Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कहनेको नाहटाजीके पास कोई डिग्री नहीं है मगर वे डिग्रियोंके सम्राट हैं । वे विश्वविद्यालयके ठप्पेवाले गाइड भी नहीं हैं मगर वे गाइडोंके भी गाइड हैं। उनका ग्रंथागार अनुसंधिसूओंके लिए एक ऐसा तीर्थ है, जहाँका चन्दन-तिलक लिये बिना शोध की कोई सिद्धि होती नहीं, कर्मका भंवरा ठिकाने लगता नहीं और प्रामाणिक परिपक्वताकी मणि हाथ लगती नहीं।
पाँच ] सन् ५८ तक मैं बीकानेर रहा। यदा-कदा उनके वहाँ आना-जाना हो जाया करता । हमारे वहाँके कुछ साथी तो नियमित रूपसे वहाँ लेखन तथा लिपि-नकलका काम भी पाते थे । नाहटाजी जहाँ भी मिलते, कुशल क्षेमके रूपमें सबसे पहले यही पूछते-'आजकल क्या कर रहे हैं ? इन दिनोंमें क्या लिखा? फलाने विषय पर लिखिये । फलां पत्रमें रचना भेज दीजिए। फलां विशेषांक निकल रहा है। फलां अभिनन्दन ग्रंथ निकल रहा है । ये-ये विषय है आपके लिखनेके लिए। सामग्री मेरे पास बहुत है, आइयेगा और लेख जल्दी तैयार कर दीजियेगा।' ऐसे लोगोंकी संख्या बहुत है, जो उनसे प्रेरणा प्राप्तकर लेखनकी ओर, नियमित लेखनकी ओर प्रवृत्त हुए हैं। वे कोरी प्रेरणा ही नहीं देते हैं, उसे फलित रूपमें देखनेके लिए कोई कसर बाकी नहीं रखते। वे पीछे पड़ जाते हैं और जब तक कार्य पूरा नहीं होता वे पिंड नहीं छोड़ते । ठीक उसी प्रकार जैसे कोई मांगनेवाला अपनी उगाई-पुताई पटाने के लिए लगातार पीछे पड़ा रहता है और जब तक उसका लेन-देन क्लीयर नहीं कर देता, सुखपूर्वक नहीं रह सकता। अन्तर केवल इतना ही है कि नाहटाजीमें किसी प्रकारकी कोई स्वार्थ लिप्सा या गैर-भावना नहीं है न कोई पूजा-प्रतिष्ठा या उनके भक्तोंकीपूजनोंकी संख्या वृद्धिका दृष्टिकोण ही निहित रहा है । वे तो चाहते हैं कि यह क्षेत्र इतना विशाल और समद्धिपूर्ण है कि एक दो व्यक्तियोंसे यह काम पूरा नहीं हो सकता अतः अधिक से अधिक लोग इस ओर प्रवृत्त हों।
नाहटाजीका प्रत्येक काम नियमित रूपसे सम्पन्न होता है। प्रातः सामायिक और उसमें स्वाध्याय । सामायिकमें नियमित रूपसे ग्रन्थोंका पठन । एक सामायिकमें बीस-तीस पृष्ठ पढ़नेसे महीने में लगभग छ:सौसात सौ पृष्ठ और वर्ष में करीब साढ़े आठ हजार पृष्ठोंका पठन । यदि दो सामायिक प्रतिदिन हुई तो सत्रह हजार पृष्ठोंका वाचन, फिर हिसाब लगाया जाय उनके ३५-४० वर्षों के अध्ययन स्वाध्यायको तो यह संख्या लाखों तक पहुँचेगी । हजारों ग्रन्थ और लाखों पृष्ठ । नाहटाजीका यह क्रम, वे जहाँ कहीं भी हों, अनवरत चलता ही रहता है।
उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह भी है कि वे प्रत्येक व्यक्तिको अन्दरकी दृष्टिसे देखते हैं। चाहे वह छोटा हो अथवा बड़ा। प्रत्येकके कार्डका यथोचित उत्तर देते हैं। पोस्टकार्ड स्वयं लिखते हैं। उनकी राइटिंगको प्रत्येक पढ़नेका साहस नहीं कर सकता। यह लिपि सभी लिपियोंसे भिन्न, सभी भाषाओंका सम्मिलित मोर्चा लिये होती है। यह सुविधाके लिए 'नाहटा लिपि' कही जा सकती है । उदयपुरमें मुझे ज्ञात है, नाहटाजी कइयोंको चिट्टियाँ लिखते हैं, नये व्यक्तियोंकी अधिकांश चिट्ठियाँ मैंने उलथाई हैं। मैं एक दृष्टिसे उनकी लिपि पढ़नेका एक्सपर्ट स्वीकारा जाने लग गया है। नाहटाजीने सैकड़ों व्यक्तियों को हजारों चिट्ठियाँ लिखी हैं। यदि उनका संग्रह कर लिया जाय तो भी एक बहुत बड़ी खोज-राशि एकत्र हो सकती है।
नाहटाजी पूर्णरूपेण साहित्यिक सेठ हैं । सरस्वती और लक्ष्मी उनके यहाँ युगल रूपमें प्रतिष्ठित हैं । वे वणिक सेठ हैं, अतः अपना पैसा फालतू खर्च नहीं करते । लक्ष्मीके लिए सरस्वतीका उपयोग करते मैंने
२८८ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ
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