Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
नहीं कि पैसे अधिक जमा हो जाय किन्तु इसलिए कि उस बचतसे आवश्यक हस्तप्रति खरीदने में सुविधा रहे।
उनकी सज्जनता और अतिथि सत्कार वे जानते हैं, जिन्होंने बीकानेर में उनका घर देखा है। सब कार्य छोड़कर वे अतिथिसत्कार करते हैं और बड़े प्रेमसे अपना संग्रह दिखाते हैं ।
विद्यारसिक होकर भी वे अपने जैनधर्मके क्रियाकाण्डोंका भी उचित रूपमें पालन करते हैं । व्यवसाय फैला हुआ है फिर भी धर्म-गृहस्थ धर्मके नियमोंका पालन मैंने उनमें देखा है। तीर्थयात्रा, मुनिदर्शन, रात्रि भोजन त्याग आदि ऐसे नियम हैं, जिनका पालन उनके लिए सहज हो गया है। आमतौरपर देखा यह जाता है कि जो विद्यारसिक हो जाता है वह बाह्य क्रियाकाण्डमें रस नहीं लेता किन्तु नाहटाजी तो व्यवसाय, विद्यारस और धर्मरस इन तीनोंमें समानरूपसे दत्तचित्त है। उन्हींसे सुना है वर्षमें ११२ मास ही व्यवसाय संभालनेमें जाते हैं। बाकी १० मास अध्ययन संशोधनमें रत रहते हैं। ऐसे व्यक्ति विरल ही होंगे जो इस प्रकार की अपनी जीवन व्यवस्था बनाकर जीता हो।
श्री नाहटाजी शतायु हों और धर्म और समाजकी सेवा करते रहें यह शुभेच्छा ।
ख्याति प्राप्त विद्वान्
श्री नन्दकुमार सोमानी श्री अगरचन्द नाहटा राजस्थानके ख्यातिप्राप्त विद्वान् हैं। राजस्थानी भाषाके उत्थानके लिए आप निरन्तर प्रयत्नशील रहे हैं। राजस्थानके कई अज्ञात ग्रंथोंको ढूंढ निकालनेका आपने सतत प्रयत्न किया है एवं अब भी करते आ रहे हैं।
यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई है कि ऐसे प्रतिभा सम्पन्न व्यक्तिको अभिनन्दन ग्रंथ समर्पित किया जा रहा है। इनकी निरन्तर साहित्यिक साधनाको देखते हये इनका पूर्ण राष्ट्रीय स्तरपर सम्मान किया जाना चाहिये । मैं अपनी ओरसे शुभ कामनायें भेजता हूँ।
सरस्वतीका सुयोग
श्री शिवलाल जैसलपुरा बहुत वर्ष पूर्व मैंने श्री अगरचन्दजी नाहटाका नाम सुना था। आप, वर्षके कुछ भाग कलकत्ते में रहकर व्यापार और शेष भाग अपने जन्म-स्थान बीकानेरमें रहकर साहित्योपासनामें व्यतीत करते हैं। मुझे जब यह ज्ञात हुआ तो मेरे हृदयमें आपके प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो गई।
आपने अनेक दुर्लभ एवं अप्राप्य हस्तलिखित ग्रन्थोंका संग्रह किया है । प्राचीन एवं अप्रकाशित १४० : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org