Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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अतीव औचित्यपूर्ण आवश्यक कार्यकी ओर समुचित ध्यान दिया है। साहित्य क्षेत्रका कार्य एक कठिन साधना है - सर्वसाधारण उस काम व प्रयासकी जानकारीसे अपरिचित रहते हैं । साहित्यप्रेमी ही साहित्यसेवीका सच्चा मूल्यांकन कर सकता है । आजका युग भौतिक व अर्थ प्रधानताका युग है । इसमें ज्ञानका महत्त्व आज तो यह आभाणक सर्वतोभावेन मान्य है ।
सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ति
मनुष्य सर्वगुणविधा तथा शालीनता अर्थके पर्याय है । गुण विधामें शालीनताकी बजाय अर्थके महत्व - को सर्वोपरि स्थान प्राप्त है। विद्वानोंकी साहित्य सेवियोंकी श्रेष्ठ व सज्जन पुरुषोंकी समाजमें जैसी मान्यता होनी चाहिये वह नहीं है । अतः ऐसे कालमें जो सज्जन इस ओर ध्यान देते हैं तथा प्रयास करते हैं वे स्तुत्य हैं । वे एक ऐसे आवश्यक कार्यकी पूर्ति करते हैं जिससे हमारे इतिहास, हमारी सभ्यताका पूरा-पूरा सम्बन्ध जुड़ा हुआ है। जो समाज अपने विद्वानों साहित्यसेवियोंका समादर करता है। उनके महत्वको स्वीकार करता है वह समाज अपने अस्तित्व व महत्ताकी पूर्ति करता है, राजस्थानमें आज भी ऐसे अनेकानेक मौन साहित्यसाधक हैं जिनका हमें ठीकसे परिचय नहीं है । उनको भी प्रकाशमें लानेकी आवश्यकता है। हमारे समाजकी साहित्य संपत्तिके ये ही सच्चे प्रहरी हैं जो अनवरत अपने प्रयासोंसे उस दुर्लभ महान संपत्तिका संरक्षण व विवेचन करते हैं, हमारी उनके लिये यही कामना है कि वे दीर्घकाल तक अपनी महती सेवा द्वारा साहित्यक सम्पत्तिका विवेकन व संरक्षण करते रहें । नाहटाजी भी उन्हीं साहित्य साधकोमें हैं अतः वे स्वस्थ व दीर्घजीवी होकर अपने लक्ष्यमें तत्पर होकर प्राचीन साहित्यके अम्बेषण-संरक्षण, विवर्धनमें अपना चिर साहित्य प्रदान करते रहें ।
विरोधाभासों का समन्वय
श्री शोभाचन्द्र भारिल्ल
श्री और सम्पत्ति विरोधका मथन करके जिसने अपने जीवन द्वारा अनेकान्तवादको समर्थन प्रदान किया और चिररूढ़ इस विरोधकी धारणाका निराकरण किया, उस महान् व्यक्तित्वका अभिनन्दन करना अपने आपमें कितना आनन्ददायक है । श्री नाहटाजी के अभिनन्दनका शुभ संकल्प सर्वप्रथम जिनके मनमें उत्पन्न हुआ, वे भी अभिनन्दनीय बन गए ।
चार दशाब्दियोंसे भी अधिक समय बीत गया। बीकानेरमें उनसे मेरा प्रथम साक्षात्कार हुआ। शुद्ध स्वदेशी बीकानेरी वेष-भूषा, सिरपर पगड़ी, गलेमें दुपट्टा, बंद गलेका कोट और दोनों लांघकी धोती ! साहित्यिकका कोई लक्षण नजर नहीं आया। चित्तपर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। उस समय कल्पना ही नहीं आई कि साधारण प्रतीत होने वाले इस व्यक्तिमें असाधारण व्यक्तित्व छिपा है, बीकानेरकी भोगभूमिमें रहते हुए भी इसका अन्तस् साहित्यके संसार में रमण कर रहा है और सरस्वती की उपासनामें तन्मय है ।
तब से अब तक लगातार नाहटाजी के सम्पर्क में हूँ । अनेकों बार साक्षात्कार हुआ है । उनकी बहुमुखी और महत्वपूर्ण साहित्यिक कृतियोंसे परिचय रहा है। जैसा जैसा परिचय प्रगाढ़ होता गया, उनकी सादगी, सरलता, अन्तरकी स्वच्छता, निष्कलुषता और संवेदनशीलता के साथ-साथ उनकी प्रगाढ़ विद्वत्ता, १५६ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रंथ
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