Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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वे राजस्थानी वेशभूषासे सुसज्जित थे । उस समय बीकानेरी पगड़ी पहने हुए थे । बड़े भव्य जान पड़े । लायब्रेरियनने उनसे मेरा परिचय कराया। उनके नेत्रोंसे स्नेह टपकता था । रंग कुछ साँवला था । मुद्रा बड़ी गंभीर थी । साहित्यिक विषयों पर थोड़ी देरतक चर्चा चलती रही ।
श्री नाहटाजी के प्रथम दर्शनसे मेरे मनपर यह प्रभाव पड़ा कि ये बड़े सज्जन, मधुरभाषी और सारल्यकी साक्षात् प्रतिमा हैं । साहित्यकी अनेक विधाओंके विद्वान लेखक होते हुए भी वे बहुत विनयशील हैं । अहंकार छू तक नहीं गया है ।
नाहटाजीने हिन्दी साहित्य और भाषाको जो योगदान किया है, वह अनुपम है । उनका विद्या व्यसन किसी डिग्री या पुरस्कार प्राप्ति के लिए नहीं | सरस्वतीकी साधना उनका स्वभाव बन गया है । यदि मैं यह कहूँ तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी कि हिन्दी के विद्वानों और साहित्यकारोंमें श्री अगरचन्दजी नाहटा सबसे अधिक स्वार्थहीन व्यक्ति हैं ।
श्री नाहटाजी से दूसरी बार मेरी भेंट नाहटोंकी गवाड़, बीकानेरमें स्थित उनके निवासस्थानपर हुई । उस समय मैं राजकीय महाविद्यालय ( डूंगर कॉलेज ) में प्राध्यापक था । कई दिनोंसे मनमें विचार उत्पन्न हुआ कि नाहटाजी से मिलूँ । मेरे ही एक सहकर्मी बन्धु डॉ० श्यामसुन्दर दीक्षित उनके निर्देशन में अनुसंधान कार्य कर रहे थे । उनसे नाहटाजीके बारेमें पता लगता रहता था। एक दिन मैं ढूँढ़ता हुआ उनके घर पहुँच गया । नाहटाजी घरमें ही थे । उन्होंने सहज मुस्कानसे ऊपर आनेके लिये कहा । मैं ऊपर गया था । वे पत्र आदि लिखने में लगे थे । उन्होंने कहा, 'भोजन कर लिया है ? यदि नहीं किया हो तो कर लो ।'
मैंने कहा, 'भोजन तो कर लिया है। प्यास लगी है।' उन्होंने टीपीकल राजस्थानी बर्तनसे पानी पिलाया । नाहटाजी जैनधर्मावलम्बी होनेके कारण जल आदिको सँभालकर रखते हैं, मकान बहुत साफ-सुथरा था । हर एक वस्तु बहुत व्यवस्थित ढंगसे रखी हुई थी ।
मैंने उनसे जिज्ञासा प्रकट की, "आप इतना अध्ययन क्यों करते हो ? इससे आपको क्या लाभ है ?" उन्होंने महज गंभीरतासे कहा, "यह मेरा व्यसन है । किसीका व्यसन मदिरा पान है, किसीका धूम्रपान है । मेरा तो यही व्यसन है । मुझे इसी व्यसनने जीवन में बहुत आनंद और सन्तोष प्रदान किया है।" मैंने दूसरा प्रश्न किया । बीकानेर में अबतक कितने अप्रकाशित हस्तलिखित ग्रन्थ हैं ? उन्होंने कहा "लगभग कई हजार हस्तलिखित ग्रन्थ लालगढ़ पैलेस स्थित महाराज बीकानेर के पुस्तकालय और संग्रहालय में हैं । ज्ञान भण्डार अनूपसंस्कृत लायब्रेरी में भी बहुत हैं । मेरे संग्रहालय में भी पर्याप्त हैं ।" उन्होंने अपना संग्रहालय खोलकर दिखाया । बहुत देर तक बातचीत करनेके पश्चात् मैंने उनसे विदा ली। उन्होंने फिर आनेके लिए कहा ।
जब मैं उनके निवासस्थानसे निकला तो मनमें कई प्रकारके विचार उठने लगे । यह उसी परम्पराका व्यक्ति है, जो सन्तों, भक्तों और जैनमुनियोंकी रही है। उन्होंने केवल स्वान्तः सुखाय ही साहित्यकी सृष्टिकी थी । इसका यह अर्थ नहीं है कि उनका स्वान्तः सुखाय साहित्य-सृजन केवल स्वार्थ के पंकमें धँसा हुआ था । वस्तुतः इस प्रकारके साहित्यकारोंका साहित्य सृजन 'बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय' ही होता था । लोक मंगलको कामना उनके मनमें सर्वोपरि थी ।
श्री अगरचन्दजी नाहटाका यह विद्या व्यसन केवल उनके लिए ही नहीं है। उनके इस व्यसनसे हिन्दी साहित्य और भाषाको बहुत लाभ हुआ है । भगवान्से प्रार्थना है कि इस प्रकारका व्यसन हिन्दीके अन्य साहित्यकारों को भी लग जाये तो हिन्दी और भारतका बहुत कल्याण हो ।
१७८ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन - ग्रंथ
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