Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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राजस्थानी साहित्यकी गौरवपूर्ण परम्परा
यह पुस्तक श्रीअगरचन्दजी नाहटा द्वारा कलकत्ता विश्वविद्यालयकी रघुनाथप्रसाद नोपानी स्मृति व्याख्यानमाला के अन्तर्गत दिये व्याख्यानोंका संकलन है । इन व्याख्यानोंमें उन्होंने राजस्थानी साहित्यकी गौरवपूर्ण परम्परापर प्रकाश डालते हुए उसके विकासको दिखाया है। उन्होंने यह भी बताया है कि राजस्थान में संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंशमें कौन - कौनसे गौरवग्रन्थ रचे गये । उन्होंने मध्यकालीन राजस्थानी साहित्यपर भी सारगर्भित विवेचन प्रस्तुत किया है। राजस्थानी लोक साहित्यपर भी उनका विचार मन्थन हुआ है।
मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरि
यह पुस्तक नाहटाद्वय द्वारा मणिधारी श्रीजिनचन्द्र सूरिके अष्टम शताब्दी महोत्सव के उपलक्ष्य में सूरिजी की जीवनी के रूप में प्रकाशित की गयी है। इसमें मणिधारीजीकी अत्यन्त प्रभावक पाण्डित्यपूर्ण और परहितकाररत व्यक्तित्वको उभारा गया है । अन्तमें सूरिजीपर बने अष्टक स्तवन भी दिये गये हैं । सबसे अन्तमें 'सार्थक व्यवस्था शिक्षा कुलकम्' दिया गया है ।
अष्टप्रवचनमाता सज्झाय सार्थ
सम्पादक श्री अगरचन्द नाहटाने श्री देवचन्द्रकृत अष्टप्रवचनमाता सज्झायोंको इस पुस्तक में संग्रहीत किया है। उन्होंने सज्झायोंका हिन्दी में अर्थ देकर पुस्तकको और भी श्रावकोपयोगी बना दिया है । ऐतिहासिक काव्यसंग्रह
प्रस्तुत काव्यसंग्रहके सम्पादक श्री अगरचन्दजी नाहटा । इसमें स्था० जैन इतिहासके निर्माण में उपयोगी महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक काव्योंका संकलन किया गया है। इसका प्रकाशन मुनि श्री हजारीमल स्मृति प्रकाशन व्यावरने किया है । इस संग्रहकी अधिकांश रचनाएँ अप्रकाशित हैं । इसमें अनेक विधाओं का समावेश हुआ है। उनकी संख्या लगभग २१ से अधिक है ।
शिक्षासागर
यह राजस्थान के मुसलमान कवि जानका लिखा हुआ उपदेशप्रधान नीतिकाव्य है । सम्पादक श्री अगरचन्द नाहटाने अपने प्राक्कथनमें बल दिया है कि इस कवि पर खूब अनुसंधान कार्य होना चाहिए । इसका प्रकाशन राजस्थान साहित्य समिति बिसाऊसे हुआ है ।
बी बी बांदीका झगड़ा
safrat ताजकी लिखी हुई इस पुस्तिकाका सम्पादन श्री अगरचन्द नाहटाने और प्रकाशन राजस्थान साहित्य समिति बिसाऊकी ओरसे हुआ है। इस रचनाका उद्देश्य स्त्रीसमाज में प्रचलित कहावतोंके प्रयोगका रहा है । प्रस्तुत काव्य में कहीं कहीं आध्यात्मिक सन्देश भी व्यंजित होता है । कवयित्री ताजकी इस विविध रचनाकी केवल दो ही प्रतियाँ प्राप्त हैं । १. अभयराज ग्रन्थ भण्डार में २. अनूप संस्कृत लाइब्रेरी में । रुक्मणी मंगल
इसका कवि पदमा तेली था । उसने प्राचीन राजस्थानीमें इस पद्यपुस्तककी रचना की । बिसाऊकी राजस्थान साहित्य समितिने श्री अगरचन्दजी नाहटा के सम्पादकत्वमें इस पुस्तकका प्रकाशन किया है । पुस्तक भाषा और भावोंकी दृष्टिसे अत्यन्त मनोहर है । रुक्मणी मंगल राजस्थानीका अत्यन्त लोकप्रिय व प्रसिद्ध
जीवन परिचय : ७१
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