Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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नाहटाजी रो पुस्तकालय राजस्थानी रो तीरथ है । ओर सब बांता ने बाद देय' र खाली ओ संग्रहालय ही उण नैं अभिनंदन से अधिकारी बणा देव है । तीन चार बरस पैली मैं जद बीकानेर गयो तो स्टिरी री समाधि रा दरसण करणे रं बाद नाहटाजी रे संग्रहालय नै देखणे री इच्छा राखी--नाहटाजी टेम बीकानेर में नीं हा पण श्री श्रीलालजी नथमलजी जोशी म्हाने पूरो संग्रहालय दाखायो —अर मैं अनुभव करूँ कै बो पुस्तकालय नाहटाजी री राजस्थानी री सेवा रो इतिहासिक नमूनो हैं ।
मेरो नाहटाजी से मिलण रो सौभाग्य पैली पोत १९६५ में हुयो । ओर मैं अपने आप ने सौभाग्यसाली समझू के इण ६ बरसांमें नाहटाजी रो मनें औीस जोग स्नेह, मार्ग दर्शन व सहयोग मिल्यो । -राजस्थानी खातिर नाहटाजी हर रूप में, हर रंग में, तय्यार है । मैं लाडेसर रो प्रकासन बंद कर दियो पण आज भी ओजूं प्रकासन री पूरी-पूरी सम्भावना बणी पड़ी है— अरो श्रेय नाहटाजी अर ओंकार पारीक ने हैजिणारी चिढियां कम बेसी दिनां रै पछते सुंम्हारी दफ्तर री मेज पर आ धमकै अर मनें कर्तव्य रो बोध करावे । नाहटाजी ₹ बाबत ओर कुछ नीं लिख'र मैं कुछेक घटनावां रो जिकर कर्यो चावू हूं, जिकी के उण र व्यक्तित्व री मुहबोलती परतां है ।
प्रेरणा रा स्रोत
सन् १९६५ री बात है— कलकत्ता विश्वविद्यालय की ओर सूं आयोजित एक भाषण माला में श्री नाहाजी राजस्थानी साहित्य पर भाषण देणे खातिर आमन्त्रित हा । घणो दुःख है के बीं भासणां मांय मुस्किल से ४०-५० लोगों री उपस्थिति हो । उण दिनां मैं कानून अर कामर्सरी पढाई खत्म ही करी ही - सो विश्वविद्यालय से सम्बन्ध बणयोड़ो हो । भी भासण सुण्या । राजस्थानी ( मारवाड़ी ) लोगां नै, प्रवासमें खाली पीसो कमाणे हाकी कोम री दृष्टि सैं जाण्यो जावे है । हीन दृष्टि मैं देख्यो जायँ है । बाहरी लोगां नै आ ही बात नजर आवै-पण साच तो कुछ ओर ही है । मेरो ओ निश्चित मत हो के आवां आपण भासा नै उजालैमें नई ल्यावां जद तक आपण समाज रो ऊजलो रूप भी चौड़े नई' आ सकै । पण मेरो ज्ञान आपणी भासा रै सम्बंध में बिल्कुल थोड़ो हो, अ बोल' र पुराणा एनसाइक्लोपिडियाज अर दूजा ग्रंथ बांचणा पङ्या –मनमें ढाढस बंधी के राजस्थानी अक सुतंत्र व समरथ भासा रैई है । कलकत्ते में राजस्थानी रो कोई उत्साहवर्द्धक वातावरण नई हो । श्री अम्बू शर्मा मैं थोड़ी भोत चरचा होती अर म्हे दोनू बिना पांख ₹ पक्षियां री तरै कोसीसां करता, उड़ान नीं भर पाता । नाहटाजी से ओं भासण मालां री टेम भेंट हुई । मारवाड़ी छात्र संघ में मैं उण रो भासण आयोजित करवाणो चावे हा — मैं नाहटाजी ने पूछ्यो के आप राजस्थानी भासा री संवैधानिक मान्यता रै सन्दर्भ में बोलणैरी कृपा करोगा के ? नाहटाजी जो सबद म्हाने कैया, बै आज भी मेरे याद है ।" ओं दिसामें सोचणियां अर सुणणिया लोग अठे है के ?" अर म्हाने बै कैयो के आपण भासा हर कसौटी पर हर टेस्ट पर पूर्ण भासा है— कोई भी इसो प्रश्न उठ जीं रो उत्तर थे नई दे सको तो मनैं लिख दियो — पूरी खातिरी सैं आपां पेटो भर देवागा । थे कोई तर मैं भी त घबरायो ।
मैं आज आ बात लिखतो नीं हिचकिचाऊँ के उण री ओं तरं री बातां रै कारण भी म्हें कलकत्ते में राजस्थानी रो सुवाल बुलन्द कर्यो अर लाडेसर रै रूपमें विरोधियांरी चुनौतियां रो उत्तर दे सवया । लाडेसर रे सुरूरा अंक देखकर कुछ साहित्यकार जिणां नै म्हे म्हारी कमियां बता दी ही, बीं ₹ बावजूद भी आ राय दी 'कै म्हे लाडेसर बन्द कर देवां ओर कुछ दिनां उणरं द्वारा बताये गये साहित्यकारां सैं राय मसविरों करां, दिग्दर्शनमें काम करूं । बी टेम डा० मनोहर शर्मा अर रावत सारस्वत रे अलावा श्री
२६६ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रंथ
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