Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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राजस्थान के शिलालेखों का वर्गीकरण
डॉ. रामवल्लभ सोमानी इतिहासकी साधन सामग्रीमें शिलालेखोंका स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। राजस्थानमें मौर्यकालसे ही लेकर बड़ी संख्यामें शिलालेख मिलते हैं । इनको मोटे रूपसे निम्नांकित भागोंमें बाँट सकते हैं :
१. स्मारक लेख २. स्तम्भ लेख ३. प्रशस्तियाँ ४. ताम्रपत्र ५. सुरट्ट व अन्य धार्मिक लेख ६. मूर्ति लेख
७. अन्य
स्मारक लेखोंमें मुख्य रूपसे वे लेख है जिन्हें घटना विशेषको चिरस्थायी बनाने के लिए लगाये जाते है। राजस्थानमें "मरणे मंगल होय"की भावना बड़ी बलवती रही है। युद्ध में मृत वीरोंको मुक्ति मिलनेका उल्लेख मिलता है। राजस्थानके साहित्यमें इस प्रकारके सैकड़ों पद्य और गीत उपलब्ध हैं किन्तु शिलालेखोंमें भी इस सम्बन्धमें सामग्री मिलती है। वि० सं० १५३०के डूंगरपुर के सूरजपोलके लेखमें उल्लेख है कि जब सुल्तान गयासुद्दीन खिलजीकी सेनाने दूंगरपुरपर आक्रमण किया तब शत्रुओंसे लोहा लेता हुआ रातिया कालियाने वीरगति प्राप्त कर सायुज्य मुक्ति प्राप्त की। लेखमें यह भी लिखा है कि स्वामीकी आज्ञा न होते हुए भी कुलधर्मकी पालना करता हुआ वह काम आया । इस प्रकार देशभक्तिसे ओत-प्रोत राजस्थानी जनजीवन एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करता आया है। हमारे राजस्थान के स्मारक लेखोंमें इसी प्रकारके लेख है जिन्हें मुख्यरूपसे इस प्रकार बाँट सकते हैं :-(१) सतियों के लेख (२) झंझार लेख (३) गोवर्द्धन लेख (४) अन्य आदि ।
सतियोंके लेख राजस्थानमें बड़ी संख्यामें मिले हैं। ये लेख प्रायः एक शिलापर खुदे रहते हैं। इसके ऊपरके भागमें सरज. चाँद बने रहते हैं। मत परुष और सती होनेवाली नारी या नारियोंका अंकन भी बराबर होता है । कई बार पुरुष घोड़ेपर सवार भी बतलाया गया है । १३वीं शताब्दी तकके लेखोंमें पुरुषोंके दाढ़ी आदि उस कालकी विशिष्ट पहिनावाकी ओर ध्यान अंगित करते हैं। इन लेखोंके प्रारूपमें मुख्य बात मृत पुरुषका नाम गोत्र आदि एवं सती होनेवाली स्त्रीका उल्लेख होता है । सती शब्दका प्रयोग प्रारम्भमें नहीं होता था केवल "उपगता" शब्द या इससे समकक्ष अन्य शब्द होता था। कालान्तरमें सती शब्दका प्रयोग किया गया है। इन लेखोंको "देवली संज्ञक" भी कहा जाता रहा है। १६वीं शताब्दी और उसके बादके उत्तरी राजस्थानके लेखोंमें प्रारम्भमें गणपतिकी वन्दना, बादमें ज्योतिषके अनुसार संवत्, मास, तिथि, वार, नक्षत्र, पल आदिका विस्तारसे उल्लेख मिलता है।
१. ओझा-डूंगरपुर राज्यका इतिहास ।
इतिहास और पुरातत्त्व : १२३
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