Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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उन्हें "जैनसंघरत्न" "राजस्थानी साहित्य वाचस्पति" एवं "जैनजगतके चाँद" आदि उपाधियोंसे अलंकृत कर उनके जीवनमें चार चांद अवश्य लगाये हैं।
बिना किसी भी डिग्रीको हासिल किये ही जैन जगत में उथल-पुथल मचा देने वाले मूक सेवक व मिलनसार सहयोगी और वस्तु स्थितिको परखनेवाले यशस्वी कर्मवीर आप सदा रहे हैं हमारे श्री नाहटाजी।
सरस्वतीके वरदपुत्र हैं ही, महादेवी लक्ष्मीको भी हार खानी ही पड़ी। कमाया भी खूब व दान दिया भी खब आपने अपने जीवनकालमें । बड़े परिवारके प्रमुख होकर भी हमारे नाहटाजी सदा हर काम में अपने पारिवारिक जनों व मित्रोंसे खूब ही सलाह मशविरा किये बिना कोई नया काम कभी नहीं करते हैं। यही वजह है कि आपको सदा अपने हर काममें गहरी सफलता मिलती है।
विचारोंके बड़े बलवान धीर पुरुष सदा रहे हैं। कम बोलना और जो भी बोलना, तोल-तोलकर बोलना उनमें दैवी गुण है। घर व परिवार में भी इसी मर्यादाका पूर्ण पालन करना-कराना उन्हें अत्यधिक प्रिय भी है तथा घर आये मेहमानका भ्रातृवत् सत्कारसम्मान करना उन्हें सबसे ज्यादा प्रिय लगता है। परिवारके हर बन्धु चाहे छोटा या बड़ा हो, नित्य पूछताछ करना, दैवी गुणोंकी एक उनकी थाती रही है।
सन्तोंका समागम तो इतना उन्हें सुहाता है कि वे घण्टों उनके चरणोंमें ज्ञानच में बिता देते हैं। आगम, शास्त्र, व्यवहार, लौकिक आदि मसलोंपर तरह-तरहका विचार, समीक्षा, वादविवाद करना उन्हें प्राणवत् प्रिय है । पर जहाँ भी सम्प्रदायवादकी बू दिखी, उठकर चल दिये वहाँसे। पं० रत्न आचार्य प्रवर श्री हस्तीमलजी महारासाबके अनन्य भक्त होते हुए भी वक्त-वक्त उनसे अपनी बातोंके लिए अड़ जाया करते हैं । आप जब तक निष्कर्ष पूर्ण नहीं पा जाते स्थानक ही में वासा कर देते देखे गये हैं।
लेखकके साथ तत्त्वज्ञ विचारक भी नम्बर एकके रहे हैं । साहित्यप्रेम, साहित्यसृजन व पठन-पाठनका भी उन्हें कम शौक नहीं। हम नित्य ही पत्र-पत्रिकाओंमें उनके लेख-सामग्री देखते ही रहते आये हैं। लेखन शैली आपकी उत्कृष्ट व मँजी हुई सदा दिखी है। आप उपदेशात्मक लेख नहीं लिख, जीवन में सुधार लाने वाले लेख अमूमन लिखते अत्यधिक हैं।
प्राकृत साहित्यका हिन्दी रूपान्तर करने-करानेका काम आपने बहुत कुछ किया है तथा स्वबुद्धिसे प्रयोग खुदने बहुत किया है।
कार्य जो छेड़ दिया उसे पूर्ण तो करना ही चाहिए, उनसे यह सबकरूप सीखा ही जा सकता है ।
पदके कायल श्री नाहटाजी कभी नहीं रहे। मेरी भावनाका वह श्लोक-'लाखों वर्षों तक जीऊँ या मृत्यु आज ही आ जावे" या "कोई बुरा कहे या अच्छा लक्ष्मी आवे या जावे" वे सदा याद रखते हैं। लक्ष्मी आवे या जावे जीवन में कभी गहन विचार किया तक नहीं। सदा विनीत रहनेवाले कर्मठ कर्मवीर हैं।
विएगएण णरो गंधेण, चंदण सोमयाई रयणियरो
__ महुरर सेण अभयं, जण पिय्यतम् लहई भुवणे ॥ अर्थात् जैसे संसारमें सुगन्धके कारण, चन्दन, सौम्यताके लिए शशि एवं मधुरताके लिए अमृत यशस्वी है इसी प्रकार विनयके लिए ही मनुष्यके आपका प्रिय बने हुए हैं। उन्होंने जीवनमें घमण्ड तो
व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : ३५९
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