Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti

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Page 727
________________ नामक मेवाड़ी भाषाका ग्रन्थ बनाया था। इसमें हाथियों सम्बन्धित अनेक तरहकी जानकारी दी गई है। अकबरका दरबारी कवि अब्दुर्रहीम खानखाना महाराणाका मित्र था। खानखानाको भेजे हए इनके दोहे मिलते हैं । (३२) मानचन्द्र-ये आचार्य जिनराजसूरिके शिष्य थे। इन्होंने वि० सं० १६७५ में 'बच्छराज हंसराज रास'की रचना की। इस रचनामें बच्छराज और हंसराज नामक दो भाई कथाके प्रमुख पात्र हैं। मानचन्दको मानमुनिके नामसे भी जाना जाता है । ये महाराणा अमरसिंह तथा महाराणा कर्णसिंह (वि० सं० १६७६-१६८४) के समकालीन थे। (३३) गोविन्द-महाराणा जगतसिंह (वि० सं० १६८४-१७०९)के समकालीन रोहड़िया शाखाके चारण गोविन्दजीका रचनाकाल वि० सं० १७०० के आस-पास माना जाता है। इनके बहुतसे फुटकर गीत प्रकाशमें आये हैं । जगतसिंहकी प्रशंसामें रचे गये गीत प्रसिद्ध हैं। भाषाका लालित्य और शब्द चयन सुन्दर है। (३४) कल्याणदास-ये मेवाड़ के सामेला गांवके रहनेवाले थे। इनके पिता लाखणोत शाखाके भाट बाघजी थे। इन्होंने वि० सं० १७०० में महाराणा जगत सिंहके शासनकालमें 'गुण गोविन्द' नामक ग्रन्थ की रचना की। ग्रन्थमें कुल १९७ छन्द हैं, जिसमें भगवान राम और कृष्णकी विविध लीलाओंका भक्तिपूर्ण वर्णन है । साहित्यिक सौन्दर्यकी दृष्टिसे ग्रन्थ श्रेष्ठ हैं। (३५) लब्धोदय-ये महामहोपाध्याय ज्ञानराजके शिष्य थे। दीक्षासे पूर्व इनका नाम लालचन्द था। वि० सं० १६८० के लगभग इनका जन्म माना जाता है। खरतरगच्छाचार्य श्री जिनरंगसूरिकी आज्ञासे ये उदयपुर में आये । इसके बाद इनका बिहार मेवाड़में ही अधिक हुआ। इसका प्रमाण उदयपुर, गोगुन्दा, तथा धुलेवा (ऋषभदेव)में रचित इनकी कृतियाँ हैं। इनकी सर्वप्रथम रचना 'पद्मिनी चरित चउपई' मेवाड़ के महाराणा जगतसिंहकी माता जंबूमतीके मंत्री खरतरगच्छीय कटारिया केसरीमलके पुत्र हंसराज और भागचंदकी प्रेरणासे लिखी गई उपलब्ध होती है। यह रचना चैत्र पूर्णिमा वि० सं० १७०७ में सम्पूर्ण हुई । इसमें ४९ ढाल तथा ८१६ गाथाएँ हैं। भागचन्दकी ही प्रेरणासे इन्होंने उदयपुरमें वि० सं० १७३९ की बसंत पञ्चमीको 'रत्नचूड़ मणिचूड़ चउपई की रचना की। इसमें ३८ ढाले हैं । भागचन्दकी सन्ततिका इसमें पूरा परिचय दिया गया है। इस रचनासे पूर्व कविने तीन और भी रचनाएँ की थीं, जिनके नाम गाँव गोगुन्दामें रचित 'मलयसुन्दरी चउपई में मिलते हैं । 'मलयसुन्दरी चउपई की रचना वि० सं० १७४३ में धनतेरसके दिन गोगुन्दामें की थी। 'गुणावली चउपई की रचना भागचन्दकी पत्नी भावलदेके लिए केवल १२ दिनमें (अर्थात् वि० सं० १७४५ को फाल्गुन कृष्णा १३ से फाल्गुन शुक्ला १० तक) रचकर १. डॉ. महेन्द्र भानावत द्वारा सम्पादित ब्रजराज काव्यमाधुरी, डॉ. मोतीलाल मेनारियाकी भूमिका, पृ० ८। २. वही, १०८। ३. शान्तिलाल भारद्वाज-मेवाड़में रचित जैन साहित्य, मुनि हजारीमल स्मृति ग्रन्थ, पृ०८९६ । ४. सीताराम लालसकृत राजस्थानी सबदकोस, भूमिका, पृ० १५०। राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, शा० का. उदयपुर, हस्तलिखित ग्रन्थ सं० ५९१ । ६. भंवरलाल नाहटा द्वारा सम्पादित 'पद्मिनी चरित्र चौपई, पु० २९ । २३८ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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