Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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नादाजी का कर्तव्य और व्यक्तित्व
पण्डित हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री
जिन लोगोंको श्री अगरचन्दजी नाहटासे प्रत्यक्ष भेंट करने का अवसर मिला है, वे यह देखकर आश्चर्य से चकित होते हैं कि मारवाड़ी वेष भूषाका यह व्यक्ति इतने विशाल ज्ञान भण्डारका घनी कैसे बन गया ? खासकर उस दशामें जबकि उन्होंने किसी संस्कृत महाविद्यालय या अंग्रेजीके किसी कालेज में कुछ भी शिक्षण प्राप्त नहीं किया है । किन्तु जिन्होंने उनके समीप कुछ दिन बिताये हैं, वे जानते हैं कि श्री नाहटाजी बिना किसी नागाके प्रतिदिन नियमित नये-नये ग्रन्थोंका स्वाध्याय करते रहते हैं । उनका यह दैनिक स्वाध्याय प्रवास में भी बराबर चालू रहता है । उन्होंने अपने इस दैनिक स्वाध्याय के बल पर विशाल ज्ञान ही नहीं प्राप्त किया है, अपितु भारतके प्रायः सभी प्रसिद्ध ज्ञान भण्डारोंका अवलोकन करके अनेक नवीन ग्रन्थोंका भी अन्वेषण किया है और आज भी उन्हें जहाँ कहीं भी नवीन शास्त्र भण्डारका पता लगता है, वे तुरन्त ही वहाँसे सम्पर्क स्थापित करते हैं, वहाँके ग्रन्थोंकी सूची मंगाते हैं और किसी नवीन ग्रन्थके दृष्टिगोचर होते ही तुरन्त उसे मंगाकर उसका स्वाध्याय कर अपने ज्ञानभण्डारकी वृद्धि करते रहते हैं । उनकी इस ज्ञान-पिपासाका ही यह सुफल है कि उनके निजी भण्डार में हजारों हस्तलिखित एवं मुद्रित ग्रन्थ विद्यमान हैं और उनकी संख्या दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है ।
उनकी नित्य स्वाध्यायशीलताके अतिरिक्त यह भी एक उत्तम प्रवृत्ति है कि जहाँ कहीं भी कोई नवीन बात मिली, या नवीन ग्रन्थका पारायण किया, तो उसे तुरन्त नोट किया और लेख -बद्ध करके तुरन्त उसके योग्य पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशनार्थ भेज दिया । उनकी इस शुभ प्रवृत्तिका ही यह सुफल है कि प्रायः सभी पत्र-पत्रिकाओं में उनके लेख प्रकाशित होते रहते हैं ।
मेरा नाहटाजी से काफी पुराना परिचय है । जब मैं वीरसेवा मन्दिर दिल्ली में था, तब भी वे आसाम या मद्रास से आते-जाते मिलनेको आते और नवीन ग्रन्थोंकी जानकारी लेते रहते । यहाँ ब्यावर के सरस्वती भवन में मेरे आते ही उन्होंने समस्त हस्तलिखित ग्रन्थोंकी मयपूर्ण विवरणके साथ सूची मंगाई और उसमें जो-जो नवीन ग्रन्थ उन्हें द्रष्टव्य प्रतीत हुए, उन्हें मंगा करके देखा और उनका परिचय भी लेखों द्वारा जैनपत्रों में प्रकाशित किया ।
अभी पिछले वर्ष वे व्यावर आये और मेरे अनुसन्धान कार्यकी बात पूछी, तो मैंने अपनी संचित सामग्री उन्हें दिखाई । देखते ही बोले, "इतनी अधिक नवीन सामग्री के पास होते हुए भी आप इसे पत्र-पत्रिकाओंमें क्यों नहीं देते ? आप तो प्रतिमास अनेकों लेखोंके द्वारा समाजके जिज्ञासु धर्मको बहुत कुछ नवीन ज्ञान प्रदान कर सकते हैं ।" यह है उनका ज्ञान-पिपासुओंकी पिपासा शान्त करने-करानेका एक उदाहरण ।
में
श्री नाहटाजीकी संशोधक दृष्टि एवं स्मरण शक्ति अद्भुत है । जहाँ कहीं भी जिस किसीके निबन्ध'कुछ भी अशुद्धियाँ त्रुटि दृष्टिगोचर होती है, ये उसे तुरन्त सप्रमाण लेखोंके द्वारा उनके लेखकों का ध्यान उस ओर आकर्षित करते हैं और उनकी भूलका परिमार्जन करते हैं ।
अपने व्यवसायको करते हुए भी उनका ज्ञानाध्यवसाय सचमुच विद्वज्जनोंके लिए स्पृहणीय एवं अनुकरणीय | मैं श्री नाहटाजीके दीर्घायुको कामना करता हूँ कि उनके द्वारा जिज्ञासुवर्गको एक लम्बे समय तक नवीन ज्ञान प्राप्त होता रहे ।
३०४ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रंथ
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