Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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संपादकीय निवेदन सिद्धान्ताचार्य, संघ रत्न, जैन इतिहास रत्न, राजस्थानी साहित्य वाचस्पति, विद्यावारिधि, साहित्य वाचस्पति (हि० सा०) श्री अगरचंद नाहटा देश के प्रतिभासंपन्न विद्वान् है । उनका व्यक्तित्व बहुमुखी है। वे कला के महान् प्रेमी व मर्मज्ञ,पुरातत्त्व और इतिहास के गंभीर अनुसंधानकर्ता, प्राचीन साहित्य और प्राचीन ग्रन्थों के अध्यवसायी अन्वेषक, संग्राहक एवं उद्धारक, मातृभाषा राजस्थानी और राष्ट्रभाषा हिन्दी के श्रेष्ठ सेवक और अग्रणी साहित्यकार; मननशील विचारक, विशिष्ट माधक, सफल व्यापारी और कर्मठ कार्यकर्ता हैं। उनका जीवन 'सादा जीवन और उच्च विचार' इस उक्ति का श्रेष्ठ निदर्शन है। वे भारत के गौरव हैं। ऐसे विशिष्ट महापुरुष को यह अभिनंदन ग्रन्थ समर्पित करते हुए हमें गर्व का अनुभव हो रहा है।
श्री नाहटाजी का जन्म आज से ६७ वर्ष पूर्व वि० सं० १९६७ सन् (१९११ ई०) की चैत्र वदि ४ को राजस्थान के बीकानेर नगर में सम्पन्न जैन परिवार में हुआ था। पारिवारिक परिपाटी के अनुसार आपकी स्कूली शिक्षा अधिक नहीं हुई। पाँचवीं कक्षा की शिक्षा पूर्ण होने के पश्चात् सं० १९८१ में जब आपकी अवस्था १४ वर्ष की थी, पैत्रिक व्यवसाय-व्यापार में दीक्षित होने के लिए आपको बेलपुर कलकत्ते भेज दिया गया। स्कूली शिक्षा अधिक न होने पर भी अपनी अद्भुत लगन और अपने अध्यवसायपूर्वक निरन्तर अध्ययन के फलस्वरूप आपने अपने ज्ञान की परिधि को बहुत विस्तृत कर लिया।
सं० १९८४ में, १७ वर्ष की अवस्था में, आप श्री आचार्यप्रवर श्री कपाचंद्रसूरि के संपर्क में आये। यह आपके जीवन का एक महत्त्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। उसने आपके सामने आत्म शोध और साहित्य शोध का नया क्षेत्र खोल दिया; आपके जीवन की दिशा को व्यापार से बदलकर शोध-खोज की ओर मोड़ दिया। व्यापार से आपने मुँह नहीं मोड़ा पर अध्ययन और अनुसंधान ही अब जीवन का मुख्य ध्येय बन गया । इस क्षेत्र में भी आप सफलता की चोटी पर पहुँचने में समर्थ हुए। चार सौ (४००) से ऊपर पत्र पत्रिकाओं में ४००० से ऊपर लेख लिखकर एक कीर्तिमान स्थापित किया। आपने सहस्रशः ग्रन्थों का तथा शतशः प्राचीन साहित्यकारों का अन्धकार से उद्धार किया ।
नाहटाजी की कुछ उल्लेखनीय उपलब्धियों का उल्लेख इस प्रकार किया जा सकता है१. हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज
पिछले पचास वर्षों में नाहटाजी ने सैकड़ों ज्ञात और अज्ञात हस्तलिखित ग्रंथ-भंडारों की छानबीन की और सहस्रशः प्राचीन, नये और महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का पता लगाकर उनका उद्धार किया है। इनमें अज्ञात ग्रन्य भी हैं और ज्ञात ग्रन्थों की विशेष महत्त्वपूर्ण प्रतियाँ भी, जिनमें पृथ्वीराजरासो, वीसलदे-रास, ढोलामारू रा दूहा, वेलि क्रिसन रुकमणी री जैसे पूर्व ज्ञात ग्रन्थों की अनेक महत्त्वपूर्ण नयी प्रतियों; सूरसागर, पदमावत, बिहारी सतसई जैसे ग्रन्थों की प्राचीनतम प्रतियों तथा चंदायन, हम्मीरायण क्यामखाँ रासो एवं छिताईचरित जैसे अभी तक अज्ञात अथवा कम ज्ञात ग्रन्थों की विशेष रूप से उल्लेखनीय प्रतियों के नाम गिनाये जा सकते हैं।
नाहटाजी जब यात्रा में जाते हैं तो गंतव्य स्थानों पर जहाँ किसी हस्तलिखित ग्रन्थ-भंडार की सूचना उन्हें मिलती है वहाँ पहुँचकर उसको अवश्य देखते है और वहाँ विद्यमान महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का विवरण संकलित करके उसको प्रकाशित करवाते हैं।
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