Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
शासनके प्रतिभाशाली पुत्र श्री नाहटाजी
श्री उदय सागरजी श्रेष्ठीवर श्री अगरचन्दजी नाहटा अभिनन्दन-समारोह समिति द्वारा यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि साहित्य मनीषी श्री नाहटाजीका अभिनन्दन किया जा रहा है । श्री नाहटाजीका मेरा सम्पर्क गत ४० वर्षोंसे रहा है। एक प्रतिष्ठित एवं सम्पन्न परिवारमें जन्म लेकर जैन समाजमें साहित्य सृजनकी जो सेवाएँ एक प्रतिभाशाली जैन शासनके पुत्रके रूपमें की है, वह सदैव ही जैन जगतमें स्मरणीय रहेगी। सच्चे अर्थों में वे सरस्वतीके वरद पुत्र हैं। साहित्यकारका जीवन गुलाबके पुष्पकी भाँति होता है। गुलाबका पुष्प कांटोंके मध्य रहकर भी सबको सौरभ देता है। हवाका झोंका आया कि मिट्टी में मिलता हुआ भी वह अपनी सौरभ मिटीके कणोंको दे देता है। उसी प्रकार साहित्यकार अपने साहित्य द्वारा सभी को लाभान्वित करता है।
श्री नाहटाजीने अपनी लेखनी द्वारा जैन-समाजकी जो सेवाएँकी हैं, वह शतमुख प्रशंसनीय हैं और युग-युग तक भावी पीढ़ियोंको दिव्य प्रेरणा देती रहेंगी। श्री नाहटाजीने साहित्यकार, लेखक, इतिहासकार एवं तत्त्ववेत्ताके रूपमें कार्य करके अपनी साहित्य-साधनासे जैन समाज एवं खतरगच्छको जो अमूल्य रत्न प्रदान किये हैं उनको देखकर यही कहना उचित है कि आप सच्चे अर्थों में जैन समाज एवं खतरगच्छके प्रतिभाशाली पुत्र हैं। मेरी हादिक कामना है कि इस अभिनन्दन समारोहसे समाजकी युवापीढ़ी प्रेरणा लेकर भावी जीवनको सफल बनावे ।
संदेश
विजयधर्मसूरि मुनि यशोविजयजी सौजन्य स्वभावी, धर्मश्रद्धालु विद्वान् नाहटा भाइओंके लिए भव्य अभिनन्दन-समारोहका जो आगेजन किया गया है वह अत्युचित ही है। पत्रिका पढ़कर अति आनन्द हुआ। एक सुखी सद्गृहस्थ अपने गृहस्थोचित कार्यमें रत होते हुए भी समयका कितना कीमती सदुपयोग करके ज्ञान साधना-उपासना कर सकता है, उसका जीवन उदाहरण नाहटा भाइयोंमें है। श्री अगरचन्दजीकी सेवा-ज्ञानसेवा इतनी विशाल है कि पढ़कर कोई व्यक्ति आश्चर्यका अनुभव किये बिना नहीं रह सकता।
हम आपकी सम्यग् ज्ञानोपासनाका भरि-भूरि अनुमोदना करते हैं और आप स्व-परकल्याणको साधनाके पथपर उत्तरोत्तर अधिक पदार्पण करते रहें, ऐसी शुभकामना करते हैं।
नाहटा अभिनन्दन समारोह भव्य बनें और कवि कालिदास की 'तत्रापि श्लोकद्वयं' शाकुन्तल नाटककी उक्तिके अनुसार देशकी प्रजा, उसमें राजस्थानकी प्रजा, उसमें जैन प्रजा, अपना कर्तव्य पूरा करें, और समारोह सानन्द सम्पन्न हो, यही शासनदेवसे प्रार्थना है।
१३२ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org