Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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आपरो अन्तसरो ध्येय, सरसुती री साची सेवा नै अन्तसमें सतगुरुजी रे चरण कमळां सूं उभरचोड़ी धरम भावना नै, खण खणमें बद्योत री देणं रो है ।
'बाणियो अर लिखमी' नातो आदू सू है | जद लिखमी री साधना-मानता सूं। आप विरत कियां रै लक है ? साल में तीन महीना, आप, दुकानों रो काम-काज संभालण सारू बारे जाबै है, बाकीरां नव महीना में सरसुती री साधना में अवधूत बण्या जरया रे है । इसे बड़े नांव अर ख्याति रे मिनख सू, कोई देस परदेस रो छावा विदवान अर सिख्य सासतरी, कदैई संजोगबस मिलण ने पधारे, तो, उणरी मनो कल्पित मूरती सूं पखार एक बीजीई अलोदरी सिकल-आधी धोती पैरियोडो ने आधी ओढ़ियोड़ी, सीधीसादी, पण आप अन्तसमें अगाध पांडित्य भरियोड़ी नै जोय' र एक रसी तो, लाई चकरीज जावै अर खण भर सोच नै बेबस हुय जावै, कै. वो, 'अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति वाले मोर्ट विद्वान श्री नाहटाजी सूं मिल रैयो है के कोई बीजै सू ? कदास, बैरी ओळखाणमें भूल तो नहीं हुयी है ? भले जद चरचा छिड़े तद, वो संतोस री सांस लेवे के है तो ऐईज नाहटाजी । जद बारे, अगाध ज्ञान सू तिरपत होय' अर सरधासू बांने माथ निवाय है ।
श्री नाहटाजी, खुद तो, साहित्य रा 'डाक्टर' कोनी पण सैकडी सोध विद्वाना नै मारग दरसण देय र डाक्टर बना दिया । अं खरं अरथां में 'डाक्टर रो जामणा' है। आकैवां तो, आण आपतर नै अलोदारी बात नी लागे ।
ओहु आपरो साहित्यिक रूप जिकै ऊपर अन्तस रं अजळासरी गैरी छाप खरंखर पड़ी है । बिना, इयां, हुयां, साहित्य सूका, सूना, अरस अर ऊण उपयोगी रैय जाने ।
अब जोवो, इणां रो मांयलो धरम रूप:
(१) आप, ध्यान धारणा में सतरै आना खरं-खर ।
(२) जीरणामें अजोड़ ।
(३) स रा पाबंद |
(४) समैरो खरो मोल जाणनिया ।
पिर किर तीरा ।
(५) साधु
(६) बिना मोट- बडाई सगळां सूं मेळ मिळाप ।
(७) साहित्यकार बंधुयारं घरं जाय र उणांरी सुख-सायत पूछणमें व उणांरी साहित्य-संरचना " रो ब्योरो पूछणमें तत्पर ।
(८) ढीलास, जोय र अर्णाने प्राणमयी प्रेरणा देखण में आगे ।
(९) सुख-दुख में, बणै जिसी, उणांनै, सारी तरैरी सायता देवणमें त्यार ।
(१०) चरो भेळो कर र अथवा बीजै उपावांसू उण बंधुवारं रचियौड़े ग्रंथानं छपावणमें
पिरयतनसील |
(११) सादो वेस - सादो ढंग ।
(१२) ऊँचा उजळा विचार ।
(१३) बैर-विरोध, राग-द्वेस सूरं परं धणापरं ।
(१४) देव-पुरस अर परकास-पुंज ।
(१५) मानखे नै, ऊजळो -फूटरो बणावण में कमर कसियोड़ा ।
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व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : ३२१
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