Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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साहित्यिक सितारे नाहटाजी श्री पुष्कर मुनिजी
श्री अगरचन्दजी नाहटा जैन समाज के एक चमकते दमकते साहित्यिक सितारे हैं । वे प्रकृष्ट प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति हैं । साहित्यिक क्षेत्रमें उनकी सर्वत्र ख्याति है । इतिहास और पुरातत्त्व के वे गम्भीर ज्ञाता हैं। किस आचार्यका जन्म कब हुआ, कहाँ हुआ और उनकी कौन-कौन सी कृतियाँ हैं ? आप किसी भी समय उनसे पूछ सकते हैं । वे आपको उसका सम्पूर्ण विवरण सुना देंगे। आप उनकी अजब-गजबकी स्मरण शक्ति देखकर चकित हो जायेंगे। श्री नाहटाजी वस्तुतः विश्वकोश हैं ।
नाहटाजीका जन्म वैश्यकुलमें हुआ है । वैश्योंका मूलव्यवसाय व्यापार है । वे लक्ष्मी पुत्र होते हैं, प्रायः सरस्वती से उनका वास्ता नहीं होता । नाहटाजी इसके अपवाद हैं। उन्होंने अपनी लगनसे साहित्यिक क्षेत्र में विकास किया है । उन्होंने नोटोंसे तिजोरी नहीं भरी किन्तु महत्त्वपूर्ण ग्रन्थोंसे पुस्तकालयको सजाया है। हजारों अनुपलब्ध और अप्राप्य ग्रन्थ उनके संग्रहालय में हैं । वे ग्रन्थोंको केवल इकट्ठा ही नहीं करते उन्हें पढ़कर उसपर अपने महत्त्वपूर्ण विचार भी व्यक्त करते हैं। उन्होंने बहुत अधिक लेख अज्ञात कवि - लेखकोंकी कृतियोंपर लिखे हैं, जो उनकी बहुश्रुतताके परिचायक हैं ।
उनका अभिनन्दन समारोह मनाया जा रहा है, यह उचित है । मेरी हार्दिक मंगल कामना है कि वे चिरायु होकर अत्यधिक साहित्यिक और सांस्कृतिक सेवा कर यशस्वी बनें ।
भारतीय संस्कृतिका सम्मान
गणि श्री हेमेन्द्रसागरजी
श्रेष्ठिवर श्री अगरचन्दजी
नाहटा अभिनन्दन समारोहकी पत्रिका मिली। पढ़कर अत्यन्त आनन्द हुआ । इनके अभिनन्दन ग्रन्थ में मेरा बयान होना - मन्तव्य प्रस्तुत करना मैं अपना कर्त्तव्य समझता हूँ । श्री अगरचन्दजी नाहटा एवं श्री भँवरलाल नाहटा द्वारा धार्मिक, साहित्यिक एवं कलापूर्ण ग्रन्थों और रचनाओंका पुनरुद्धार ही इनका जयन्ति (जीवित) कार्य हैं। सचमुच इनका यही उच्च श्रेणीका व्यापार है । जैन दर्शन, साहित्य और ऐतिहासिक क्षेत्रमें आपने अजोड़-जीवन प्राप्त किया है। इस प्रकारके साधु-स्वभावके और जैन समाजके पुत्रका सम्मान करना, यह सभी लोगोंका परम कर्त्तव्य है | राजस्थान भरमें आपकी साहित्य सेवा और समाज सेवाका कार्य सबसे बड़ा है। श्री अभय जैन ग्रन्थालय में लगभग अगणित हस्तलिखित प्रतियाँ और मुद्रित ग्रन्थ विद्यमान हैं । श्री शंकरदान कलाभवनमें ३००० चित्र, सैकड़ों सिक्के और प्राचीन मूर्तियाँ एवं कलापूर्ण वस्तुयें विद्यमान हैं ।
विद्यावारिधि, इतिहास रत्न, सिद्धान्ताचार्य और शोधमनीषी राजस्थानी साहित्य वाचस्पति श्री अगरचन्दजी नाटाका यह सम्मान भारतीय संस्कृतिका सम्मान है ।
ऐसे स्वर्णावसर पर मैं अपना परम कर्त्तव्य समझता हूँ कि स्वयं उपस्थित रहूँ । किन्तु, यह मेरे लिये अशक्य है । फिर भी मेरे हृदयसे यही ध्वनि निकलती है कि ऐसे महान् कार्य हेतु सम्पूर्ण सहयोग और अपनी शुभेच्छा प्रेषित कर दूँ ।
अभिनन्दन समारोह में समग्र भारत के खरतरगच्छीय जैन संघ हिलें मिलें और नाहटा कुटुम्बकी ओर से की गई साहित्य सेवा रूपी यह सौरभ फूले-फले और समाजकी इस प्रकारसे शोध करनेवाले सुपुत्र बनें, यही प्रभुसे प्रार्थना है ।
१३४ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रंथ
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