Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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ग्रन्थोंके माध्यम से प्रस्तुत किया है । हिदीके विद्वान् 'डिंगल' काव्यकी रूढ़ियों और रचनागत विशिष्टताओं के विषयमें निर्भ्रान्त नहीं थे। नाहटाजीने उस भ्रांतिका मूलोच्छेदन कर दिया है और आजके राजस्थानी साहित्यका प्राचीन साहित्यसे संबंध दिखलाकर परम्परा का निर्धारण भी किया है ।
राजस्थानसे जैन दर्शन कला एवं साहित्यका प्राचीन एवं मध्यकालमें खूब विकास हुआ परन्तु उसके विषयमें अभी तक प्रामाणिक सामग्री का अभाव था। श्री अगरचन्द नाहटाने प्राचीन जैन साहित्यको प्रकाशित कर इस अभावकी पूर्ति की उन्होंने इसी संदर्भ में 'जिनराजसूरिकृति कुसुमांजलि', 'सीताराम चौपाई, 'जिनहर्ष ग्रन्थावली' आदि ग्रन्थरत्नोंका संपादन किया है। जैन-मतका जो प्रभाव राजस्थानी कला एवं साहित्यपर पड़ा, उसका सही मूल्यांकन उन्होंने किया है।
श्री अगरचन्द नाहटा भारतीय विद्याके व्याख्याता और प्रकाशक ही नहीं उसके अद्वितीय संकलनकर्ता भी हैं । प्राचीन साहित्यकी संस्कृत, प्राकृत, पाली, अपभ्रंश जैनमागधी, गुजराती, राजस्थानी, ब्रजभाषा आदि भाषाओं में हस्तलिखित प्रतियोंका जैसा प्रामाणिक संकलन श्री नाहटाजीके पास उपलब्ध है वैसा भारतके दो-एक विद्वानोंके पास ही मिल सकता है दो वर्ष पूर्व मैंने 'भारतीय अङ्गविया' पर । कुछ लिखनेकी बालसुलभ चेष्टा की थी। तदर्थ मैंने श्रद्धेय प्रो० कृष्णदत्त वाजपेषीसे निवेदन किया था और निर्देशन मांगा था। उन्होंने इस संदर्भमें श्रीनाहटाका उल्लेख करते हुए मुझे जो पत्र लिखा था, वह इस प्रकार है
प्रिय वाजपेयी जी,
सागर विश्वविद्यालय दि० जु० २३, १९६९
नमस्कार
आपका ८-३-६९ का पत्र यथा समय मिला था। यह जान कर प्रसन्नता हुई कि आपने 'अंगविज्जा' ग्रन्थका अध्ययन किया है तथा उसके अनुवादमें आपकी रुचि है । मेरे विचारसे इस ग्रन्थ तथा तद्विषयक अन्य साहित्यके आधारपर आप हिन्दी में 'भारतीय अंगविद्या' शीर्षक नया ग्रन्थ लिखे.... आपको इस विषयका साहित्य बीकानेर में श्री अगरचंद नाहटाके पुस्तकालयमें तथा जोधपुरके प्राच्यविद्या प्रतिष्ठानमें प्राप्त हो सकेगा ।
भवदीय ० कृष्णदत्त वाजपेयी प्राचार्य तथा अध्यक्ष
प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति तथा पुरातत्व विभाग, सागर विश्वविद्यालय
किन्हीं कारणोंसे में उस कार्यसे विरत रहा किन्तु पूज्य बाजपेयीजीके पत्रसे सहज ही ज्ञात होता है कि श्री अगरचन्द नाहटाका हस्तलेखागार कितना मूल्यवान है 'राजस्थानी हस्तलिखित ग्रन्थोंका विवरण' नामक ग्रन्थ में श्री नाहटाजीने काफी ग्रन्थों का परिचय भी दिया है। अच्छा हो, अपने वास रखे सभी ग्रन्थोंका ऐसा ही विवरण वे प्रस्तुत करें, जिससे लोग लाभान्वित हो सकें ।
श्री नाहटाजी भारतकी प्राचीन भाषाओं संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदिके प्रकाण्ड विद्वान् हैं ।
१. ये तीनों ग्रन्थ श्री शार्दूल शोध संस्थान बीकानेरसे प्रकाशित हुए हैं ।
३४६ अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रंथ
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