Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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मैं जब भी श्री नाहटाजीके दर्शनार्थ गया मैंने उन्हें किसी-न-किसी कार्य में रत पाया। आलस्य तो छू तक नहीं गया है। जो काम उन्हें करना होता है, तुरन्त करते हैं और कार्यावसान रूपी परिणाम फलसे ही प्रसन्न होते हैं। पत्रोत्तर देने में श्री नाहटाकी शीघ्रता वरेण्य हैं। वे प्रतिदिन दर्जनों पत्र लिखते हैं और इस अवसर पर उन लोगोंकी मीठी चुटकी भी लेते हैं जो आलस्यके वशीभूत होकर पत्रोत्तर नहीं देते।
___ श्री नाहटाजी अन्तर्मुखी प्रवृत्तिके मूक साधक हैं । वे गृहस्थ योगी हैं। सांसारिक सुख साधनोंकी समुपस्थितिसे भी वे उनके प्रति व्यामोह नहीं रखते । लक्ष्मीका आगमन अथवा निर्गमन उन्हें साधनासे विचलित नहीं कर पाता ।
संसार यात्रामें सदैव साथ देनेवाली, पतिपरायणा अर्धाङ्गिनीके स्वर्गवासी होनेसे जो असाध्य दुःख नाहटा परिवार पर आ पड़ा था; उस दुःखको श्री नाहटाजीने समत्व योगीके समान सहन किया और वे दुःखकी अवधिमें शीघ्र ही प्रकृतिस्थ बन गये। सांसारिक कृत्यों और दायित्वोंका परिपालन करते हुए भी वे उनमें लिप्त नहीं होते। संकट, कष्ट और दुःखकी घड़ी में जब-जब मैंने श्री नाहटाजी को देखा है, मैं उनसे प्रभावित हआ हैं और उनके स्थितधी व्यक्तित्वने मुझे गीताके स्थितधीका सामीप्य सुख प्रदान किया है।
मेरी दृष्टि में श्री नाहटाजी निश्छल सखा, स्पष्टवक्ता, पथप्रदर्शक, वचनबद्ध बन्धु, सच्चे सहायक, गहरे गुरु, संयमधनी और धर्मभीरु-महामानव हैं। मैं उनके सुखद भविष्य और दीर्घायुष्यकी कमनीय कामना करता हूँ।
श्री नाहटाजी : एक संदर्भ ग्रंथ
श्री यादवेन्द्र शर्मा व्यवसाय और साहित्य सृजनका सम्बन्ध जरा कठिन ही है । जो व्यवसायी हैं, वह साहित्यकार नहीं और जो साहित्यकार हैं वह व्यवसायी नहीं हैं, ऐसी धारणा प्रचलित है। राजस्थानी लोगोंकी पृष्ठभूमिमें देखा भो जाय तो इस कथनमें कुछ वास्तविकता परिलक्षित होती है। राजस्थानका एक बहुत बड़ा समुदाय व्यापारी है, विशुद्ध व्यापारी इतना विकट व्यापारी है कि उसने अपनी नैसर्गिकता, साहित्य, संस्कृति और जन-जीवनको विस्मृत कर दिया। केवल पैसा, पैसा और पैसा ।
ऐसी स्थितिमें कुछ नाम अपवाद स्वरूप लिये जा सकते हैं। उनमें श्री अगरचन्दजी नाहटाका नाम उल्लेखनीय है। श्री नाहटाजी पिछले अनेक वर्षों से प्राचीन साहित्य व अनुपलब्ध ग्रन्थोंका अन्वेषण कर रहे हैं। येन केन प्रकारेण वे हस्तलिखित ग्रन्थोंको एकत्रित कर रहे हैं। केवल एकत्रित ही नहीं, वे उन ग्रन्थोंका सम्पादन व प्रकाशन भी करवाकर उनको दूसरोंके लिए उपलब्ध भी करा रहे हैं।
१. दुःखेष्वनुद्विग्नना, सुखेषु विगतस्पृहः ।
वीतरागभयक्रोधः स्थितधीः मुनिरुच्यते ॥
३३६ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ
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