Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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प्रवाहित किया था, उसी प्रकार इस कलिकाल में ज्ञानसूर्य नाहटाजीके चरणोंमें बैठकर अपने मरु हृदयमें ज्ञानगंगाको प्रवाहित करूँ। अपने जीवनकी यह चाह कभी परी होगी भी कि नहीं, इस आशंकामें मैंने उस समय मन ही मन दृढ़ निश्चय किया कि अपने जीवनके इस संध्याकालको अनवरत अध्ययनमें बिताऊँगा।
नाहटाजीने मुझे अपना संग्रहालय भी दिखाया जिसमें करीनेसे रखी गई अमूल्य कलाकृतियों विभिन्न शैलियोंके चित्रों, पुराने सिक्कों और दस्तकारीकी तरह-तरहकी अगणित वस्तुओंके अणु-अणुमें हमारी प्राचीन आर्य संस्कृति मुखरित हो रही थी। इस संग्रहालयको देखकर मेरे हृत्पटलपर नाहटाजीका कलाप्रेमीके रूपमें दूसरा विराट् स्वरूप अंकित हो गया ।
आज देखा यह जाता है कि विद्वान् साहित्यिकों और कलाकारोंको औरोंके मुंहकी ओर ताकना पड़ता है, श्रीमन्तोंकी कृपापर निर्भर रहना पड़ता है। परंतु अनुपम दूरदर्शी नाहटाजी तन, मन और धनसे सम्पूर्णतः स्वावलम्बी है। जिसे चाह हो वह उनके मुँहकी ओर देखे परंतु उन्हें किसी और के मुँहकी ओर ताकनेकी आवश्यकता नहीं।
कुल मिलाकर मैं नाहटाज्ञीके अगाध ज्ञान और अद्भुत कलाप्रेमको देखकर बड़ा प्रभावित हुआ। उनसे विदा होते समय मुझे ऐसा खला मानो मैं अपने अतिसन्निकटके कुटुम्बीसे बिछुड़ रहा हूँ।
मैंने निश्चय किया कि यदि मुझे कभी अवसर मिला तो मैं डिमडिमघोषसे भारतके निवासियोंको सूचित करूंगा कि बीकानेरकी मरुभूमिमें साक्षात् ज्ञानसूर्य देदीप्यमान हो रहा है। जिस किसीको अपने अंतरमें ज्ञानका आलोक उद्भाषित करना हो, शोध करना हो, सैद्धान्तिक बोध करना हो, कलाको परखनेको कला या धन कमानेकी कला सीखना हो वह अगाध ज्ञानके भण्डार, कलाके अद्भुत पारखी और व्यवसायवेत्ताओंमें विशेषज्ञ श्रीमान् अगरचन्दजी नाहटाकी सेवामें पहँचकर उनसे यथेप्सित वस्तु प्राप्त करें।
मेरी सर्वशक्तिमान् परमपिता परमेश्वरसे प्रार्थना है कि वह नाहटाजीको 'जीवेद्वै शरदां शतम्' का वर प्रदान कर इन्हें भारतीय वाङ्मय और संस्कृतिकी ओर अधिकाधिक सेवा करते रहनेका सुअवसर प्रदान करे और श्री नाटाजीने जो भारतीय वाङ्मयकी अमूल्य सेवाका मानदण्ड प्रस्तुत किया है वह युगयुगान्तर तक अनन्त आकाशमें सूर्यकी तरह चमकता रहे ।
श्री अगरचन्दजी नाहटा : एक परिचय
डॉ० आज्ञाचन्द भंडारी, जोधपुर कलाका उद्भव आनन्दसे और परिणति रसमें होती है। शोधकार्य भी साहित्यके अन्तर्गत एक प्रकारकी कलात्मक विधा है । सौभाग्यसे राजस्थानी साहित्य और भाषाके क्षेत्र में श्री अगरचंदजी नाहटाके रूपमें राजस्थानको एक उच्चकोटिके शोध कलाकार प्राप्त हुए हैं। राजस्थानी भाषा एवं जनसाहित्यके प्रेमियों, साहित्यकारों एवं शोधार्थियोंके लिए नाहटाजी माँ सरस्वतीके वरदानस्वरूप हैं। - कलाकारका जीवन समाजके लिए प्रेरणाका स्रोत होता हैं। साधनाके क्षेत्रमें वह स्वयं अपने ही व्यक्तित्वसे रस ग्रहण करता है। उसी रसकी शाश्वत धाराका स्रोत समाजके मध्य प्रवाहित होता रहता है। ऐसे मेधावी एवं कर्मठ कलाकार हजारोंमें ही नहीं, लाखोंमें एक-दो ही होते हैं। श्री नाहटाजी उनमेंसे एक हैं।
व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : २९७
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