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-कार्तिकेयानुप्रेक्षा
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सर्वज्ञको न माननेवाले चार्वाक, भट्ट सम्यग्दृष्टि जानता है कि जिनेन्द्रने जैसा
आदि मतोंका निराकरण २१३ जाना है वैसा अवश्य होगा उसे कोई सर्वज्ञोक्तधर्मके दो भेद, उनमेंसे
टाल नहीं सकता।
२२७ भी गृहस्थधर्मके १२ भेद और जो ऐसा जानता है वह सम्यग्दृष्टि है मुनिधर्मके दस भेदों का कथन २१४ । ___ और जो इसमें सन्देह करता है वह श्रावकधर्मके १२ भेदोंके नाम २१५ मिथ्यादृष्टि है।
२२८ सम्यक्त्वकी उत्पत्तिकी योग्यता
तीन गाथाओंसे सम्यक्त्वके माहात्म्यका उपशम सम्यक्त्व और क्षायिक
कथन
२२९ सम्यक्त्वका स्वरूप
२१६ सम्यक्त्वके पञ्चीस गुणोंका विवेचन २३०-१ काललब्धि आदिका स्वरूप
२१७ सम्यक्त्वके ६३ गुणोंका विवेचन २३२ दर्शनमोहनीयके क्षयका विधान
श्रावकके दूसरे भेद दर्शनिकका स्वरूप २३४-५ उपशम और क्षायिक सम्यक्त्वकी स्थिति बतिक श्रावकका स्वरूप
२३६ तथा दोनोंमें विशेषता
प्रथम अणुव्रतका स्वरूप
२३७ वेदकसम्यक्त्वका स्वरूप
अहिंसाणुव्रतके पांच अतिचार २३८ क्षयोपशमका लक्षण
यमपाल चाण्डालकी कथा २३८-९ सम्यक्त्व प्रकृतिके उदयसे होनेवाले दूसरे अणुव्रतका स्वरूप चलादि दोषोंका विवेचन २२० अणुव्रतसत्यके पांच अतिचार
२४० क्षायोपशमिक सम्यक्त्वकी स्थितिका
धनदेवकी कथा
२४१ तीसरे अचौर्याणुव्रतका स्वरूप
२२० खुलासा
२४२-३ औपशमिक और क्षायोपशमिक सम्यक्त्व.
अचौर्याणुव्रतके पांच अतिचार २४२ वारिषेणकी कथा
२४३ अनन्तानुबन्धीका विसंयोजन और
२४३ देशवतको प्राप्त करने और छोड़नेकी
चौथे ब्रह्मचर्याणुव्रतका स्वरूप ब्रह्मचर्याणुव्रतके पांच अतिचार
२४४ संख्या
२२१ नीलीकी कथा
२४५ नौ गाथाओंके द्वारा सम्यग्दृष्टिके .
पांचवे परिग्रहपरिमाणाणुव्रतका स्वरूप २४६ तत्त्वश्रद्धानका विवेचन , २२१-५
परिग्रहपरिमाणके पांच अतिचार मिथ्यादृष्टिका स्वरूप
२२५
समन्तभद्रस्वामीके मतसे , २४७ कोई देवता किसीको लक्ष्मी आदि नहीं
जयकुमारकी कथा
दिग्विरति नामक प्रथम गुणव्रतका यदि भक्तिसे पूजने पर व्यन्तर देव लक्ष्मी ।
स्वरूप
२४८ देते हैं तो धर्म करना व्यर्थ है। । दिग्विरतिके पांच अतिचार
२४९
देता
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