Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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ही होते हैं। गांधीजी कौनसे अच्छे अक्षर लिखते थे और पं० महावीर प्रसादजी द्विवेदीकी हस्तलिपि भी क्या सुन्दर कही जा सकती है।
जो भी हो, श्री नाहटाजी अपने अनुपम गुणोंके कारण अत्यंत अभिनंदनीय हैं और ऐसे व्यक्तित्वका जितना सम्मान किया जाय, थोड़ा है। भगवानसे मेरी यही हार्दिक प्रार्थना है कि श्री अगरचन्दजी नाहटा ताधिक वर्षों तक जीवित रहकर शोध-जगत्को समृद्ध करते रहें ।
राजस्थानकी साहित्यिक विभति
स्वामी श्री मंगलदासजी यग-यगान्तरोंसे हमारा यह आर्य संस्कृतिका जन्मदाता महान भारत देश भ-मण्डलमें अपना विशेष स्थान रखता आया है। यह पुण्यश्लोक पावनदेव अपने अनेक प्रदेशोंको अपने अंचलमें लिये हुए है। उन प्रदेशोंमें अपनी विविध विशेषताओंके कारण हमारा यह राजस्थान प्रदेश भी हरण गौरवशाला व समाद रणाप प्रथम पंक्तिमें अपना विशेष स्थान रखता है। राजस्थानकी वैसे तो ख्याति वीरप्रसवाके रूपमें हैपर इस पावन भूने जिस प्रकार अनेक शौर्यशाली वीरोंको जन्म दिया-उसी तरह इस भूमिमें दानी-त्यागी, तपस्वी-भक्त, महात्मा, विद्वानों, कवि, रचनाकार, प्रभावी शासक, पतिव्रताओं व सतियोंको अगणित संख्यामें जन्म दिया है। राजस्थानमें संस्कृत, प्राकृत, डिंगल, पिंगलमें रचित व अप्रकाशित इतना प्राचीन साहित्य है, जिसका कि अभी हमारे देशके साहित्यिकोंको ही पूरा पता नहीं है। इस ओर अभी जिस प्रकारका ध्यान दिया जाना था वैसा ध्यान नहीं दिया गया है। खेद है कि इस उदासीनताके कारण दिन प्रतिदिन प्राचीन साहित्यका लोप होता जा रहा है । मूर्तियाँ, चित्र तथा अन्य कलाकृतियोंकी चोरी तथा प्राचीन साहित्यका व्यापार जोरोंपर है, जिससे इस अनुपम निधिको दिन-दिन क्षति पहुँच रही है। इनकी रक्षाके लिए सतत् जागरूक प्रहरी चाहिये, जैसे कि हमारे चरित-नायक नाहटाजी हैं। इन प्राचीन साहित्यके परमोपासक, विनीत, मृदुभाषी, निरभिमानी, सतत साहित्य साधकके मानी नाहटाजीको जन्म देनेका गौरव इसी राजस्थानकी भूमिको है। नाहटाजीकी जन्मस्थलीकी महत्ताका महत्त्व प्राप्त हुआ-राठौर कुलभूषण महाराज बोकाजी द्वारा स्थापित बीकानेर नगरको । नाहटाजीने अपनी उत्कृष्ट विविधताओंसे जन्मदाता नगरके गौरवको गौरवशाली बनाने में अपना अथक प्रयोग किया है व कर रहे हैं। व्यक्तित्व
नाहटाजी बहुत ही सादगीप्रिय व्यक्ति हैं। उनकी वेषभूषा परम्परागत सामाजिक रीतिके अनुसार है । यदि कोई अपरिचित व्यक्ति पहली बार नाहटाजीसे साक्षात् करेगा तो शायद वह उनकी उस मारवाड़ी वेशभूषाको देखकर इस भ्रान्तिमें उलझेगा कि क्यों ? साहित्य का अनन्य उपासक तथा प्राचीन साहित्यकी खोजमें अनवरत अपनेको लगनेवाला यही व्यक्ति है ? उनकी पगड़ी-धोती-कुरता-साफा-कोट उन्हें सीफो रूपमें एक व्यावसायिक व्यक्ति प्रकट करता है न कि कोई उच्चकोटिका साहित्यप्रेमी । उनका बाल्यकाल व शिक्षा-दीक्षा बीकानेर नगरमें ही हुई । उनका परम्परागत व्यावसायिक धंधा है। तदर्थ उनका आवागमन कलकत्ता आदि भारतके प्रमुख नगरोंमें भी होता रहा है। आरंभसे ही उनमें साहित्य अनुशीलनकी अभिरुचि
व्यक्तित्व, कृतित्व और संस्मरण : १५३
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