Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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इतिहासज्ञ नाहटाजी विनयमोहन शर्मा
श्री नाहटाजीको अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट किया जा रहा है यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई । नाहटाजीकी अनेक विषयोंमें गति है । पर उनकी सबसे महान् साहित्य सेवा हिन्दीके प्राचीनतम साहित्यको प्रकाशमें लाने का कार्य है | राजस्थान और अन्य स्थानोंके जैन ग्रंथागारोंसे उन्होंने अलभ्य ग्रन्थोंको प्राप्त किया है । उनमें से अनेकों का सम्पादन किया और इस तरह हिन्दी - साहित्य के इतिहासको बहुमूल्य सामग्री प्रदान की है । हिन्दी के कई अज्ञात कवियोंको प्रकाशमें लानेका उन्हें श्रेय है ।
उनकी महत्त्वपूर्ण सेवाका सत्कार होना ही चाहिए। क्या ही अच्छा होता, यदि राजस्थान विश्व - विद्यालय उनके शोधकार्यके लिए उन्हें आदर्श डी० लिट्० की उपाधि प्रदानकर अपनेको गौरवान्वित करता । परमात्मा श्रीनाहटाजीको दीर्घायु प्रदान करें, जिससे वे साहित्यकी श्रीवृद्धि करते रहें, इस प्रार्थना
के साथ
शोधानज्जली नाहटाजी बनारसीदास चतुर्वेदी
श्रेष्ठिवर श्रीअगरचन्दजी नाहटाके अभिनन्दन समारोहपर मैं अपनी विनम्रतापूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ । बहुत वर्षोंसे मैं श्रद्धेय नाहटाजीके शोध-पूर्ण लेख पढ़ता रहा हूँ और जिस लगनके साथ वे अपना काम करते रहते हैं, वह सर्वथा प्रशंसनीय तथा अनुकरणीय है । मेरा उनका कुछ पत्र-व्यवहार भी हुआ था । वह फिजी द्वीपमें 'सारग्रा - सदावृक्ष' के प्रचार के बारेमें था । मुझे खेद है कि मैं उन्हें वह लेख विशाल भारत से तलाश करके न भेज सका और तदर्थ मैं क्षमाप्रार्थी हूँ ।
उनके लेखोंकी सूची पढ़कर मुझे आश्चर्य होता है । उनके संग्रहालयकी प्रशंसा भी मैंने सुन रखी है । ऐसे सुयोग्य वयोवृद्ध साहित्य सेवी विद्वान्का सम्मान करके हम स्वयं अपनेको ही गौरवान्वित करेंगे । श्रद्धेय नाहटाजीको मेरा प्रणाम ।
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पाण्डित्यपूर्ण व्यक्तित्व
पं० मक्खनलाल शास्त्री
विद्यावारिधि, इतिहासरत्न, सिद्धान्ताचार्य शोध-मनीषी श्रीमान् श्रेष्ठिवर्य पं० अगरचन्द्रजी नाहटा महोदयका पाण्डित्यपूर्ण व्यक्तित्व महान् है । उनकी प्राप्त उपाधियोंसे ही उनका महत्त्व नहीं आँका जा सकता है । उनकी अनेक साहित्य रचनाएँ एवं उनके ऐतिहासिक खोज आदि महत्त्वपूर्ण कार्य ऐसे हैं, जिनसे उनका पाण्डित्य प्रसिद्ध है । उनके परिचयकी सूचीसे उनके ग्रन्थ-लेखन, ग्रन्थ संग्रह एवं कलाभवन आदिसे उनकी सतत साधना तथा उनकी महती कृतियोंका परिचय मिलता है। चालीस हजार हस्तलिखित प्रतियाँ और
२०२ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रंथ
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