Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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प्रकाशित
हुए
हैं इसकी जानकारी रखते हैं और उन्हें अयत्नपूर्वक प्राप्त कर पढ़ जाते हैं । नाहटा जी बहुत से सामयिक पत्रादि नियमित पढ़ते हैं, इस प्रकार वे सर्वदा सुसज्ज और सुज्ञात रहते । मेरे पास जब जब उनके पत्र आते हैं तब-तब नवीन प्रकाशन और बम्बई युनिवर्सिटी के नव्य महानिबन्धों की जानकारी के लिए एक पंक्ति अवश्य ही लिखते हैं ।
पत्र लेखन में नाहटा जी बहुत ही नियमित हैं । मेरे जैसे पत्र लेखन में मन्दशील व्यक्ति द्वारा नाहटा जी को एक पत्र लिखा जाय तब तक उनके तीन चार पत्र आ जाते हैं। वर्षों के त्वरित लेखन कार्य के कारण नाहटाजी के अक्षर सरलता से पढ़े जाएं जैसे नहीं रहे । प्रारम्भ में जब इनके पत्र आते तो मेग्नीफाइंग ग्लास लेकर मुझे बैठना पड़ता और जैसे तैसे आध घंटा में पत्र पढ़ पाता, अब तो नाहटाजी के अक्षर व मरोड़ से सुपरिचित हो गया अतः उतना समय नहीं लगता । फिर भी पत्र टाइप करके भेजनेकी मेरी सूचनाके कारण जब टाइपिस्टकी सुविधा होती है तो वे वैसा ही करते हैं ।
नाहटाजीको ग्रंथ और सामयिकोंकी जितनी स्पृहा रहती है उतनी स्थान या अधिकारकी नहीं रहती । मुझे एक प्रसंग खूब याद है कि जब मैं बीकानेर में इनके यहाँ था तो कोई विद्वान् लेखक और प्राध्यापक इनसे मिलने आये। उन प्राध्यापकने नाहटाजी से एक बात कही कि आप पी-एच० डी० के मार्ग दर्शक निर्देशक बनने के लिए अर्जी दें । किन्तु अत्यधिक आग्रहके बावजूद भी आपने कहा – यूनिवर्सिटीको गाइड रूपमें मुझे चुनना हो तो भले. चुने पर मेरी तरफसे गाइड बननेके लिए कोई भी प्रयत्न नहीं होगा । यह सुनकर नाहटाजी के प्रति मेरे हृदय में बहुत सम्मान हुआ ।
नाहटाजीने प्राचीन गुजराती और राजस्थानी भाषामें लिखे हुए रास, फागु इत्यादि प्रकारके जैन साहित्य तथा संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश में लिखे हुए साहित्यका खूब संशोधन किया है । इनके अभय - जैन ग्रन्थालय में पचास हजार से भी अधिक हस्तलिखित प्रतियाँ एकत्र हैं । इस दिशा में नहटाजीने जो भगीरथ कार्य दिया है वह अविस्मरणीय रहेगा । भविष्य के संशोधकोंको बहुत सी टूटती कड़ियें नाहटाजी के लेखन संशोधन से जुड़ी हुई मिलेंगी ।
नाहाजी ने इतने वर्षोंमें छोटे मोंटे हजारों लेख लिखे हैं उनकी सम्पूर्ण सूची तैयार होनेकी आवश्यकता है और लेखोंको ग्रन्थ रूपमें प्रकाशित करनेका कार्य किसी संस्थाको हाथमें लेना आवश्यक है । हाजी इस अवस्था में भी बहुत कार्य करते हैं, और कर सकते हैं, परमात्मा इन्हें शतायु करे और हमें अब भी बहुत-सा साहित्य प्राप्त हो यही अभिलाषा है ।
आदर्श व्यक्तित्व श्री पृथ्वीराज जैन, एम. ए.
जैनधर्म, दर्शन, इतिहास साहित्य और संस्कृतिका शायद ही कोई ऐसा विद्यार्थी हो, जिसने श्रद्धेय नाहाजी का नाम न सुना हो अथवा उनके लेखोंसे अवगत न हो। इतना ही क्यों किसी भी राजस्थानी भाषाका या हिन्दी पत्र-पत्रिकाका सामान्य पाठक भी भारतीय साहित्यके इस अद्भुत देदीप्यमान नक्षत्र के शुभनाम से एवं उनकी ओजस्विनी विद्वत्ताप्रवाहिनी लेखनी से सुपरिचित हैं । उनकी निष्ठापूर्ण साहित्य आराधना शोध प्रवृत्ति और सतत स्वाध्यायशीलता गत ४५ वर्षोंसे अनवरत अविच्छिन्न रूपमें साहित्य जगत् से तादात्म्य २४४ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रंथ
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