Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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इस प्रकार आपके साहित्य विभाग के निबंधों की संख्या सहस्रात्मकसे भी अधिक हो जाती है । आपके ये निबंध साहित्यसंदेश, जैनजगत्, जैनध्वज जैसी बीसियों पत्रिकाओंमें छपते रहे हैं ।
विभाग ३ : जैन धर्म और जैन समाज
इस शीर्षक में आपने जैनधर्म और समाज पर सैकड़ों निबंध लिखे हैं । ऐसे निबंधों में आपने धार्मिक मान्यताओं और परम्परित विवेकानुमोदित पद्धतियोंका समर्थन किया है । आपका स्वर नैतिकता और सच्चरित्रताका स्वर है और उसीके व्यापक प्रसार-प्रचार के लिए आप लिखते रहते हैं । आपने जिज्ञासा भावसे अनेक प्रश्न प्रकाशित करवाये थे जिनका सुन्दर समाधान कुँवर आणंदजीने किया था । ये प्रश्नोत्तर जैनधर्मप्रकाश में प्रकाशित हुए हैं । ऐसे निबंधोंकी संख्या भी हजारसे ऊपर है ।
विभाग ४ : अध्यात्म - आचार - शिक्षा अर्थशास्त्र
श्री नाहटाजीका जीवन अध्यात्मोन्मुखी है । वे स्वयं पापप्रवृत्तियोंसे बचते है और दूसरोंको बचाने के लिए लेख लिखकर उपाय बताते । ऐसे निबंधों में उनका एक ही प्रबल स्वर है और वह है आत्मविस्तारआत्मोन्नतिका स्वर । उनकी शिक्षा है कि आवश्यकताओंको कम करो; कहना नहीं करना सीखो। और ये सब उन्होंने विभिन्न पत्रिकाओंमें छपे निबंधोंके माध्यम से बताया है। उनके सैकड़ों ऐसे लेख कल्याण, जीवन साहित्य, अखंड ज्योति प्रभृति पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे हैं ।
श्री अगरचन्दजी नाहटा सरस्वती और लक्ष्मीके वरद पुत्र हैं । उन्होंने माँ भारतीका उद्धार तो किया ही है साथमें अनेक ग्रंथरत्नोंसे उसका कोष भी मरा है । कलात्मक वस्तुओंके संग्रहसे उन्होंने जिस कला भवनको जन्म दिया है; उसमें आज लाखों रुपयोंके मूल्यकी दुर्लभ वस्तुएँ संगृहीत हैं । श्री नाहटाजीके कारण बीकानेर शोध छात्रोंका तीर्थस्थल बन गया है। श्री नाहटाजी में उच्चकोटिकी मानवताका विकास हुआ है । वे परदुःखकातर, विश्वसनीय और निष्कपट सखा एवं मार्गदर्शक । उनके जीवनका प्रमुखरस अध्यात्म है। और वे इसीकी साधनामें दत्तचित्त हैं ।
श्री नाहटाजी एकरूप होकर भी अनेकरूप हैं । वे विद्वानोंके वरेण्य, दीन दुखियोंके शरण्य और जिज्ञासुओंके ज्ञानार्णव हैं । वे सफल गृहस्थ, अच्छे पिता, कर्तव्यपरायण पति, स्नेहशील नाना और दादा हैं । व्यापारियोंकी दृष्टिमें वे 'दक्ष व्यापारी' और समाजसेवकोंमें समाज हितकारी हैं । धर्मप्राण व्यक्तियोंके वे धर्मसिन्धु और ज्ञानपिपासुओंके लिए वे अमृतबिन्दु हैं । अगर तगर और चन्द्र रश्मियोंकी शीतलता, आत्मीयता तथा सुजनतासे कौन भ्रान्त हुआ है; उसी प्रकार सुगन्धित एवं परम शीतल व्यक्तित्व श्री अगरचन्दजी नाहटासे किसका मन भरा है ! किसीका भी नहीं । श्री नाहटाजीका व्यक्तित्व और कृतित्व अत्यन्त व्यापक आकाशके समान है: आकाशमें हर क्षमताका जीव अपने सामर्थ्य के अनुसार भरपूर उड़ तो सकता है; लेकिन उसका ओर-छोर नहीं पा सकता; ठीक उसी प्रकार श्री नाहटाके चरित पर यथाशक्ति लिखना तो संभव है; पर उसकी सम्पूर्णताको सीमाका स्पर्श करना अत्यन्त कठिन है ।
धावतः स्खलनं क्वापि भवत्येव प्रमादतः । हसन्ति दुर्जनास्तत्र समादधति सज्जनाः ॥
७४ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रंथ
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