Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti

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Page 734
________________ राजस्थानी 'बातों' में पात्र और चरित्रचित्रण डॉ. मनोहर शर्मा कहानी में पात्रोंका कार्य - व्यापार उनके चरित्रका प्रकाशन करता है । अतः उनका सजीव होना आवश्यक है, वे निर्जीव नहीं होने चाहिए। उनमें स्वाभाविकताका गुण जरूरी है । इसीसे पाठकोंको वास्तविक रसानुभूति होती है । पात्रोंकी अलौकिक अथवा असाधारण शक्तिसे कुतूहल भले ही पैदा हो जाए परन्तु उनके साथ हृदयका संबंध नहीं जुड़ सकता । उनमें मानवीय हृदयके शाश्वत मनोभावोंका प्रकाशन होना चाहिए, जिससे कि पाठक उनको अपने जैसा ही मान कर उनके साथ सहानुभूति प्रकट कर सकें । कहानी में पात्रोंकी अधिकता भी वांछनीय नहीं । कई राजस्थानी जाता है परन्तु अनेक बातोंमें पात्रोंकी संख्या काफी बढ़ी हुई मिलती है । उनके इतिवृत्त के रूप में उपस्थित किया जाता है । जिन बातों में किसी अभीष्ट होता है, उनमें अनेक प्रकारके और बहुत अधिक पात्र देखे जाते हैं, जैसे अमरसिंघ राठोड़ गजसिंघोघोतरी बात, ' महाराज श्रीपदमसिंघरी बात आदि । राजस्थानी बातों में ऐतिहासिक पात्रों की प्रधानता है । ऐसा प्रतीत होता है, मानों बातोंका संसार उन्हींसे बसा हुआ है। इतना ही नहीं, वहाँ कल्पित पात्रोंको भी ऐतिहासिक रूपमें प्रस्तुत करनेकी चेष्टा की गई है और अनेक लोककथाओं में उनको चतुराईके साथ नायकके पदपर प्रतिष्ठित कर दिया गया है । मोटे तौरपर राजस्थानी बातोंमें पात्रोंको तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है- बातोंमें यह गुण सुन्दर रूपमें देखा पात्रोंको इस अधिकताका कारण ऐतिहासिक पात्रका विवरण देना १. मानव । २. देव-दानव आदि । ३. पशु-पक्षी आदि । इनमें प्रथम वर्ग पात्र प्रधान हैं तथा द्वितीय वर्गके पात्र गौड़ हैं । वे बातों में कहीं-कहीं ही प्रकट होते हैं और उनका सम्बन्ध तत्कालीन लोकविश्वास से है । तृतीय वर्ग के पात्र यत्रतत्र बालोपयोगी बातों में प्रकट होते हैं । कहीं-कहीं उनपर मानव जीवनका बड़ी ही कुशलतासे आरोपण भी किया गया है । राजस्थानी बातों में पात्रों का चरित्र चित्रण दो रूपोंमें हुआ है । एक रूपमें पात्रकी वर्गगत विशेषताएँ प्रकट होती हैं और दूसरेमें उनके व्यक्तिगत गुणोंका प्रकाशन होता है । बातों में प्रधान, मोहता, पुरोहित, कोटवाल, दांगी आदि पदोंपर काम करने वाले पात्रोंके प्रायः व्यक्तिगत नाम नहीं मिलते और उनको पदके नामसे ही पुकारा जाता है । ये पात्र वर्गगत विशेषताओंको प्रकट करते हैं । यही स्थिति डुम, दास, दासी, रैंबरी, गोहरी, एवाल आदिको है । इनके भी बातों में प्रायः नाम नहीं मिलते । असल में इस प्रकार के पात्रोंका कोई विशेष महत्त्व नहीं होता और कहीं ही प्रकट होती है। यदि इस तरहका कोई पात्र महत्त्व ग्रहण करता है १. राजस्थानी बात-संग्रह (परम्परा) २. वही, Jain Education International For Private & Personal Use Only बातमें इनकी उपस्थिति कहींतो उसका नाम भी प्रकट होता भाषा और साहित्य : २४५ www.jainelibrary.org

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