताओंके सामने खड़ा हुआ है।
माधवदास राजस्थानी (डिंगल) और संस्कृत दोनों भाषाओंका विद्वान् था। राजाओं और जागीरदारोंके आश्रय एवं सम्पर्कके कारण उसको अरबी, फारसी और तुर्की भाषाओंकी भी जानकारी रही हो तो कोई विस्मय नहीं। रामरासोमें अरबी, फारसी और तुर्कीके शब्दोंका प्रयोग हुआ है। इतना ही नहीं रामरासोमें व्यवहृत लोकोक्तियों और मुहावरोंसे यह भी पता चलता है कि माधवदास राजस्थानोके लोकभाषा रूपका भी सुज्ञाता था।
रामके माया मृगके पीछे जानेपर रामकी सहायताके लिए लक्ष्मणको भेजते समय सीताके मुखसे कहलवाया है
लखमण धां म्हांलार, मात भरतरी मेल्हियो । भोलो भो भरतार, देखे सोह धोलो दुगध ॥
भाषा और साहित्य : २२७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org