Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti

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Page 731
________________ आदि तीर्थोकी यात्रा कराई। किन्तु अन्तमें ये जोधपुरके महाराजा अभयसिंहके पास चले गये। और अपने अन्तिम समय तक वहीं रहे। इनकी पाँच रचनाएँ-सूरजप्रकाश, विड़द सिणगार, अभयभूषण, जतीरास, ठाकुर लालसिंह यश तथा कई फुटकर गीत मिलते हैं। 3 मेवाड़ के महाराणा संग्रामसिंह द्वितीयकी प्रशंसामें बनाया हुआ इनका एक गीत 'ग्रहाँ हेक राजा सिधा हेक राजा अंगज' प्रसिद्ध है।४ (५२) पताजी आसिया-ये आसिया शाखाके चारण महाराणा संग्राम सिंह द्वितीयके समकालीन थे। इनके फुटकर गीत साहित्य संस्थान संग्रहालयमें हैं। एक 'सुरतांण गुण वर्णन' नामक ऐतिहासिक काव्य ग्रन्थ भी मिला है, जिसका रचनाकाल वि० सं० १७७२ है। इस ग्रन्थमें बेदला ठीकानेके पूर्वज सुरताणसिंहके चरित्रका वर्णन है। (५३) जीवाजी भादा-ये संभवतः महाराणा अरिसिंह (वि० सं० १८१७-१८२९) के समकालीन कवि थे।५ इनके फुटकर गीत मिलते हैं। जिनमें महाराणा अरिसिंहका यश वर्णन है।। (५४) जसवंतसागर-ये तपागच्छीय जैनाचार्य जससागरके शिष्य थे। इनकी 'उदयपुरको छन्द' नामक एक रचना उपलब्ध हुई है । इसका रचनाकाल वि० सं० १७७५-९०के आसपास है। इसमें उदयपुर नगरकी विस्तृत जानकारी दी गई है। (५५) कुसलेस-जाटोंका याचक (ढोली) कुसलेस अंटाली (आसिंद-भीलवाड़ा) का रहनेवाला था। यह महाराणा अमरसिंह द्वितीय व संग्रामसिंह द्वितीयका समकालीन था। इसका एक लम्बा गीत 'बत्तीस खान वर्णन मिला है, जिसमें ढाल, तलवार, किला, घी, आदिकी उत्पत्ति व प्रसिद्ध स्थानका वर्णन है। (५६) नाथ कवि-यह कुसलेसका पुत्र था। अपने पिताके समान यह भी प्रसिद्ध कवि था। महाराणा अरिसिंहके शासनकालमें वि० सं० १८२० में 'देव चरित' नामक एक काव्य ग्रन्थकी रचना की । इसमें बगड़ावतों तथा देवनारायणके कृत्योंकी कथा है। डॉ० ब्रजमोहन जावलियाने हाल ही में इसका सम्पादन किया है। इसकी हस्तलिखित प्रति भी डॉ० जावलियाके निजी संग्रहमें है । (५७, सूग्यानसागर-ये तपागच्छीय श्यामसागरके शिष्य थे। महाराणा हम्मीरसिंह द्वितीय (वि० सं० १८२९-१८३३) के शासनकालमें उदयपुर चातुर्मासके अवसरपर यहाँके सेठ कपूरके आग्रहपर उसके पुत्रोंके स्वाध्यायके लिए वि० सं० १८३२को मृगसिर शुक्ला-१२ रविवारको इन्होंने ढालमंजरी अथवा राम रासकी रचना की। (५८) किशना आढ़ा-प्रसिद्ध कवि दुरसा आढाके वंशज किशना आढ़ा महाराणा भीमसिंह (वि० सं० १८३४-८५) के आश्रित कवि थे। इनके पिताका नाम दुल्हजी था, जिनके किशनाजी समेत १. वीर विनोद, भाग-२ पृष्ठ ९६५-६६ । २. वही पृष्ठ ९६६-६७ । ३. डॉ० जगदीश प्रसाद श्रीवास्तव-डिंगल साहित्य, पृष्ठ ३७ । ४. मलसीसर ठाकुर भूरसिंह शेखावत द्वारा सम्पादित महाराणा यश प्रकाश, पृष्ठ १७९-८०। ५. डॉ. जगदीश प्रसाद श्रीवास्तव-डिंगल साहित्य. पष्ठ ३८ । ६. ठा० भूरसिंह शेखावत-महाराणा यशप्रकाश पृष्ठ १८८। ७. मुनि कान्तिसागर, जसवन्तसागर कृत उदयपुर वर्णन, मधुमती, वर्ष ३, अंक ३ । ८. इसकी हस्तलिखित प्रति डॉ० ब्रजमोहन जावलियाके निजी संग्रहमें है। २४२ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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