Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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परिचय प्राप्त होता है और उनमें दिये हुए चित्र तो हमारे समक्ष तत्कालीन जीवन शैलीका चल-चित्र सा प्रस्तुत कर देते हैं । इस ग्रंथकी विस्तृत भूमिकामें बीकानेरके जैन- इतिहास, बीकानेर के राज्य स्थापन एवं जैनोंका हाथ, बीकानेर नरेश तथा जैनाचार्य, बीकानेर में ओसवाल जाति के गोत्र, बीकानेर में रचित जैन साहित्य, बीकानेरके जैन मंदिरोंका इतिहास, जैन- उपाश्रयोंका इतिहास, बीकानेरके जैन ज्ञान-भंडार बीकानेरके जैनश्रावकों का धर्म प्रेम आदि विषयोंका विशद विवेचन किया गया है ।
८. समय - सुन्दर कृति - कुसुमांजलि
सत्रहवीं शताब्दी में उपाध्याय समयसुन्दर नामक एक प्रकांड जैन विद्वान् और महान् कवि हो गये हैं, जिन्होंने विपुल साहित्यका निर्माण किया और अनेक ग्रंथोंपर विद्वत्तापूर्ण टीकाएँ लिखीं । जैन शास्त्रों में पारंगत विद्वान् होनेके अतिरिक्त उनका व्याकरण, न्याय, अनेकार्थ कोष, छंद, साहित्य, संगीत आदिपर भी पूर्ण अधिकार था, जिसके कारण उनकी रचनाओंका विद्वत्समाज तथा जन-साधारणमें बड़ा भारी आदर था, और आज भी हैं । उनके प्रखर पांडित्यका परिचय इसी बात से चल जाता है कि उन्होंने सम्राट् अकबरकी विद्वत्सभा में दिये आठ अक्षरों "राजानो ददते सौख्यं" पर आठ लाख अर्थोकी रचना की । यह ग्रन्थ " अर्थ - रत्नावली" के नामसे प्रसिद्ध है । इन महान् कविकी ५६३ लघु रचनाओं का संग्रह श्री नाहटाजीने अपने भतीजे श्री भँवरलालजी के सान्निध्य में विक्रम संवत् २०१३में उपर्युक्त नामसे प्रकाशित किया है। इस ग्रन्थके प्रारंभ में विद्वान् संपादकों तथा महोपाध्याय विनयसागरजी द्वारा इन महान् कविके व्यक्तित्व एवं कृतित्वका विस्तृत विवेचन किया गया है । इस ग्रन्थकी भूमिका प्रसिद्ध विद्वान् डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदीने लिखी है ।
९. रत्नपरीक्षा
इस ग्रंथका संपादन भी श्री नाहटाजीने अपने भतीजे श्री भँवरलालजी के सान्निध्य में किया है । विद्वान् संपादकोंने ठक्करफेरूकी लगभग छः सौ वर्ष प्राचीन इस रचनाको विशद भूमिका के साथ प्रकाशित किया है । ग्रन्थके प्रारंभ में उसका परिचय ८० पृष्ठों में डॉ० मोतीचन्द्र द्वारा दिया गया है, जिससे इस विषयपर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है ।
१०. सीताराम चौपाई
महोपाध्याय कविवर समयसुन्दरकृत इस ग्रन्थका संपादन नाहटाजीने अपने भतीजे श्री भँवरलालजी के नमें किया है और यह ग्रन्थ संवत् २०१९ में प्रकाशित हुआ है । इस ग्रन्थके प्रारंभ में संपादकीय भूमिका तथा प्रो० फूलसिंह “हिमांशु” द्वारा "राजस्थानीका एक रामचरितकाव्य" के शीर्षकसे इस ग्रन्थ तथा उसके लेखकका विस्तृत परिचय, सीतारामचरित्रसार तथा डॉ० कन्हैयालाल सहल द्वारा लिखित "सीताराम चौपाई' में प्रयुक्त राजस्थानी कहावतें नामक लेख दे दिये हैं, जिनसे इस ग्रन्थकी उपयोगितामें चार चाँद लग गये हैं । ११. श्रीमद् देवचन्द्र स्तवनावली
इस पुस्तकका संपादन श्री नाहटाजीने अपने भतीजे श्री भँवरलालजी के सान्निध्य में किया है, और यह पुस्तक संवत् २०१२ में प्रकाशित हुई है । अठारहवीं शताब्दि में श्रीमद् देवचन्द्रजी नामक एक प्रसिद्ध विद्वान् सन्त हुए हैं, जिन्होंने संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजराती आदि भाषाओंसे अनेक ग्रन्थों, सज्झायों, स्तवनों आदिकी रचना की है, जिनका प्रचलन वर्तमान काल में भी अत्यधिक है । पुस्तकके प्रारंभ में श्री नाहटाजीने श्रीमद् देवचन्द्रजीके व्यक्तित्व तथा कृतित्वके संबंध में पर्याप्त प्रकाश डाला है ।
१२. धर्मवर्द्धनग्रंथावली
इस ग्रन्थका संपादन श्री नाहटाजीने किया है और यह ग्रन्थ संवत् २०१७ में प्रकाशित हुआ है ।
जीवन परिचय : १११
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