Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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आपका जीवन न केवल गृहस्थोंके लिए ही अनुकरणीय व श्रद्धास्पद है अपितु साधु-जीवनके लिए भी सदा प्रेरणादायी रहा है । गृहस्थ होते हुए भी एक आदर्श सन्तके समान आपकी जीवनचर्या है । सब प्रकारसे सम्पन्न परिवार में जन्मे व पले श्री नाहटाजी कभी भी सांसारिक-भौतिक आकर्षणोंकी ओर आकर्षित नहीं हए, कभी भी भौतिक देह-सुखको अपना जीवन-लक्ष्य नहीं बनाया, किन्तु इसके साथ ही अपने सांसारिक कर्तव्योंके प्रति भी कभी भी विमुख नहीं रहे। आज भगवत्-कृपासे आपका पुत्र-पौत्रादिसे भरा-पूरा परिवार है, सभी प्रकारकी सुख-सम्पन्नता है किन्तु आपका अन्तर्मन इन सबके प्रति निर्लिप्त, निर्मम तथा अनासक्त है।
पू० श्री नाहटाजीको जितनी निकटतासे देखते हैं, आपकी उच्चताकी भावभूमि अधिकाधिक उच्च होती हुई ही पाते हैं। हम अनुभव करते हैं कि आपका जीवन गीतोक्त स्थितप्रज्ञ तया दैवी गुणसम्पदासे संयुक्त है। विकास ही आपका जीवन-सूत्र है। अपना विकास व सबका विकास, इसीकी प्रभासनामें आप निरन्तर लगे रहते हैं। सबको सतत आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देना आपका स्वयं-स्फूर्त स्वभाव है। चाहे कोई साधु हो या गृहस्थ, युवा हो या वृद्ध, विद्यार्थी हो या व्यवसायी, आप सभीको सही जीवन-दिशा देने, सभीके अन्तरमें छिपी आत्मशक्तिको जागृत करनेका प्रयास करते रहते हैं।
आपका सम्पूर्ण जीवन आध्यात्मिकतापर आधारित है। अतः आप साधक पहले है तथा और कुछ बादमें । आगम-ग्रन्थोंमें वर्णित साधनाके विभिन्न सोपानोंके अनुसार आपकी आत्म-विकास-विषयिनी ध्यानसाधना सदा चलती रहती है । इस युगके महान् योगी श्री कृपाचन्द्रजी सूरिजी महाराज तथा श्री सहजानन्दजी महाराज आदिके साथ आपका केवल वाह्य सम्पर्क ही नहीं रहा है, अपितु आत्म-विकास-विषयक आन्तरिक सम्पर्क भी रहा है और उनकी आन्तरिक शान्तिसे अनुप्राणित होकर आपने अपनी अन्तश्चेतनाको जागृत किया है।
__ इसमें कोई सन्देह नहीं कि आत्म-शिल्पी व आत्मजयी व्यक्ति अपने विकास-पथपर सदा बढ़ता ही जाता है, चाहे परिस्थिति उसके अनुकूल हो या प्रतिकूल । प्रायः ऐसा भी अनुभवमें आता है कि परम्परित जीवन-यापन मार्ग व लक्ष्यको छोड़कर अपने व अपने परिवारके लिए सर्वथा नये उद्देश्योंकी प्राप्तिकी ओर जब कोई बढ़ता है तो उसके परिजन किसी अंशमें बाधक हुआ करते हैं। इस दृष्टिसे आप बड़े भाग्यशाली हैं क्योंकि आपका परिवार सदा ही आपकी साहित्य-साधनामें सहयोगी ही रहा है। आपके अग्रज सेठ श्री शुभराजजी व मेघराजजीको आपके सुजन-कार्योपर सदा गर्व रहा है तथा आपके भतीजे श्री भंवरलालजी तो सही अर्थमें आपके अनुयायी ही हैं। वे स्वयं आत्मज्ञान-पिपासु, अच्छे लेखक तथा कुशल वक्ता हैं। उन्होंने अनेक प्राचीन आगम-ग्रन्थोंका आपके साथ सम्पादन किया है और वर्तमानमें "कुशल निर्देश" मासिक पत्रका सम्पादन भी आपके आग्रहपर्ण आदेशसे कर रहे हैं।
आपकी दृष्टि विशाल है। जैन-धर्मके चारों सम्प्रदायोंके साधु-साध्वियोंके प्रति आपकी श्रद्धा-दृष्टि एक समान है । यही नहीं, संत तो सभी धर्मोके आपके लिए सदा ही पूज्य एवं वन्दनीय हैं । इसी प्रकार विद्वान व विचक्षण, चाहे कहींका भी क्यों न हो, उसे आप अवश्य ही सुनते हैं और सम्मान देते हैं। सार-ग्रहणमें किसी भी प्रकारका संकोच-भाव आपमें नहीं है।।
श्रमण-संस्कृतिके इस उन्नायक तपस्वीसे हमें बहुत आशा-आकांक्षाएं हैं । 'सर्वजनहिताय' व 'सर्वजनसुखाय' के अमर सूत्रोंको अपने में समाहित करनेवाली हमारी श्रमण-परम्पराके व्यापक प्रचार व प्रसारके लिए आपका सत्प्रयास सदा चलता रहे। आप सुदीर्घ काल तक अपने मनन, चिन्तन व सृजनसे संसारको सही दिशाबोध देते रहें, यही भगवान महावीरसे मेरी अन्तःकामना है।
३८८ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ
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