Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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निबंधोंके विविधरूप हमें आज उपलब्ध हो रहे हैं तथा पाश्चात्य निबंधकारोंका आजके भारतीय निबंध लेखकोंपर पर्याप्त प्रभाव पड़ रहा है। ऐसी स्थितिमें निबंधोंके भिन्न-भिन्न रूपोंको एक विशिष्ट वर्गीकरणमें आबद्ध करना सरल नहीं है।
कतिपय विद्वानोंने विषयको आधार मानकर निबंधोंको वर्गीकृत किया है तो कुछ साहित्य-विशारदोंने बाह्य आकार-प्रकारको अंगीकार कर निबंधोंकी विविध श्रेणियोंको अंकित किया है। कुछ ऐसे भी आधुनिक समीक्षक हैं जिन्होंने शैलीको विशेषता देकर निबंधोंको विभिन्न रूपोंमें विभाजित करनेका प्रयास किया है।
साधारणतया निबंधोंको १. विचारात्मक, २. वर्णनात्मक, ३. आलोचनात्मक या साहित्यिक, ४. आख्यात्मक और ५. भावात्मक रूपोंमें विभक्त किया गया है। (देखिए संस्कृत निबंध-नवनीतम्--ले० डॉ० पारसनाथ द्विवेदी तथा श्री बंशीधर चतुर्वेदी)
बोधपक्ष, भावपक्ष, संवेदना, विधानक कल्पना एवं शैली तत्त्वोंसे समन्वित निबंध-कलाका आज जो उत्कर्ष दिखाई दे रहा है, वह गद्य-साहित्यके परमोज्ज्वल भविष्यका परिचायक है।
डॉ० राममति त्रिपाठीके मतानुसार लाधव, आपेक्षिक गांभीर्य, अपूर्णता संबंधनिर्वाहका कलात्मक ढंग, भाषा और शैलीकी प्रौढि तथा सोद्देश्यता; ये आदर्श निबंधकी विशेषताएँ हैं। (द्रष्टव्यः हिन्दी साहित्यका इतिहास, पृष्ठ २५२ )
निबंध निरूपणमें शैलीका विशेष महत्त्व है। यह शैली ही निबंधको रोचक तथा प्रभावशाली बनाती है। इसीके माध्यमसे पाठक लेखककी आत्मीयतासे परिचित होता है और तथा अपने आपको उसमें एकाकार करनेका प्रयत्न भी करने लगता है। एक ओर शैली निबंधके कई रूपोंको जन्म देती है तो दूसरी ओर इनकी आन्तरिक भावना तथा अनुभूतिको विविध रूपोंमें समलंकृत भी करती है।
“शैली व्यक्तित्व एवं अभिव्यक्तिको विशिष्टता प्रदान करती है । शब्दचयन, ध्वनियोजना, अलंकार संलिष्ट रूप बना देते हैं । वही उसे अन्योंसे अलग करती है। वामन द्वारा प्रतिपादित 'यह विशिष्ट पद रचना'का भाव पाश्चात्य एवं भारतीय साहित्यमें स्वतः स्वीकृत हो गया है।।
..........."वस्तुतः शैली किसी लेखककी कृतिको समझने में बहुत सहायक होती है।" " इससे (शैलीसे) कभी भी लेखकका व्यक्तित्व अलग नहीं रहता। हमारे भाव, विचार, भाषा, ढंग, व्यक्तित्व सभी शैलीमें आ जाते हैं ।......"निबंध साहित्यमें शैलीके ९ रूप मान्य हैं : १. प्रसाद शैली, २. व्यास शैली, ३. समास शैली, ४. विवेचन शैली, ५. व्यंग्य शैली, ६. तरंग शैली, ७. विक्षेप शैली, ८. प्रलाप शैली और ९. धारा शैली।"
इस प्रकार लिखनेके ढंगको (शैलीको) निबंध-साहित्य में प्रधानता देकर साहित्य-मनीषियोंने कहावतों, मुहावरों, सूक्तियों, अलंकारों आदिके प्रति जो आकर्षण प्रदर्शित किया है वह प्रत्येक दृष्टिसे अभिनंदनीय है । श्री नाहटाकी निबंध-कला
श्री नाहटाकी निबंध-कला उस उद्यानके समान है जिसमें विविध रंगोंके सुरभित पुष्प खिलते रहते हैं। जीवन-यापनके साधनोंको यथावसर अपनाते हए आपने अपनी साहित्यिक अभिरुचिको निरन्तर परिष्कृत
T एवं जीवनके गहन अनुभवोंके साथ आपने जो कुछ लिखा है अथवा जो भी कुछ लिख रहे हैं उसमें गहनता आत्मीयता, निष्पक्षता, भावमुग्धता, आध्यात्मिकता, दार्शनिकता, अनुरंजित अभिव्यक्तियाँ, सांस्कृतिकचेतना, ऐतिहासिक शोध-तत्परता, प्राचीनता एवं आधुनिकताका सुखद समन्वय, राजनैतिक नव-चेतना, लोक१. हिन्दी साहित्यमें निबंध और निबंधकार : डॉ० गंगाप्रसाद गुप्त, पु० ३१ ।
जीवन परिचय : ८१
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