Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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अद्भुत व्यक्तित्व
डॉ० दरबारीलाल कोठिया, एम. ए. न्यायाचार्य साहित्य, इतिहास और पुरातत्त्ववेत्ता स्वर्गीय पण्डित जुगलकिशोरजी 'युगवीर' मुख्तारके द्वारा संस्थापित एवं संचालित वीरसेवामन्दिर सरसावा (सहारनपुर) में जब ग्रन्थ-संशोधन, सम्पादन और लेखनका कार्य करता था, तबसे बन्धुवर श्री अगरचन्दजी नाहटाको जानता हूँ। यह लगभग १९४३ ईस्वी की बात है। 'अनेकान्त' में आपके लेख छपते थे और उनका प्रूफ हम और बन्धुवर पण्डित परमानन्दजी शास्त्री देखते थे । नाहटाजीकी लिखावटको हरेक नहीं पढ़ सकता। उसे वही पढ़ सकता है, जो उनकी लिपिको पढ़नेका अभ्यस्त हो गया है। स्वर्गीय मुख्तार साहब उनकी लिपिको खूब अच्छी तरह पढ़ लेते थे। अतः जब नाहटाजीके लेखको पढ़नेमें कठिनाई होती तो मुख्तार साहबसे सहायता ले लेता था। फिर कुछ दिन बाद मैं भी अभ्यस्त हो गया।
नाहटाजीके लिए कोई विषय अविषय नहीं है। साहित्यपर वे लिखते हैं, इतिहासपर वे लिखते हैं और पुरातत्त्वपर भी उनकी लेखनी चलती है। मतियों, मन्दिरों, गणों और गच्छोंपर भी उनने लिखा है। लेखककी गलती पकड़ना और उसपर संशोधन-लेख लिखना, यह भी नाहटाजीसे छूटा नहीं है । एक पत्रिकामें वे लिखते हों, सो यह भी नहीं, जैनेतर, भाषा साहित्यिक, प्रान्तीय और राष्ट्रीय सभी पत्र-पत्रिकाओंमें उनके लेख रहते हैं। एक शब्दमें कहा जाय तो उन्हें 'लिक्खाड़' कहा जा सकता है। हमें आश्चर्य होता है कि नाहटाजी इतना कैसे लिख लेते हैं !
१९४४ में वीर शासन महोत्सवपर कलकत्तामें प्रथम बार उनसे साक्षात्कार हुआ। मैंने इससे पहले उन्हें नहीं देखा था। जब मुझे बताया गया कि ये श्रीनाहटाजी हैं तो मुझे विश्वास नहीं हुआ। उनकी राजस्थानी पगड़ी और वेश-भूषा मुझे श्रीमन्त सेठका परिचय दे रहे थे, विद्वान् लेखक या सरस्वती-उपासक का नहीं।
__ नाहटाजी लगनके पक्के, संयमित भाषी, कर्तव्य-पटु, नम्र, निरभिमानी किन्तु स्वाभिमानी और गुणग्राही विद्वान् हैं। सरस्वती और लक्ष्मी दोनोंका उनपर वरदहस्त है । निःसन्देह नाहटाजी अद्भुत व्यक्तित्वके धनी हैं । उनकी साहित्यिक सेवाओं के उपलक्ष्यमें उन्हें जो अभिनन्दन-ग्रन्थ भेंट करनेका निश्चय हुआ, वह सराहनीय है। हम इस अवसरपर अपनी मङ्गल कामनाएँ करते हुए प्रमुदित हैं । यह उनका सत्कार नहीं, अपितु सरस्वती और सारस्वतका सम्मान है।-जय सरस्वती ।
अभिनन्दनीय नाहटाजी
श्री गुलाबचन्द्र जैन श्री नाहटाजीका नाम शोध-संसारमें कौन नहीं जानता ? मेरे पूज्य गुरुवर स्व० पं० चैनसुखदासजी न्यायतीर्थ भूतपूर्व अध्यक्ष श्री दि० जैन संस्कृत कालेज, जयपुरके तो परम मित्रोंमें से है। गुरुजीने अनेकों बार श्री नाहटाजीके अथक परिश्रम की मुक्तकण्ठसे प्रशंसा की है । और कहा है कि राजस्थानभरमें यह एक ही मनीषी है जो शोध की अपार सामग्री का भण्डार ही नहीं रखता, सैकड़ों प्रकार के शोध-विद्यार्थियों को दिशा-निर्देश भी करता है।
व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : १९९
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