Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
नाहटाजी से लाभान्वित होनेवाले शोध-छात्रों एवं साहित्य-प्रेमियोंकी संख्या अनन्त है, जो उनके चिरऋणी रहेंगे। दूसरोंके प्रति उदारता एवं प्रोत्साहन देनेकी भावना नाहटाजी की निजी विशेषताओं में से हैं।
नाहटाजी का जीवन शोध-प्रबन्धके खुले पृष्ठोंके समान हैं । वहाँ से कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छानुसार अपने हितकी सामग्री संचित अथवा उद्धृत कर सकता है। ऐसे सरल, स्नेही, विद्वान् एवं साहित्यमर्मज्ञके अभिनन्दन के अवसरपर अपनी श्रद्धाके पुष्प चढ़ाकर मैं अपनेको धन्य मानती हैं।
अनवरत साहित्य प्रेमी
रुक्मिणी वैश्य . श्रीयुत नाहटाजीके बारे में मैं काफी समयसे सुनती आ रही थी। विश्वविद्यालयमें आनेपर अपने अध्ययनके साथ राजस्थानकी प्रमुख पत्रिकाओंमें आपके लेख पढ़नेका अवसर मुझे मिला। लेख पढ़नेके साथसाथ राजस्थानी-साहित्यके इस मूर्धन्य विद्वान्से मिलनेकी इच्छा दिन प्रतिदिन तीव्र होती गयी।
__ अपने अनुसंधान के विषयमें चर्चा करते समय आदरणीय डा. सत्येन्द्रने आपके बारेमें कई नवीन बातें बताईं, जिनसे मैं अनभिज्ञ थी। आपने मुझे सुझाव दिया कि मैं अपने विषयसे सम्बन्धित सामग्री केवल नाहटाजीके यहाँसे ही प्राप्त कर सकती हूँ। हुआ भी यही, जो अप्राप्य सामग्री थी, सब मुझे आपके श्री अभय जैन ग्रन्थालयमें ही प्राप्त हुई।
मैंने अपने विषयसे सम्बन्धित साहित्यकी जानकारी हेतु प्रथम पत्र-नाहटाजीको लिखा। उस पत्रका उत्तर मुझे पूरी जानकारी सहित अविलम्ब मिला। इससे आपकी साहित्यिक रुचि एवं निःस्वार्थ सहयोगभावना का आभास मुझे हुआ। इसी पत्रके बाद दूसरा पत्र मिला कि आप राजस्थानी भाषा सम्मेलनमें जयपुर पहुंच रहे है। समय तारीख एवं मिलनेका स्थान आदि सभी महत्त्वपूर्ण बातें पत्र में लिखी हई थीं। राजस्थानी भाषा सम्मेलन २१,२२,२३ मार्च १९६० को राजकीय प्रवास भवन जययुरमें हुआ था। तभी आपका प्रथम साक्षात्कार करनेका सौमाग्य मुझे प्राप्त हुआ। जैसा अनुमान एवं कल्पना थी, उससे कहीं अधिक आपको पाया। समयाभाव एवं विद्वानोंसे घिरे हुए साहित्यिक चर्चा करते हुए भी आपने मुझे अपना अमूल्य समय देकर विषयसे सम्बन्धित अनेक कठिनाइयोंको सहज एवं सुगम किया। आपसे प्राप्त स्नेहको मैं कभी भुला नहीं सकती।
आपके द्वारा दर्शायी गई साहित्यिक पगडण्डियोंपर चलनेका मैं प्रयास कर रही थी। परन्तु मार्गमें मुझे भाषा सम्बन्धी अनेक कठिनाइयोंका सामना करना पड़ रहा था। इसके अलावा मुझे कुछ हस्तलिखित प्रतियाँ प्राप्त करनी थी । अतः मैंने अपने शोध कार्य हेतु बीकानेर आनेकी सूचना नाहटाजीको दी । प्रत्युत्तर में आपने शीघ्र ही आनेको लिखा।
मैं अपने अनुसंधान कार्यके लिए बीकानेर पन्द्रह दिन रही। बीकानेर आनेका यह मेरा प्रथम अवसर था । मार्गोसे अनभिज्ञ होनेके कारण मैंने राह चलते एक युवकसे नाहटाजीके निवास स्थानके बारेमें पछा । वह बड़े आश्चर्यसे कहने लगा कि आप नाहटाजीको नहीं जानतीं? उनकी ख्याति तो सर्वत्र है। मेरे कहनेपर कि मैं बीकानेर पहली बार आई हूँ उसने मुझे आपके निवास स्थान तक पहुँचा दिया। २२६ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org