Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
रो अध्ययन करो। जद घड़ो भरीजै तो पाणी बार आवै ई। अठार बरसां री ऊमरमें आपरै विचारामें परिपक्वता आवण लागगी अर उणी दिनां आप 'विधवा कर्तव्यं नांव सूहिन्दीमें पोथी लिखी जिकी सं० १९८६ वि० में छपगी।
गौतम बुद्ध नै हर बगत ऊं डै विचारामें डुब्योड़ा देखर माईत डरचा के बेटो हाथ मांय सू निकले है। इणी तर व्यापार खानी कम रुचि अर साहित्यमें अगाध प्रेम देखर आपरै माईना सोच्यो के टाबर हाथ सूं नई निकट जावै । ज्यू राजस्थानी साहित्य री भूख तिस डाक्टर टैसी टोरी नै अळेगी इटली सू ठेट भारत अर बीकानेर तई लिआई, इणो तरै ग्यान री भूख. तिस तूं युवक नाहटो जी इत्तां तड़फण लागग्या के आपरो निजू ग्रन्थागार बणायां बिना काम पार पड़तो ओखो लागण लागग्यो । इण कारण आप जेष्ठ भ्राता स्व० अभयराजजी री यादमे श्री अभय जैन ग्रंथालय री स्थापना करी, जिणमें आज चालीस हजार छप्पीड़ी पोथ्या अर लगभग चालीस हजार ई पाण्डुलिप्यां है। शोधार्थियां-सारू इत्ती सामग्री अक ठौड़ मिलण आळा इणी-गिणी संस्थावांमें इण रो स्थान है ।
इण ग्रंथालय री स्थापना तूं आपरै ग्यानार्जन री लगन तो साबित हुवै ई है, इण र साग समाज नै लाभान्वित करण री अर स्वार्थ-त्याग री भावनावां भी चवड़े आवे । इसा मोकळा मिनख है; जिका हजारू ग्रन्थ आपरै निज संग्रहमें धर राख्या है, पण दूजे आदमी नै पोथी रै आंगळी ई लगावणदै कोनी, बांचण खातर देवणो तो अळगो रैयो। पण नाहीजी रै ग्रन्थालय रो ना तो कोई प्रवेश शुल्क है; ना मासिक शुल्क, ना बढ़ जामनी रा रुपिया भरणा पड़े । आप पांच, दस, बीस, जच जित्ती पोथ्यां घरे लावो, परोटो, लिछमी रै लाडलमें इत्ती उदारता? पण बेटो सरस्वती रो है नी । इण उदारता रो दुरुपयोग भी हुवैकोई पोथ्यां पाछी आवै कोनी, केई फाट-फटर आवै, पण फेर भी पढारां खातर श्री अभय जैन ग्रन्थालय रा बारणा खुल्ला है।
छोटा तो बड़ां नै जाणे पण बडीड़ा छोटा नै ओळखै कोनी। नाहटजी नै आज सूं ३६ बरसां पली म्हैं जन-समाज रै अंक उत्सव माथै देख्या । रामपुरिया जैन स्कल रे विद्यार्थी र नात, म्हारो भी अक-दो गीत गावण रो 'आइटम' हो । हजारूं मिनख लगायां री भीड़, अंक तेईस-चौईस बरसां रो पंछो जवानतीन लांग री धोती, चुण्योड़ो चोळो, केसरिया पाध-राजस्थानीमें भासण देव। उण बगत मनै ठा पड़ी कोनी के वक्ता राजस्थानी अर शोध रा उदीयमान विद्वान श्री अगरचन्दजी नाहटो है। इण र थोड़ा बरसां पछै जद राजस्थानी विद्यापीठ रै तत्वावधान में साप्ताहिक गीस्ठ्यांमें मिलणो हुयो, तो बो जूनो चितराम फेर उभरग्यो अर ध्यान आयो के उण दिन श्री अगरचन्दजी नाहटो ई हा।
जिका अणजाण शोधार्थी बार सू PH. D. करण खातर नाहटजी कनै आवै, बारी कल्पना सदेई धोखा खावती रैसी । आज जद आडै सू आडो आदमी पैंट पैरै इण हालतमें आवणआळां रै मनमें भाव उठ-नाहटोजी मूछया सफाचट राखता हुसी, टेरालीन रा पैंट-बुशर्ट पैरता हसी, टाई तो पक्कायत लगावता हसी, काई ठा बीकानेर ययां सू बोलसी' क नी ? पण अठ आयां सगळा भय भाग जावै। कल्पतरु ज्यू आप सगळी मनोकामना पूरै। तरु इण खातर के ग्रन्थालयमें आयां पछै 'तरु' खिसक तो खिसकै--ईत्ता आप आसण रा साचा है। इणी कारण जिका भी शोधार्थी अठ आवै, बांरो सगळो प्रयोजन सध जावै अर ब्रै पाछा हरख्या हरख्या जावै।
डा० टैसो टोरी, पं० सूर्यकरणजी पारीक अर प्रो० नरोत्तमदासजी स्वामी राजस्थानी भासा रै प्रचार बाबत जिको काम सरू कर्यो, उण सू नाहटोजी बैगा ई प्रभावित हुयग्या अर आपरी आ धारणा
व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : ३२३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org