Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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को पढ़ना है। मैंने उनकी लिखावट के सम्बन्धमें उनसे जब शिकायत की तो वे मुस्कुराकर टाल गये । वैसे उनके पत्र पढ़ते-पढ़ते एवं जैनजगत्में प्रकाशित होने वाले लेखोंको टाईप कराते-कराते उनकी लिखावट पढ़ने में तो लगभग सफल हो गया हूँ किन्तु उनके व्यक्तित्व को पूरी तरह से समझना उतना सरल और सहज नहीं। अतः अभिनन्दनके इस अवसर पर आडी तिरछी रेखाओं से उनके व्यक्तित्वका एक लघु रेखाचित्र प्रस्तुत करते हुए शुभ कामना करता हूँ कि वे सफल स्वास्थ्यपूर्ण शतायु बनकर साहित्य की सेवा करते रहें।
विशिष्ट योगदान विश्वधर्म हरिराम के संचालक मुनि सुशीलकुमार जैन समाजके विकसित एवं विकासशील मुनिवरोंको व उदीयमान विद्वानोंको आप निरन्तर प्रेरणा देते रहे हैं । यह आनन्दका विषय है। आपके उदात्त एवं विराट अनुसंधान परख विचारोंने साहित्य एवं संस्कृतिके भण्डारोंको अभिनव एवं गौरवमय स्वरूप प्रदान किया है । इसके लिए हम सब आपके आभारी हैं।
साहित्यमें ऐसी कौनसी विधा होगी जिसके विकासमें आपका योगदान न रहा हो। इतिहासका कोई कोना हो, धर्मका कोई अनुसंधान हो, समाज विकासका कोई कार्यक्रम हो, सभीको आपने अपने ठोस सुझावों, अतिस्मरणीय सेवाओं ए मूल्यवान सहयोग तथा सुझावोंसे उसे आप्लावित किया है ।
संस्कृति और साहित्यके स्रोत में आपको मैं सदासे सरस्वतीके वरद पुत्रके रूपमें मानता आया हूँ। आपके द्वारा सरस्वती-पुत्रोंको साहित्यका एवं संस्कृतिका सार्वभौम प्रकाश मिलता रहे और आप विश्वको आध्यात्मिक धरातलपर एकताकी कड़ीमें जोड़ते रहें; इसी मंगल कामनाके साथ ।
नाहटाजी एक विरल व्यक्ति डॉ० रमणलाल ची० शाह अध्यक्ष-गुजराती विभाग, बम्बई युनिवर्सिटी नाहटाजीसे जितने लोग मिले होंगे उनसे भी बहुत अधिक लोग उनके नामसे सुपरिचित होंगे । जो नाहटाजीके निकट सम्पर्कमें आते हैं, वे उनके विरल व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना नही रहते।
टाजीने अत्यल्प वयमें लेखन प्रवत्ति चाल की। आज पाँच दशकोंसे भी अधिक समयसे वे नियमित लिखते आये हैं। ई० सन १९६० में नाहटाजीके साथ मेरा प्रथम बार पत्र व्यवहार हुआ था गुणविनयकृत 'नल दवदंती रास' की हस्तलिखित प्रतिके विषयमें। नाहटाजीका नाम वर्षोंसे सुन रहा था अतः तब भी मैंने उनको लगभग सत्तर वर्षकी उम्रके समझ रखा था, परन्तु जब मैं अपनी पत्नी के साथ बीकानेर गया तब नाहटाजी को पहली बार देखा। नाहटाजीको देखते ही मैंने उन्हें अपनी धारणासे अत्यन्त अल्प उम्रके पाकर खूब आश्चर्य अनुभव किया।
२४२ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ
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