Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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प्रभावित किया । सत्साहित्य आपको जहाँ भी और जिस भी भाषामें मिला, आपने उसका आस्वादन करनेका प्रयास किया । यही कारण है कि आपका प्राकृत, पाली, अपभ्रंश, गुजराती, संस्कृत हिन्दी और राजस्थानी पर असाधारण अधिकार है ।
" सादा जीवन और उच्च विचार" की उक्तिको चरितार्थ करनेवाले सौम्य स्वरूप श्री नाहटाजीको मैंने देखा तो मैं आश्चर्यचकित रह गया । राजस्थानी पगड़ी, बन्द गलेका जोधपुरी कोट, धोती और देशी जूतियाँ यह है आपका पहनावा ।
आपकी साहित्य - साधना और साहित्यानुरागका क्या कहें ? आप द्वारा संचालित आपका "अभयजैन ग्रंथालय " बेजोड़ ग्रन्थालयों में से है, जिसमें गुण और परिमाण दोनों ही दृष्टियोंसे देखने पर साहित्यका वैविध्य मिलता है । जिस प्रकार जैन-यतियोंने अपने उपाश्रयों में साहित्यको सम्हाला, उसका पोषण तथ संवर्धन किया, वैसी ही प्रवृत्ति आपकी भी है । एक ओर जहां आप ग्रन्थालय में आये शोध - विद्वानोंकी समस्याओंका समाधान करते हैं, वहाँ दूसरी ओर आप वहीं बैठकर ढेर सारे पत्रोंका प्रतिदिन उत्तर देकर साहित्य-तृषितों को तृप्त भी करते हैं । नाहटाजी के जीवन और साहित्य-साधनाका यदि सही रूपसे आकलन किया जाये तो उनका व्यक्तित्व और कृतित्व अलगसे एक शोध-प्रबन्धका विषय बन सकता है |
श्रीनाहटाजीका जीवन और साहित्य दोनों ही बहुमुखी रहे हैं । एक ओर जहाँ अनेक पत्र-पत्रिकाओं में हजारों लेख लिखकर आपने प्राचीन तथा अर्वाचीन विशाल राजस्थानी साहित्यको प्रकाशमें लाने का अथक प्रयास किया है, वहाँ दूसरी ओर आपकी शोधकी पैनी दृष्टि तथा सम्पादन कार्यमें कुशाग्रता दिखाई देती है । राजस्थान ही नहीं वरन् भारत का ऐसा कोई प्राचीन पुस्तक भंडार शायद ही शेष रहा हो जिसका अवलोकन आपने न किया हो । आपने व्यक्तिगत रूपसे तथा सह-सम्पादकके रूपमें अनेक प्राचीन ग्रन्थोंका संपादन किया है, जिनमें प्रमुख हैं: सीताराम चौपई, जिनहर्ष ग्रन्थावली, ग्रन्थावली, छिताई चरित्र, क्यामखांरासा और भक्तमाल आदि ।
धर्मवर्द्धन ग्रंथावली, पीरदान लालस
शोध-कार्यमें व्यक्तिगत रुचि लेकर शोध- सम्बन्धी तथ्योंको प्रकाशमें लानेके लिए भरसक चेष्टा करते हैं और शोधार्थियों से पूर्ण आत्मीयता रखते हुए उन्हें दिशा-संकेत देकर उनका मार्ग प्रशस्त करते हैं । द्वारा लिखे गये लेख चुस्त, छोटे तथा तथ्यपरक अधिक होते हैं और उनमें अनावश्यक सामग्री के लिए कोई स्थान नहीं होता । 'साहित्यकार की कृति में उसका व्यक्तित्व झाँकता है' के अनुसार आपके लेखोंको पढ़कर कोई भी जानकार यह सहज ही पता लगा लेता है कि अमुक लेख नाहटाजी द्वारा लिखित है ।
साहित्यके चयनमें समाज, धर्म, जाति आदिकी संकीर्णताओंसे ऊपर उठकर जहाँ भी और जब भी किसी साहित्य में आपको नवीनता दिखाई दी आपने उसे आदर दिया और अपने ग्रन्थालय में उसकी पाण्डुलिपियाँ मँगवाने का प्रयास किया । आपके अभय जैन ग्रन्थालय में जहाँ एक ओर जैन साहित्य और जैन दर्शन के अलभ्य और पुरातन ग्रन्थ मोजूद हैं, वहाँ दूसरी ओर चारण साहित्य, इतिहास, दर्शन, धर्म, जीवनियाँ आदि से सम्बन्धित ग्रन्थ भी पर्याप्त मात्रामें हैं। देश के विभिन्न भागोंसे आने वाली सभी पत्र-पत्रिकायें अपने पुराने और दुर्लभ अंकों सहित आपके यहाँ मौजूद हैं। लगभग ३५,००० हजार पांडुलिपियों का संग्रह आपके यहाँ
। किसी भी विश्वविद्यालयका कोई भी शोध - विद्वान् आपके यहाँ आकर इन पुस्तकों का लाभ ले सकता है । मेरा तो यह दावा है कि एक बार आपके संपर्क में आ जाने पर कौन ऐसा व्यक्ति होगा जो आपके गहन साधनामें रत श्रीअगरचन्दजी नाहटाके इस अभिनन्दन - पर्व पर मैं आपका हार्दिक
पाण्डित्यसे प्रभावित न हो ।
सरस्वती
व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : ३४३
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