Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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राजस्थानी काव्योंका संशोधन-सम्पादन किया है और शोध सम्बन्धी तो आपने हजारों ही लेख लिखे हैं, आपके प्रत्येक लेखमें मौलिकता दृष्टिगत होती है ।
आप, वर्षोंसे बीकानेरकी शोध-संस्था भारतीय विद्यामंदिर और सार्दूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूटके साथ जुड़े हुए हैं । आपकी प्रेरणा एवं आपके मार्ग-दर्शन द्वारा इन संस्थाओंने अब तक अनेक शोध-ग्रन्थ प्रकाशित किये हैं । गुजरात के और उत्तर भारतके विश्वविद्यालयोंमें शोध-कार्य करनेवाले अनेक छात्रोंको आप द्वारा मार्ग-दर्शनका लाभ मिला है।
प्राचीन-मध्यकालीन गुजराती साहित्यकी बहत-सी हस्तलिखित प्रतियाँ राजस्थानमें सुरक्षित पड़ी हैं । गुजरातके विद्वानोंको जब-जब इनकी आवश्यकता हुई तब-तब श्री नाहटाजीने उन-उन मूल प्रतियोंको अथवा उन-उन की प्रतिलिपियोंको उदारतापूर्वक भेजा है। इस प्रकारसे प्राचीन-मध्यकालीन गुजराती साहित्यके शोधकार्यमें श्री नाहटाजीका विशेष महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। स्वयं मुझे प्राचीन-मध्यकालीन बारहमासा संग्रह तैयार करते समय जब इससे सम्बन्धित साहित्यकी आवश्यकता हुई तो श्री नाहटाजीने उदारतापूर्वक मुझे सहायता कर अपने औदार्यका परिचय दिया।
श्री नाहटाजी केवल राजस्थानके ही नहीं अपितु समस्त भारतके एक महामना विद्वान है, जो भारतमें अन्यत्र क्वचित् ही दृष्टिगोचर होते हैं । लगभग ३० वर्षसे आप द्वाराकी गई सतत साहित्य-सेवा विद्वानोंके लिए प्रेरणादायक है। प्रभु, आपको स्वस्थ एवं दीर्घायु बनावें ।
धन्य नाहटाजी! विद्याभूषण शतावधानी श्री धीरजलाल टोकर शी शाह जैन-साहित्यके गहन ज्ञाता, समर्थ लेखक और उच्च कोटिके तत्वचिन्तकके रूपमें श्रीमान अगरचन्दजी नाहटाने मेरे हृदयमें अत्यन्त आदरणीय स्थान प्राप्त कर लिया है।
सन् १९३१में अहमदाबाद, साहित्य-प्रवृत्तिका केन्द्र-स्थल बना हआ था। वहाँ मैंने बाल ग्रन्थावलीके प्रकाशनोपरान्त 'जैन ज्योति' नामक एक सचित्र मासिक-पत्रके प्रकाशनका कार्य अपने हाथमें लिया था। उन दिनों में ही श्री अगरचन्दजी नाहटाकी एक विद्वान् लेखकके रूपमें ख्याति में सुन चुका था । अतः मैंने अपने मासिक-पत्रके १-२ अंक आपको भेंट करते हुए आपसे अपने लेखोंकी प्रसादी इस पत्र में प्रकाशित करने हेतु भेजनेका निवेदन किया। इसके उत्तरमें मुझे आपकी ओरसे प्रोत्साहन-पूर्ण पत्र मिला और साथ ही दी लेख भी प्राप्त हुए। इतनी सरलतासे और ऐसे सद्भावसे एक विद्वान् अपने लेख भेज दे, यह मेरी कल्पनाके बाहरकी बात थी। इसीलिये श्री नाहटाजीके सौजन्य पर मेरे हृदयमें आपके प्रति अत्यन्त आदर उत्पन्न हो गया।
आपके लेख अत्यन्त व्यवस्थित एवं विविध विषयोंको भली प्रकारसे स्पर्श करते हए थे। उनमें कहीं किसी प्रकारके संशोधनकी आवश्यकता नहीं थी। इससे मेरे हृदयमें आपकी विद्वत्ताके प्रति आदर उत्पन्न हुआ और वह दिनोंदिन वृद्धिंगत होता गया ।
व्यक्तित्व, कृतित्व और संस्मरण : १४१
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