Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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श्रीनाहटाजीको प्रत्येक विद्वानसे कार्य करवामेकी अनोखी सूझ है। वे जितने ज्ञानी, गुणी और मर्मज्ञ हैं उतने ही व्यवहार कुशल भी। अपने सद्व्यवहार द्वारा प्रत्येकका हृदय जीत लेते हैं। मैं पिछले १५-२० वर्षोंसे उनके संपर्कमें हूँ परन्तु मैंने उन्हें कभी क्रोधित अथवा असंतुलित नहीं देखा। जीवनमें उन्हें कई ऐसे शोध कार्य करनेवाले नये-पुराने सभी विद्वान् मिले, जिन्होंने सामग्री लेकर अथवा श्रीनाहटाजीसे अपना स्वार्थ सिद्ध करके फिर मुँह ही नहीं दिखलाया ऐसे व्यक्तियोंके प्रति भी उनके मानसमें सदा सद्भावना ही बनी रही। आश्चर्य तो इस बातका है कि वे जब भी लौटकर नाहटाजीके पास आये तो उन्होंने उसी स्नेह भावसे बातचीत ही नहीं की अपितु उसे हर संकटसे उबारा। यह है श्रीनाहटाजीके हृदयकी पवित्रता और सात्त्विक भावना। आजके इस भौतिक युगमें ऐसे बिरले ही पावन हृदय मानव दिखाई देते हैं।
श्रीनाहटाजी बहुमुखी प्रतिभाके धनी हैं । इतिहास, कला, पुरातत्त्व, लोक साहित्य, प्राचीन साहित्य आदि सभी विषयोंपर गवेषणात्मक कार्य करना उनका स्वभाव सा हो गया है। मैं जब भी जैसलमेर जाता हैं सदैव आप कुछ-न-कुछ सामग्री मँगाते ही रहते हैं। एक बार मुझे याद है आपने 'कॅडियाके' से पत्थर मँगवाए जो वहाँ विशिष्ट आकारोंमें उपलब्ध होते हैं। जब वे पत्थर मैंने नाहटाजीको ला दिये तो वे बडे
ए। उन्होंने बड़े मधुर स्वरोंमें कहा-आज आपने मेरा कार्य किया। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि जैसलमेरमें इन पत्थरोंका कोई मल्य नहीं है परन्तु श्रीनाहटाजीने अपने कला भवनमें इन्हें कितने अच्छे ढंगले संभाल कर रखा है। इसी तरह आपके कला भवनमें चित्र-पट्टिकाएँ, चित्रपट, अन्य कलापूर्ण वस्तुएँ, अलभ्य चित्र-सचित्र ग्रन्थ न जाने कितनी सामग्रो आपके पास एकत्रित है यह सब संग्रह-भावना श्री नाहटाजीकी कलाप्रियताका परिचय देती है । कास ऐसे कलानुरागी राजस्थानके प्रत्येक भागमें होते तो प्रत्येक स्थानकी कलापूर्ण सामग्री आज जिस रूपमें नष्ट हो रही है, नहीं होती ।
नाहटाजीकी सबसे बड़ी विशेषता मिलन की है। जब भी बीकानेर रहते हैं और अधिक दिनों तक कोई साहित्यकार अथवा लेखक नहीं मिल पाते तो वे सीधे उनके घर चले जाते हैं और कुशलादि पूछनेके उपरान्त बड़े सहज भाव और मधुर उपालंभ देते हुए कहते हैं क्यों, इन दिनों दिखाई नहीं दिये? क्या लिख रहे हो आदि आदि प्रश्नोंकी झड़ी लग जाती है। वह आश्चर्यमें डूबा यही कहता है कोई काम हो गया आदि । इस स्नेह भावको जब गहराईसे देखा जाय तो प्रतीत होता है कि वे कितने सहृदय और छोटे बड़ेके भेद-भावसे परे हैं। उनके दिलमें जो लिख रहा है वह लेखक है और आज नहीं तो कल विकासको ओर बढ़ेगा। अतः उसे हर दिशामें प्रोत्साहन मिलना चाहिए। अगर प्रोत्साहन पूरा नहीं मिला तो यह विकसित होनेवाला पुष्प अपने यौवनसे पूर्व ही मुरझा जायेगा। साहित्य जगत्की कितनी बड़ी क्षति होगी। अतः नित नई पौध तैयार करना, उन्हें समुचित सहायता एवं मार्गदर्शन देना उनका स्वभाव सा हो गया है।
राजस्थानी भाषा साहित्य, संस्कृति और पुरातत्त्वके आप अन्यतम अनुरागी हैं। जहाँ कहीं भी राजस्थानीकी चर्चा होती है, वे सदैव आगे रहते हैं। हृदयमें अपनी मातृभाषाके प्रति जो सहज अनुराग होना चाहिए वह श्री नाहटाजोके पावन हृदयमें अवस्थित है। और यही कारण है कि वे राजस्थानीके उत्थानके लिए दिन-रात प्रयत्न करते रहते हैं। इस दिशामें उनके प्रयत्न लेखों आदिके रूपमें ही नहीं व्यक्तितः भा सराहनीय एवं अभिनन्दनाय हैं। अगर ऐसे ही राजस्थानी भाषाके हृदयसे अनुरागी दस-बीस
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व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : ३२९
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