Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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नाहटाजीने अपने ही साधनोंके द्वारा सम्पन्न किया। यदि उनको सरकारी साधन प्राप्त हो जाएँ तो सैकड़ों अलभ्य ग्रन्थ विस्मृतिके गर्तसे बाहर निकाले जा सकते हैं।
___नाहटाजीने तपस्याकी अग्निमें अपनेको तपा डाला है। उनका जीवन जैन मुनियोंकी तरह तपोमय बन गया है। धर्म में उनकी दढ़ निष्ठा है। सदाचारके नियमोंकी अवहेलना उन्हें खलती है। साहित्य और दर्शनको वह जीवनके उन्नयनका साधन मानते हैं। वह जो कुछ लिखते हैं उसमें समाजके विकासको ओर मूलतः दृष्टि रहती है । उनकी साहित्य साधना अन्य किसी फलको लक्ष्यमें रखकर नहीं होती। समाजके हितमें वह अपना हित समझते हैं । समाजके चरित्र-विकासमें वह अपना विकास मानते हैं । प्राचीन ऋषियोंकी वाणीको सर्वजन सुलभ करना उनके जीवनका लक्ष्य है।
नाहटाजीने अपने पैतृक व्यवसाय व्यापारकी उपेक्षा की। सरस्वतीकी उपासनामें लक्ष्मीकी ओरसे तटस्थ हो गए। कलकत्ता एवं आसाममें इनका बहुत बड़ा व्यापार है पर इन्हें करेंसी नोट गिननेकी अपेक्षा प्राचीन पांडुलिपियोंके पन्नोंकी गणनामें अधिक आनन्द आता है। जिस परिवारपर लक्ष्मीका सदा वरदहस्त रहा हो, उसका एक साधक निर्लोभ और निलिप्त भावसे सोलह-सोलह घण्टे निरन्तर सरस्वतीकी उपासनामें लगा रहे, यह आश्चर्यका विषय नहीं तो क्या है ? इसीका परिणाम है कि उनका जीवन तपोमय बन गया है। कहा जाता है कि "विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम्"-नाहटाजी विनम्रताकी मूर्ति हैं । गहन तत्त्वचिन्तकके समान वह बहत ही मितभाषी हैं। विद्यासे विनीत बननेवाले तो अनेक मिलेंगे किन्तु विनयसे ऐसी पात्रताकी उपलब्धि विरलोंमें होगी जो सभी सद्गुणोंके आधार बन सके ।
नाहटाजीकी स्मृति आते ही कार्य करने की प्रेरणा मनमें हिलोरें लेने लगती है । आपके सम्पर्क में आकर अनेक व्यक्तियोंने परिश्रमका पाठ पढ़ा । आपकी कर्मठताके अनेक प्रमाण हैं। प्राचीन साहित्य पर शोधकार्य करनेवाले प्रत्येक छात्रको किसी न किसी रूपमें आप सहायता पहँचाते हैं। शोधसामग्रीका तो प्रचुर भण्डार आपके पास भरा पड़ा है। शोधार्थी उस ज्ञान सरोवरमें छककर पान करता है। सबकी जिज्ञासाओंका समाधान आप प्रस्तुत करते हैं। सबके प्रश्नोंका तुरन्त उत्तर देते हैं। अलभ्य पुस्तकों एवं पत्रिकाओंसे आवश्यक अंश उद्धृत कर शोधार्थीके पास भेजनेको सदा तत्पर रहते हैं। इनके शोधसम्बन्धी लेख देशकी अनेक पत्रिकाओंमें प्रायः प्रतिमास प्रकाशित होते हैं। आश्चर्य होता है कि आप इतना कार्य एक साथ कैसे कर लेते हैं।
इन सब गुणोंके अतिरिक्त उनकी एक बड़ी विशेषता है निरभिमानता । वह जिज्ञासु एवं शोधार्थीको यह भान नहीं होने देते कि वह किसी प्रकार अल्पज्ञ है। सबके स्वाभिमानका ध्यान रखते हुए वह ज्ञानार्जनका सुगम मार्ग बताते हैं। प्राचीन महर्षियोंकी पद्धतिका अनुसरण करनेवाला बीकानेरका यह सन्त ज्ञानविज्ञानकी मूर्ति, विनयकी प्रतिमा, परहितचिन्तनमें सदा संलग्न, सरस्वतीका उपासक दीर्घजीवी रहे यही हादिक कामना है। देशको साहित्यिक संस्थाएँ सामूहिक रूपसे हिन्दी-साहित्य-सम्मेलनके वार्षिकोत्सव पर इनका अभिनन्दन करें यही मेरा प्रस्ताव है।
व्यक्तित्व, कृतित्व और संस्मरण : १५९
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