Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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जंब वह एजेण्ट इस प्रकार आठ-दस पुस्तके दिखा गया और सभी पुस्तकोंको लेकर श्रीनाहटाजी यही 'एक संकेत' रहा- उन्हें यह रुचिकर नहीं है। तो अपना सौदा बना हुआ न देखकर वह झुंझला उठा। मुझे खादी कपड़ों में, काला चश्मा लगाये, टिपटाप जो देखा, तो समझा-सम्भवतः श्रीअगरचन्द नाहटा यही है । इसके पास मैं बैठा तो कोई अन्य व्यक्ति हो सकता है। अपनी झुंझलाहट और खोजमें आकर उसने कहा, 'देखिए, मैं ये ढेर सारी पुस्तके आपको नहीं दिखा रहा हूँ-श्री अगरचन्द नाहटाको दिखा रहा हूँ; फिर आप बीच-बीच में सिर क्यों हिला रहे हैं ?
___ अब तो मैं बड़े जोरसे हँस पड़ा । मैंने कहा-भाई! तुम जिसे श्री अगरचन्द नाहटा समझे बैठे हो, यह तो मोहनलाल पुरोहित है । श्री अगरचन्द नाहटा तो यही हैं, जो यह पासमें बैठे हुए हैं। बेचारा पुस्तक एजेण्ट अब क्या कुछ बोलता । उसने पुस्तकें उठाईं, थैला सम्भाला और चुपचाप वहाँसे चल पड़ा।
[तीन ] श्री नाहटाजीकी यह प्रमुख विशेषता रही है-वे सभी साहित्यकारों, कलाकारोंका समान दृष्टिसे सम्मान करते हैं। यह छोटा है या बड़ा, ऐसा भेद-भाव श्री नाहटाजीके यहाँ कहाँ ? जब भी किसी साहित्यकारसे भेंट होगी, फौरन पूछेगे--क्या कुछ हो रहा है ? और फिर उसे भविष्यके लिए प्रेरित करते रहते हैं। कहने का तात्पर्य यही कि श्री नाहटाजी अपनी ओरसे सभी साहित्यकारोंको प्रेरणा देते ही रहते हैं।
श्री नाहटाजी जितने विशाल और खुले हृदय के हैं, उनका पुस्तकालय [ श्री अभय जैन-ग्रन्थालय ] भी सभी साहित्यकारोंके लिए समान रूपसे खुला रहता है। कभी भी कोई साहित्यिक-बन्धु चला जाये, वे अपने सभी आवश्यक कार्योंको एक ओर रख उस साहित्यकारको उसकी इच्छित पुस्तक फौरन दिलवाने की व्यवस्था कर देते हैं। कभी ऐसा रहा है-पुस्तकालयके प्रबन्धकको पुस्तकके निकालने में विलम्ब हो जाता है तो श्रीअगरचन्दजी नाहटा स्वयं उठकर पुस्तक निकालकर ले आते हैं । पाठकोंको यह पढ़कर हर्ष भी होगा तो ताजुब भी-श्री नाहटाजी साहित्यिक-बन्धुके घर स्वयं जाकर पुस्तक पहुँचा आते हैं। मेरे जीवन में ऐसे अनेकों अवसर आये है, जब श्रीनाहटाजी मुझे पुस्तकें घर आकर दे गये हैं। वे यह सहन नहीं कर सकते-एक साहित्यकार पुस्तक-विशेषके अभावमें अपना समय नष्ट करे और साथ-ही प्रतिभाका उपयोग न कर सके।
श्री नाहटाजीको, उनकी विशेष वेष-भूषा देखकर कोई भी व्यक्ति सहजमें अनुमान नहीं कर सकतायह एक इतना बड़ा साहित्यकार भी हो सकता है । यदि मेरा अनुमान सही है तो मैं कह सकता हूँ कि भारतवर्ष तो क्या विदेशोंमें भी ऐसा एक-आध ही साहित्यकार रहा होगा जो शोध-निबन्ध जैसी गहनविद्याको लेकर श्री नाहटाजीकी समतामें खड़ा होने का साहस कर सकता हो। श्री नाहटाजी ऐसे एक व्यक्ति हैं जिन्होंने आजतक चार-पाँच हजार निबन्ध लिखकर माँ-सरस्वतीके भण्डारकी श्रीवृद्धि करनेका सौभाग्य प्राप्त किया है। इनकी इस अपूर्व साधना पर जहाँ मरुभूमिको गौरव है, उनके मित्र वर्गको भी-उनपर बहुत बड़ा अभिमान है।
एक बार श्री नाहटाजी मेरे घर पर आये। उस समय तक न तो पत्नी ही उन्हें जानती थी और न बच्चोंका ही उनसे साक्षात्कार हो सका था। सुबहका यही कोई साढ़े आठ-नव बजेका समय था। उन्होंने दरवाजे पर आकर आवाज लगाई, पुरोहितजी हैं क्या ? मेरी बड़ी लड़की ( आज वह ३४-३५ वर्ष की है) ने फौरन दरवाजा खोला और पूछा आप कौन ? उत्तर मिला, 'हूँ अगरो।'
__मैं उस समय अपने अध्ययन-कक्ष [ Study Room ] में एक कहानी लिख रहा था । दूसरी मंजिल पर कमरा ऊँचा होने के कारण बच्चीने बड़े जोरोंकी आवाज लगाई, 'पिताजी ! एक आदमी आया है।'
३४० : अगरचंद नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ
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