Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 697
________________ पर आक्रमणकी आज्ञा दे दी। पर उस समय गुजरात पहुंचनेका मार्ग मारवाड़ प्रदेश स्थित जालौरसे रोका था। उसने उस दशामें जालौरके राजा कान्हड़देके पास एक दूत भेजा कि वह उसकी सेनाको मार्ग दे दे। कान्हड़देने सुल्तानकी इस प्रार्थनाको मानना ठीक न समझा । उसने उसे मार्ग देनेसे अस्वीकार दिया। इसपर सुल्तानकी सेनाने मेवाड़ होकर गुजरातपर चढ़ाई की। मेवाड़ के रावल समरने उसे मार्ग दे दिया। सुल्तानकी विशाल सेनाके सामने गुर्जराधीश टहर न सका और पाटणपर सुल्तानकी सेना आधिपत्य हो गया। तत्पश्चात् सुल्तानकी सेना बढ़ती ही चली गई और उसने एक एक करके गुजरात और सौराष्ट्र के सम्पूर्ण स्थानोंपर अधिकार कर लिया। सोमनाथकी रक्षाका प्रयत्न राजपतोंने बड़ी ही वीरताके साथ किया किन्तु वे असमर्थ रहें और उन्होंने वीरताके साथ युद्ध करते हुए अपने प्राणोंको न्यौछावर कर दिया। गुजरात और सौराष्ट्रपर अधिकार करनेके अनन्तर सुल्तानकी सेना मारवाड़ की तरफ बढ़ी । कान्हड़देने अपनी सेनाको उसकी सेनाका सामना करनेके लिये उद्यत कर दिया था । अत: सुल्तानकी सेनाका सामना डट कर सोनगरा चौहान सेनाने किया । भीषण युद्ध हुआ। सुल्तानकी सेना इस बार विजय न प्राप्त न कर सकी। जालौरपर पुनः आक्रमण करनेकी सुल्तानने ठानी। पर इसबार जालौरपर सीधा आक्रमण न होकर जालोरके समीपस्थ स्थान समीयाणेपर आक्रमण किया गया। उस स्थानपर कान्हड़देका भतीजा सीतल सिंह राज्य कर रहा था । भतीजेको संकट ग्रस्त देखकर कान्हड़देने उसकी सहायता की। सुल्तानकी सेनाको पुनः पराजय स्वीकार करनी पड़ी। इन दोनों पराजयोंसे सुलतानको बहुत ही खेद हआ। वह लज्जाके मारे चिन्तित था और सदा इसी चिन्तामें था कि वह किस प्रकार उनसे बदला ले। पहलेके उपर्युक्त आक्रमणोंमें सैन्यका सञ्चालन उसके सेनापतियोंने किया था। इस बार उसने स्वत: सैन्यसञ्चालन की ठान ली। सैन्यसञ्चालनका भार अपने ऊपर लेकर उसने अवसर पाकर समीयाणेका घेरा डाल दिया। दलबादलसे आक्रमण करनेपर भी उसको सैन्यभार स्वयं लेना मंहगा पड़ा । यह घेरा सात वर्षों तक समीयाणे के चारों ओर डाले पड़ा रहा और अथक परिश्रमके पश्चात् भी उसपर अधिकार न कर सका। बल द्वारा गढ़पर अविकार न कर सकनेमें समर्थ अनुभव करके अलाउद्दीनने एक घृणित उपायका सहारा लिया। गढ़की दीवालों से डट कर बने हुए गढ़के भीतरके जलाशयको उसने अपवित्र करनेकी ठान ली। वह जलाशय ही एकमात्र जल प्राप्त करनेका साधन समीयाणे की जनताके लिए था। समस्त जनताका जीवन उसपर निर्भर था । ऐसा समझ कर उसने उस जलाशयमें गौवें कटवाकर डालनेका निश्चय किया। उस निश्चयके आधार पर उसने बहतसी गौवोंके मारे जानेका आदेश दिया। उन्हें मारे जानेपर उसने बोरों में बंधवाया और रातों रात उन्हें गढ़की दीवलपरसे जलाशयमें डलवा दिया। प्रातः होनेपर जब समीयाणकी जनताने यह दुष्कृत्य देखा तो उनके सम्मुख केवल दो ही विकल्प रह गये थे। वे या तो उस जलको ग्रहण करें जो दूषित ही नहीं वरन अपेय था अथवा जल त्याग कर अपने प्राणोंका उत्सर्ग करदें। वीर प्रसविनी भूमि राजस्थानके निवासी उस समय दूसरे विकल्पको स्वीकार कर अपने प्राणोंको देनेपर तत्पर हो गये। उनके साथ ही समस्त वीराङ्गनाओंने भी जौहर व्रतका पालन किया । इस समाचारको जब अलाउद्दीनने सुना वह स्तब्ध रह गया और उसने सान्तलके पास सन्देश भेजा कि वह उसका आधिपत्य मात्र ही स्वीकार कर लें और घेरा उठा लिया जाय। किन्तु सान्तल इस शर्तपर तैयार न हुआ । तदनन्तर सम्पूर्ण राजपूतसेनामें उत्साहका सञ्चार हो गया। उसने खुलकर सुल्तानी सेनासे एक साथ युद्ध किया और प्रत्येक वीरने लड़ते-लड़ते अपने जीवनकी बलि दे दी। समीयाणे पर आधिपत्य कर लेनेके पश्चात् अलाउद्दीनने कान्हड़देके पास सन्देश भेजा कि वह उसके २०८ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836