Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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२. काल करै सो आज कर, आज करै सो अब ।
पलमें परलं होयगो, बहरि करैगो कब ॥ ३. रे मन अप्पह खंच करि, चिन्ता जाल म पाड़ि।
फल तित्तउ हिज पामिस्यइ, जित्तउ लिह्य उ लिलाड़ि। सरलता और सादगी नाहटाजीके जीवनके अन्यतम गुण हैं । आचार और विचारोंकी एकरूपता ही उनके निर्मल व्यवहारकी कुन्जी है । मुझ पर उनका जो अपार स्नेह है, उसीका परिणाम है कि मैं अनेकानेक बाधाओंके बावजूद 'महाकवि समयसुन्दर और उनको राजस्थानी रचनाएँ' विषय पर शोध प्रबन्ध लिखकर उनके प्रारम्भ किये कामको कुछ आगे बढ़ा सका हूँ। उनके अभिनन्दनके इस पावन अवसर पर मैं उनके दीर्घायुष्यकी मंगलकामना करता हूँ।
नाहटाजीके अभिनन्दनको अभिवंदन !
श्री नाहटाजी, शोधके प्रेरणा-स्रोत
श्री वेदप्रकाश गर्ग
परम श्रद्धेय श्रेष्ठिवर श्री अगरचन्दजी नाहटा तथा उनके भ्रातपुत्र श्री भंवरलालजी नाहटा, राजस्थान, देश तथा हिन्दी-जगत् के विश्रुत, स्वनामधन्य शोध-मनीषी है। लक्षाधिक धार्मिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं कलापूर्ण ग्रन्थों और कृतियों के पुनरुद्धारक, संग्रहकर्ता तथा प्रसारक इन विद्वद्वयने अपनी आदर्श-सेवाओंसे एक विशिष्ट पद प्राप्त किया है।
श्री भंवरलालजी नाहटाके लेखोंको मैं पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ता रहा है, लेकिन मेरा प्रत्यक्ष कोई सम्बन्ध उनसे नहीं रहा और न ही कभी साक्षात्कार का सौभाग्य प्राप्त हो सका, किन्तु श्री अगरचन्दजी नाहटासे मेरा एक शोधकर्ताके नाते बराबर सम्बन्ध बना रहा है। उनके दर्शनोंका सौभाग्य भी मुझे प्राप्त हुआ है। ब्रज-साहित्य-मंडलके मथुरा अधिवेशनके अवसरपर वे साहित्य-परिषद्की अध्यक्षता करने के लिए वहाँ पधारे थे। मैं भी उक्त अधिवेशनमें मण्डलका सदस्य होने के नाते, भाग लेने के लिए मथुरा गया था। वहीं उनसे भेटका अवसर मिला था। मेरा उनसे पत्र-सम्बन्ध इस भेंटसे पूर्व ही हो चुका था। अतः बड़ी आत्मीयतासे उन्होंने मुझसे बात-चीत की। उनका अध्यक्षीय-भाषण उनकी विद्वत्ताके अनुरूप अनेक ज्ञातव्योंका भण्डार था।
दैवी कृपासे अनुसन्धान-कार्यमें रुचि होने के कारण मैंने प्रारम्भसे श्री नाहटाजीको अपना आदर्श समझा है। उनकी कार्य-प्रणालीको अपनाकर उनके चरण-चिह्नोंपर चलनेका यथासामर्थ्य कुछ प्रयास किया है। शोध-विषयक जब भी कोई समस्या मेरे सामने आयी, मैंने.श्री नाहटाजीको कष्ट दिया। उन्होंने निस्संकोच तरन्त सहायता कर मेरी कठिनाइयोंको दूर किया। वे इस प्रकारके सहायता-कार्यके लिए सदा तत्पर रहते
व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : ३५७
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