Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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समयको यह महान् साधक कलमसे बाँध रहा है, दिन प्रतिदिन, बिना किसी व्यतिक्रमके। किसी भी विद्यार्थी, किसी भी प्रकाशकको निराश होनेकी आवश्यकता नहीं है । जिसे चाहिए वह दौड़े, नहीं तो समय निकल जायेगा।
राजस्थानी धरतीका यह औढरदानी बाँट रहा है, साहित्यामत, पंचामृत । ईर्ष्या द्वेष और यहाँ तक कि स्पर्धासे भी बिल्कुल शन्य । सरलता भी उन्हें देखकर लजा जाती होगी ?
ज्ञान शृंगकी भाँति बड़ी सी पगड़ी, शब्दकोषकी भाँति विशाल कोट और नयनों पर पड़ा यह प्राचीन उपनयन, सब एकसे एक बढ़कर है। गृद्ध-दृष्टि, आलोचनाकी पकड़, विषयका निचोड़, इनके गुण हैं। जो लिखते हैं, डूबकर लिखते हैं । उस समय खाने-पीनेकी चिन्ता नहीं ।
विनोदमें मैंने कहा, "नाहटा ! आपका लेखन (अक्षर) भी कभी शोधकी वस्तु हो जायेगा।" हँसते हुए बोले, "अधिक लिखनेसे इसकी प्रगति बिगड़ गई है। यों मैं पहले काफो अच्छा लिख लेता था।" बंगला, गुजराती, शुद्ध मारवाड़ी (राजस्थानी) भाषा बोलने में वे विशेष पट हैं। अंग्रेजी अच्छी तरह पढ़ व समझ लेते हैं।
इतना सब कुछ होते हुए भी शुक्लजीकी तरह इनकी भाषा दुरूह नहीं । सरलता उसका जन्मजात गुण है । शब्दोंमें पर्याप्त शक्ति है । विषय प्रतिपादनमें एक विद्वान्की कला है। मुझे लगा, सरस्वती पर बहुत ही प्रीति है।
किसी भी विश्वविद्यालयके लिए यह गौरवकी वस्तू होगी कि वह उन्हें सम्मानके रूपमें "डाक्टर" के पदसे विभूषित करे। भारत सरकारका ध्यान भी मैं विनम्रतासे इधर आकर्षित करूंगा कि राजस्थानका यह तपस्वी पद्मविभूषण या पद्मश्री पदके लिए योग्य पात्र है । कहना न होगा, नाहटाजी साहित्यके "डाक्टरों के डाक्टर" हैं।
मरुभूमिका यह समुद्र ठाठे मारता जाय, कुल किनारे तोड़ता जाय, शोध और पुरातत्त्वके रत्नोंको उगलता जाय, सीपियोंमें स्वाति-सा मचलता जाय । उनका आरोग्य मुस्कराता जाय। "जीवेम शरदः शतम्" के साथ, यही मंगल कामना है।
नाहटाजीके प्रति
श्री शिवसिंह चोयल (सीरवी) सन् १९४१ ई० से आदरणीय नाहटाजीसे मेरा सम्पर्क रहा है। आपने भारतीय इतिहास और साहित्यकी सेवा करनेके अतिरिक्त राजस्थानी साहित्यकी भी अमूल्य एवं महत्त्वपूर्ण सेवा की है। इन्होंने अपने जीवन में पूर्वजोंके द्वारा चली आ रही व्यापारिक परम्पराको कायम रखते हुए जो उल्लेखनीय कार्य किया है, वह इनका हस्तलिखित ग्रंथ संग्रहालय कहा जाता है । इनका एक भवन तो केवल हस्तलिखित ग्रंथोंका ही भण्डार है । भारतका प्रत्येक साहित्यकार और इतिहासकार नाहटाजीके इस महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संग्रहालयसे शताब्दियों तक लाभ उठाता रहेगा। बिना किसी डिग्री पास (उर्तीण) किये ही धुनके धनी और लक्ष्मी के लाडले पुत्र नाहटाजीने भारतके प्रत्येक प्रान्तमें जाकर संस्कृत, हिन्दी, राजस्थानी और अन्य भाषाओंके पाये जाने वाले हस्तलिखित ग्रंथोंकी पांडलिपियोंको प्राप्त करने में अथक परिश्रम किया है।
आप साहित्यकार ही नहीं, बल्कि एक महान इतिहासकार भी हैं। आपके लेखोंमें जैनधर्मके अति
व्यक्तित्व. कृतित्व एवं संस्मरण : २९३
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