Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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भी थी-वही अभिरुचिकाल पाकर वर्धित होती गई जिसने आगे चलकर उन्हें प्राचीन साहित्यकी सेवा कार्यमें तत्पर किया। आपका स्वभाव अत्यन्त सरल तथा कोमल है । नम्रता तो आपके कूट-कूटकर भरी हुई है। एक बार जो व्यक्ति आपसे मिल लेता है वह सब ही दिनके लिए आपका हो जाता है। अहंकारका तो आपमें लेश भी नहीं है-सीधी-सादी भाषामें आपसे वार्ता करते हुए व्यक्तिमें आपके प्रति आत्मीय भावना स्वतः ही बिना प्रयास घर कर लेती है। आपका द्वार सबके लिए समानसे खुला रहता है । साधारणसे साधारण जिज्ञासु तथा बड़ेसे बड़े साहित्यिकके साथ मानवीय व्यवहार में किसी प्रकारका भेद आपसे नहीं बनेगा । शोधछात्रोंके लिए आपका सहयोग सर्वदा सुलभ रहता है। साहित्यप्रेमियों, साहित्यलेखकों, सम्पादकों, साहित्यमर्मज्ञोंके लिए आपका घर उन्हीके घरके समान उपयोगमें आता है। समागत अतिथियोंका सम्मान भारतीय परम्परानुसार अत्यन्त सौहार्दपूर्ण भावनासे किया जाता है। आपका शान्त विनीत मृदुल स्वभाव हर अपरिचितको अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। आपके पुरे व्यक्तित्वके महत्त्वको शब्दों द्वारा व्यक्त कर सकना शक्य नहीं है । यही कहना अभीष्ट है कि आप महान व्यक्तित्वके धनी हैं।
साहित्यसाधना
नाहटाजीका मुख्य विषय साहित्यसाधना है, वे पर्याप्त समयसे इसी कार्यमें लगे हुए है। अपने इस लक्ष्यपूर्तिके लिए न मालूम कैसे-कैसे प्रयास किये व कठिनाइयोंसे संघर्ष किया है। जहाँ भी उन्हें ज्ञात हुआ कि अमुक जगह अमुक रचना प्राप्य है आप तभीसे उसके अवलोकन व पाण्डुलिपिके प्रयासमें लग जाते हैं उस रचनाका वहाँ जाकर अवलोकन करते हैं जिसके पास वह है उसकी प्रतिलिपिकी व्यवस्था करते हैं । आपके इस प्रयाससे अनेकों रचनाग्रन्थ जो कि बिना जानकारीके संसारसे ओझल थे, वे प्रकाशमें आये। वैसे आपने प्राचीन जैनसाहित्यकी रचनाओंका अपने यहाँ अच्छा संग्रह किया है तथा उसके विषयनिमें अब भी लगे हुए है । जैनसाहित्यकी अनेक रचनाओंका सम्पादन कर उनको फिर जीवनप्रकाशका उत्कृष्ट प्रणाम है कि आपका साहित्यसाधनाका लक्ष्य कितना उच्चकोटिका है। आपके इस ग्रन्थागारमें न केवल जैन रचनाओंका ही संग्रह है अपितु उसमें सन्त साहित्य-डिंगल कवियोंकी रचनाओं प्रख्यात खाते तथा पिंगलकी रचनाओंका भी उपयुक्त संग्रह है। आपने जिस तरह जैन साहित्यका सम्पादन कर उनको सुरक्षित किया उसी तरह अन्य साहित्यकी रचनाओंका सम्पादन कर उन्हें भी नवजीवन प्रदान किया है।
इस सम्पादन कार्यके साथ-साथ आपने साहित्यिक प्रामाणिक पत्रिकाओंमें शोधमय लेख भी लिखकर साहित्यसेवियोंको नई-नई जानकारी देनेका कार्य भी जारी रखा है। आपके अनेकों लेख तो अनुपलब्ध साहित्य रचनाओंके परिचयात्मक विवेचन हैं जिससे रचनाकार-रचना तथा रचनाकालका सम्यक् बोध प्राप्त होता है । आप वैसे राजस्थानके साहित्य गगनके उदीयमान नक्षत्र ही नहीं हैं अपितु आप तो अब हमारे अन्तः भारतीय साहित्य जगत्के साहित्यकोंकी उच्चश्रेणीमें समाविष्ट हैं। राजस्थानकी वे सर्वसंस्थायें जो साहित्यके संरक्षणके प्रकाशन-संग्रह कार्यमें संलग्न हैं आपके अनुभव व विवेकका पूरा-पूरा लाभ उठाने में सर्वदा तत्पर रहती हैं। आप राजस्थान प्राच्य विद्यामन्दिरकी समितिके सम्माननीय सदस्य हैं। वैसे ही आप साहित्य अकादमीके भी मान्य सदस्य हैं। इसी तरह जो-जो ऐसी अन्य संस्थाएँ हैं, जो कि साहित्यिक कार्यमें लगी हुई हैं आपका उनसे भी किसी न किसी रूपमें सम्बन्ध बना हुआ है-किसीके आप मान्य लेखक हैं तो किसी के आप सहायक है, किसीके ग्राहक हैं, किसीके सहयोगी हैं। आप सद्गृहस्थ तथा कुटुम्बीजन हैं अतः आपको उन सब कर्तव्योंका वहन करना पड़ता है साथ ही अपने प्रमुख लक्ष्य-साहित्य उपासनामें किसी प्रकार कमी या बाधा न आने देना आपका व्यावहारिक वैशिष्ट्य है।
१५४ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ
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